By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Sep 12, 2025
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक मामले में कहा है कि दुष्कर्म पीड़िता और उसके बच्चे की डीएनए की जांच का आदेश नियमित ढंग से नहीं दिया जा सकता क्योंकि इसके गंभीर परिणाम होते हैं।
अदालत ने रामचंद्र राम नामक एक व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी। उसने एक महिला और उसके बच्चे की डीएनए जांच की मांग खारिज किए जाने को चुनौती दी थी।
न्यायमूर्ति राजीव मिश्रा ने कहा, “भादंसं की धारा 376 (दुष्कर्म) के तहत उस बच्चे के पितृत्व का पता लगाने की आवश्यकता नहीं होती। दुष्कर्म पीड़िता और उसके बच्चे के डीएनए की जांच के गंभीर सामाजिक परिणाम होते हैं। बाध्यकारी और अपरिहार्य परिस्थितियां पैदा होने पर ही डीएनए की जांच का आदेश दिया जा सकता है।”
मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता के खिलाफ भादसं की धाराओं 376 (दुष्कर्म), 452 (घर में घुसने), 342 (गलत ढंग से कैद करने), 506 (आपराधिक धमकी) और पॉक्सो अधिनियम की धारा 5/6 के तहत आपराधिक मामला दर्ज किया गया था।
जांच के बाद याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया गया और मामले में सुनवाई आगे बढ़ी। बाद में पांच गवाहों की गवाही के बाद याचिकाकर्ता ने दुष्कर्म पीड़िता और उसके बच्चे के डीएनए की जांच के लिए एक आवेदन दाखिल किया जिसे निचली अदालत द्वारा खारिज कर दिया गया।
इसके बाद, उसने उच्च न्यायालय का रुख किया। उसकी दलील दी थी कि निर्दोष साबित होने के लिए डीएनए जांच आवश्यक है। अदालत ने 22 अगस्त के निर्णय में कहा कि दुष्कर्म पीड़िता और उसके बच्चे की डीएनए जांच कराने के लिए ऐसी कोई बाध्यकारी परिस्थितियां नहीं हैं जो जांच की आवश्यकता दर्शाती हों। अदालत ने निचली अदालत के निर्णय को सही ठहराया।