History Revisited: क्या आप 18 साल तक एयरपोर्ट पर रहने वाले Terminal Man की कहानी जानते हैं?

By अभिनय आकाश | Jul 21, 2022

आप जब कभी भी एयरपोर्ट पर जाते हैं तो आपको हर पल अपनी फ्लाइट का इंतजार रहता है और नजरें विमानों के आगमन/प्रस्थान की जानकारी देने वाली डिस्प्ले बोर्ड पर रहती है। ये अनुभव थोड़ा हटकर होता है। हवाई अड्डे पर आपको हर तरह के लोग देखने को मिलते हैं। कुछ अपनी यात्रा को लेकर उत्साहित होते हैं तो कई खाते-पीते और शॉपिंग करते दिखते हैं। लेकिन क्या आपने कभी किसी व्यक्ति के एयरपोर्ट पर रहने के बारे में सुना है। क्या आप किसी ऐसे इंसान के बारे में जानते हैं जो सालों से एयरपोर्ट पर रह रहा हो। वैसे तो एयरपोर्ट पर कई कर्मचारी रहते हैं। लेकिन शायद ही आपने किसी ऐसे इंसान के बारे में सुना हो जो बिना किसी काम और बिना एयरलाइंस में होते हुए भी एयरपोर्ट पर रहता हो। आज आपको ऐसे ही एक इंसान की कहानी सुनाने जा रहा हूं जो पेरिस एयरपोर्ट पर लगभग 18 साल तक रहा है।

 

ईरान में शाह शासन के विरोध पर देश निकाला

18 साल तक पेरिस एयरपोर्ट पर रहने वाले इस शख्स का नाम मेहरान करीमी नासेरिक है। मेहरान का जन्म साल 1946 में ईरान के मस्जिद सुलेमान शहर में हुआ था। मेहरान बताते हैं कि साल 1977 में उन्होंने ईरान में शाह शासन का विरोध किया था। इसलिए उन्हें देश से निकाल दिया गया। ईरान ने उनसे उनकी नागरिकता छीन ली, सारे दस्तावेज सब ले लिया और कहा कि अब तुम जाओ। अब ये तुम्हारा देश नहीं है। मेहरान करीमी की मां स्कॉटलैंड से थी। मां के जरिये उन्हें काफी मदद मिली और ब्रिटेन में पढ़ाई करने का मौका भी मिला। जब इरान की तरफ से मेहरान की नागरिकता ली गई तो उसने यूनाइटेड नेशन के जरिये रिफ्यूजी का स्टेटस पाने के लिए अलग-अलग देशों में अपील की। लेकिन कई देशों से अपील के बाद काम बना नहीं। कई जगहों पर एप्लीकेशन डालने के बाद मेहरान को बेल्जियम स्थित यूनाइटेड नेशन हाई कमीशनर फॉर रिफ्यूजी इन बेल्जियम ने रिफ्यूजी का सर्टिफिकेट दे दिया। जिसके जरिए वो यूरोप के किसी भी देश में वैध तरीके से रह सकते थे।

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एयरपोर्ट के बाहर जानें की इजाजत नहीं 

