By संतोष उत्सुक | Jun 14, 2025
इंसान कुत्तों पर मेहरबान हैं और कुत्ते इंसानों पर। इंसान चाहे इंसान और इंसानियत की परवाह न कर पाएं लेकिन अपनी सुरक्षा के लिए ही नहीं जानवर प्रेमी का ठप्पा लगवाने के लिए कुत्ते पाल रहा है। उन्हें सुबह या शाम घुमाने ले जाता है और जैसे उसे खुद भी हर कहीं मूत्र निवृत होने की पारम्परिक आदत है उसी तरह से कुत्तों से करवाता है। उसे जानवरों से प्यार ज़रूर दिखाना है लेकिन उनका मल उठाने में उसे शर्म आती है। इस मामले में वह विदेशियों की नक़ल नहीं कर सकता।
इंसान ने इंसान से मिलना जुलना, बात करना कम कर दिया है लेकिन आवारा कुत्तों को अपना लिया है। आवारा कुत्ते मस्त हैं। उन्हें रोज़ाना खाना मिल रहा है। इंसान के पड़ोसी पस्त हैं, उन्हें सुबह से शाम तक बदबू, कुत्तों के मल मूत्र, उनके भौंकने से वाबस्ता होना पड़ रहा है। कानून बेचारा परेशान है। नगरपालिका के पास शेल्टर बनाने के लिए ज़मीन नहीं है। बजट भी नहीं है। उनके पास शहर की सफाई के लिए पैसे नहीं है। इंसान को कुत्तों से बचाने के लिए कहां होगा।
पशुपालन विभाग कई बार मेहरबान हो जाता है। उनके पास बजट आता है जिससे उन्होंने एंटी रेबीज़ इंजेक्शन उपलब्ध करवा दिए हैं। अखबार में समझाया है कि कुत्ता काट ले तो सबसे पहले क्या करें। वे यही कर सकते थे। आवारा कुत्तों या उनके प्रेमियों को उचित कानूनी व्यवहार तो वे भी नहीं सिखा सकते। नगरपालिका वालों के पास दूसरे ज्यादा ज़रूरी काम हैं तभी तो पशु पालन विभाग ने आम जनता से अपील की है कि अपने आसपास कहीं भी कोई लावारिस कुत्ता देखें तो घबराएं नहीं, निकवर्ती अस्पताल या औषधालय में जाकर निशुल्क डोज़ लगवा सकते हैं। बढ़िया सार्वजनिक सुविधा है, आम जनता को कुत्ता काटे तो एंटी रेबीज़ लगवाना ही है और लावारिस कुत्तों को भी जनता ही एंटी रेबीज़ लगवाए।
मान लीजिए सुबह सुबह घूमने जा रहे हैं, आवारा कुत्ता सामने से आ रहा है, आप उससे बच निकलना चाहते हैं, मगर वह कहता है कि मुझे आपको काटना है, तो क्या इतनी मोहलत कटवाने वाले के पास होगी कि पूछ ले, प्रिय कुत्ते, आप किसी बीमारी या रेबीज़ से पीड़ित तो नहीं। उससे कहें कि चलिए आपको पशु औषधालय ले चलता हूं जो अभी खुला नहीं होगा। आवारा कुत्ते को अगर आप पसंद आ गए हो तो काट ही लेगा, इशारों में भी यह नहीं कहेगा कि अब आप एंटी रेबीज़ लगवा लेना। उस वफादार जानवर को क्या पता कि पालतू कुत्तों के मालिक भी अपने कुत्तों की वेक्सीनेशन करवाने में लापरवाही बरतते हैं।
सरकार के पास इंसान नहीं संभलते जानवरों को कैसे संभाले। यह तो सृष्टि रचयिता की ही गलती है कि इतने ज़्यादा बंदर और कुत्ते पैदा करवा दिए। इनकी नसबंदी करना मुश्किल काम है तभी तो इस काम के लिए आए बजट की ही नसबंदी कर दी जाती है।
बेचारा प्रशासन तो सोने के लिए होता है। बरसात हो या बर्फ का गिरना, प्रशासन का ध्वस्त होना निश्चित है। कुत्ते द्वारा आम आदमी को काटना तो छोटी सी घटना है। हां, किसी महंगी कुर्सी पर विराजने वाले अफसर को किसी भी किस्म का कुत्ता काट ले तो कार्रवाई की शामत आ सकती है।
- संतोष उत्सुक