कोरोना महामारी से न केवल स्कूल बंद हुए बल्कि इसका सबसे ज्यादा असर प्ले स्कूल पर पड़ा। बजट निजी स्कूल जो बहुत सस्ती लागत पर शिक्षा प्रदान करते हैं, आज इस कोरोना काल में संघर्ष कर रहे हैं। वहीं प्ले स्कूल की हालत बहुत खराब हो गई हैं क्योंकि टॉडलर को ऑनलाइन कक्षाएं देना संभव नहीं है। यहीं एक बड़ा कारण हैं कि मार्च के बाद से प्ले स्कूल को फीस के नाम पर कुछ भी नहीं मिला है और न ही कोई नया एडमिशन हुआ है। यहां तक की प्ले स्कूल ऑपरेटर कोविड वैक्सीन उपलब्ध होने के बावजूद इसमें कोई बदलाव नहीं देख पा रहे है।
1992 से ग्रेटर कैलाश में लिटिल क्रिएटिव माइंड्स प्ले स्कूल चलाने वाली विभा कुमार ने कहा, "वैक्सीन हमारे पुनरुद्धार का एकमात्र उपाय है।" उन्होंने आगे कहा कि महामारी के कारण माता-पिता अपने बच्चों को भेजने से बच रहे है, क्योंकि जब वे प्लेस्कूल में प्रवेश करते हैं तो ज्यादातर 18 महीने के होते हैं और यह उम्र माता-पिता को जोखिम में डाल रही है। 2018 में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने प्लेस्कूल के लिए कुछ आधार नियम निर्धारित किए, लेकिन वे काफी हद तक अनियमित हैं। पहले के एक अध्ययन ने प्री स्कूल के लिए 2019-24 में लगभग 19% की वृद्धि निर्धारित की थी, इसलिए उन्हें आय के आकर्षक स्रोतों के रूप में देखा गया। लेकिन कोविड से इस पर काफी असर पड़ा है।
यूनिसेफ ने मई में रिपोर्ट "प्री-स्कूलों और किंडरगार्टन पोस्ट-कोविड 19 की रिपोर्ट" रिपोर्ट कहती है, "प्राथमिक या माध्यमिक स्कूलों को फिर से खोलने के फैसले से पहले किंडरगार्टन को फिर से खोलने का निर्णय आ सकता है। प्री स्कूल से न केवल बच्चों बल्कि माता-पिता के काम पर वापस लौटने की क्षमता बढ़ेगी और छोटे बच्चों को तत्काल देखभाल की आवश्यकता होगी क्योंकि उनके माता-पिता काम पर लौट आएंगे।