ये बात सच है कि मेहरान ने पेरिस एयरपोर्ट के टर्मिनल वन पर 18 साल गुजारे। लेकिन उन्हें ईरान से निकाला गया। इस पर भी विवाद है। बताया जाता है कि उन्हें इरान से कभी निकाला ही नहीं गया था। 1986 में उन्होंने सोचा की अपनी मां के साथ ब्रिटेन में ही जाकर सेटल हो जाएंगे। 26 अगस्त 1988 में मेहरान लंदन आए। सभी डॉक्यूमेंट उनके पास था। फ्लाइट ली और लंदन के लिए उड़ान भरी। लेकिन जब वो लंदन के हेथ्रो एयरपोर्ट पर उतरते हैं तो वहां के ब्रिटिश हाई कमीश्नर उनसे उनका डॉक्यूमेंट मांगते हैं। इस दौरान में उनका ब्रीफकेस भी चोरी हो जाता है। उसी ब्रीफकेस में उनके सारे डॉक्यूमेंट थे। जिसमें रिफ्यूजी सर्टिफिकेट भी था। उनके पास इमीग्रेशन ऑफिस को दिखाने के लिए कोई पासपोर्ट नहीं था। ब्रिटिश इमीग्रेशन के स्टॉफ ने उन्हें अगली फ्लाइट से पेरिस भेजने का फैसला किया। क्योंकि मेहरान वहीं से फ्लाइट लेकर लंदन आए थे। मेहरान यहां से फ्रांस आए। उन्हें फ्रांस में गिरफ्तार कर लिया गया। पूछताछ में वो सारी आपबीती बताते हैं। ऐसे में वो पेरिस से ही लंदन गए थे तो उनकी पिछली ट्रैवल हिस्ट्री निकाली जाती है। रिकॉर्ड में सारी चीजें लीगल पाई जाती है। बाद में उन्हें छोड़ दिया गया। क्योंकि एयरपोर्ट में उनकी एंट्री लीगल थी। लेकिन उन्हें एयरपोर्ट के बाहर जानें की इजाजत नहीं थी। क्योंकि उनके पास वीजा और  बाकी दस्तावेज नहीं थे। मेहरान के पास लौटने के लिए न तो कोई देश था और न ही कोई घर था। इसलिए एयरपोर्ट का टर्मिनल वन ही उनका घर बन गया। पेरिस एयरपोर्ट के डिपार्चर लॉन्ज टर्मिनल नं 1 पर ही रहने को उसे रहने को कहा गया। ये 26 अगस्त 1988 की बात है। मेहरान करीमी उसी डिपार्चर लॉन्ज पर रूके। धीरे-धीरे वक्त बीता और पेरिस के एयरपोर्ट का टर्मिनल 1 मेहरान करीमी का घर बन गया। वो वहीं बैठते, सोते, वहां का वॉशरूम यूज करते। जब एयरपोर्ट के स्टॉफ ने ये सब देखा तो उनकी कहानी सुनने के बाद खाना और अखबार मेहरान को देना शुरू किया।

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फ्रेंच कोर्ट में पहुंचा मामला

1992 में फ्रेंच ह्यूमन राइट से जुड़े केस लड़ने वाले एक वकील ने जब मेहरान करीमी की कहानी के बारे में जाना तो कोर्ट से इजाजत लेकर वो एयरपोर्ट जाते हैं और उनका केस लड़ने की इच्छा जाहिर करते हैं। कोर्ट में उन्होंने कहा कि इस तरह से एयरपोर्ट पर रोक कर रखना गलता है। सभी पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि मेहरान करीमी की एंट्री पेरिस एयरपोर्ट पर लीगल है, इसलिए इन्हें वहां से हटाया नहीं जा सकता है। लेकिन साथ ही उन्हें पेरिस के अंदर आने की इजाजत भी नहीं दी जा सकती। फिर मेहरान करीमी का परमानेंट घर एयरपोर्ट ही बन गया। इस दौरान उनकी कहानी जानने के लिए आते रहते। समर्थन वाली चिट्ठियां भी आती रहती। लगभग 18 सालों तक ये सिलसिला चलता रहा। 


द टर्मिनल मैन

जुलाई 2006 में मेहरान नारसेरी को अस्पताल में तबीयत बिगड़ने के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया इस दौरान मेहरान को टर्मिनल वन में उनके रहने की जगह को हटा दिया गया। बाद में फ्रेंच रेड क्रॉस ने एयरपोर्ट के पास ही एक होटल में एक कमरा लिया और करीमी को वहीं रखा और ये आश्वासन दिया कि वो इससे बाहर कहीं नहीं जाएंगे। 6 मार्च 2007 में पेरिस की चैरिटी रिसेप्शन सेंटर ने मेहरान की जिम्मेदारी लेने का फैसला करते हुए उसे पेरिस के एक घर में रखा। 2008 के बाद से मेहरान वहीं रह रहे हैं। लेकिन इसी बीच 2004 में उनकी आत्मकता द टर्मिनल मैन प्रकाशित हुई। ये किताब उन्होंने ब्रिटिश लेखक एंड्यू डॉन्किन के साथ मिलकर लिखी थी। ब्रिटेन के संडे टाइम्स ने इसे बेहतरीन और दिल को झकझोर देने वाली किताब करार दिया था। बाद में उन पर कई फिक्शनल और नॉन फिक्शनल फिल्में भी बनीं। साल 2003 में ऑस्कर अवार्ड विनर स्टीफन स्पीलबर्ग को मेहरान करीमी की कहानी पता चलने के बाद उनसे इस पर फिल्म बनाने की बात कहते हुए राइटर्स मांगते हैं। बदले में स्पीलबर्ग की कंपनी करीमी को ढाई लाख डॉलर का चेक देते हैं। तो आज हमने आपको एयरपोर्ट पर 18 साल तक रहने वाले शख्स की कहानी बताई।


- अभिनय आकाश

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