By अनन्या मिश्रा | Jul 06, 2023
भारत के शीर्ष उद्योगपतियों में शामिल रहे धीरूभाई अंबानी का आज के दिन यानी की 6 जुलाई को निधन हो गया था। उनके द्वारा शुरू की गई रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड आज दुनिया की दिग्गज कंपनियों में शामिल है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इतना बड़ा बिजनेस शुरू करने वाला व्यक्ति एक समय पर तीर्थयात्रियों को भजिया बेचा करता था। धीरूभाई अंबानी ने अपने बचपन में आर्थिक तंगी को भी झेला था। लेकिन इसके बाद भी उनके ख्वाब बहुत बड़े थे। आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर धीरूभाई अंबानी के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और शिक्षा
गुजरात के एक छोटे से गांव में 28 दिसंबर 1932 धीरूभाई अंबानी का जन्म हुआ था। उनके पिता हीराचंद गोवरधनदास अंबानी गुजरात के चोरवाड गांव में स्कूल टीचर थे। वह अपनी माता-पिता की तीसरी संतान थे। आर्थिक तंगी के कारण धीरूभाई अंबानी ने 10वीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी और छोटे-मोट काम कर अपने परिवार की आर्थिक मदद किया करते थे। बता दें कि परिवार की मदद के लिए धीरूभाई गिरनार की पहाड़ियों के पास तीर्थयात्रियों को भजिया बेचा करते थे।
तीर्थयात्रियों की संख्या पर उनकी आय निर्भर करती थी। हालांकि आर्थिक रूप से कमजोर होने के बाद भी धीरूभाई ने दुनिया को बताया कि बड़ा कारोबार खड़ा करने के लिए आपके पास बड़ी-बड़ी डिग्रियों का होना जरूरी नहीं है और न ही आपका अमीर परिवार में पैदा होना जरूरी है। बल्कि अगर व्यक्ति में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो वह अपनी मेहनत के दम पर कुछ भी हासिल कर सकता है।
मुंबई की चॉल में रहते थे धीरूभाई
बता दें कि महज 17 साल की उम्र में नौकरी की इच्छा से वह अपने बड़े भाई रमणिकलाल के पास यमन चले गए। लेकिन बड़े सपने होने के कारण उनका नौकरी में मन नहीं लगा और वह वापस भारत लौट आए। जब साल 1958 में वह मुंबई आए तो अपने साथ थोड़ी सी जमापूंजी लेकर आए थे। इस दौरान वह मुंबई की एक चॉल में रहने लगे। धीरूभाई अपने साथ अदन के एक गुजराती दुकानदार के बेटे के पते का कागज साथ लेकर आए थे। ताकि उनके साथ वह मुंबई की च़ॉल में रूम शेयर कर सकें। इस व्यक्ति के अलावा उनका मुंबई में और कोई जानने वाला नहीं था।
ऐसे शुरू किया बिजनेस
धीरूभाई ने मुंबई पहुंचने के बाद अपनी छोटी सी बचत से कुछ व्यापार करने का जुगत लगाने लगे। वह व्यापार की तलाश में अहमदाबाद, जूनागढ़, बड़ौदा, राजकोट और जामनगर भी आते-जाते रहे। इस दौरान उन्होंने महसूस किया कि वह अपनी कम जमापूंजी से इन जगहों पर कपड़े, किराना या फिर मोटर पार्ट्स की दुकान लगा सकते थे। लेकिन दुकान उनको स्थिक आय देने का कम करती। यह उनका सपना नहीं था। उन्हें बिजनेस की दुनिया में तेजी से ग्रोथ करना था।
जिसके कारण वह फिर वापस मुंबई आ गए। यहां पर धीरूभाई ने रिलायंस कमर्शियल कॉरपोरेशन नाम के साथ एक ऑफिस की शुरूआत की। इस दौरान उन्होंने खुद को एक मसाला व्यापारी के तौर पर लॉन्च किया। उनके ऑफिस में एक मेज, दो कुर्सियां, एक पेन, एक इंकपॉट, एक राइटिंग पैड, पीने के पानी के लिए एक घड़ा और कुछ गिलास थे। इस ऑफिस को खोलने के बाद उन्होंने मुंबई थोक मसाला बाजार में घूमना शुरू कर दिया। फौरन पेमेंट की शर्त पर वह थोक के भाव विभिन्न उत्पादों की कोटेशन को इकट्ठा करने लगे।
कुछ समय बाद धीरूभाई को पता चला कि मसालों से ज्यादा सूत के व्यापार में मुनाफा है। इसके बाद उन्होंने नरोदा में एक वस्त्र निर्माण इकाई शुरू की। यहां से शुरूआत करने के बाद धीरूभाई ने अपनी जिंदगी में फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। दिन-रात मेहनत और हर रोज बेहतर करने के जज्बे ने रिलायंस को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया। बता दें कि साल 1958 में मात्र 15000 रुपए में धीरूभाई ने बिजनेस की शुरूआत की थी। वहीं धीरूभाई की मौत के आसपास रिलायंस ग्रुप की संपत्ति करीब 60,000 करोड़ के आकड़े को पार कर चुकी थी।
मौत
बता दें कि धीरूभाई अंबानी को दो बार ब्रेन स्ट्रोक आया था। पहली बार साल 1986 को उन्हें ब्रेन स्ट्रोक आया और फिर साल 2002 में दूसरी बार ब्रेन स्ट्रोक आया था। जिसके बाद 6 जुलाई 2002 को धीरूभाई अंबानी की मौत हो गई थी।