कुछ नमकीन हो जाए (व्यंग्य)

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संतोष उत्सुक । Jun 12 2025 5:06PM

वैसे तो सेहत बनाए रखने के लिए और ज़िंदगी की खुशियां बढाने के लिए सैंकड़ों स्टार्टअप कितनी ही योजनाएं स्टार्ट कर चुके हैं। खुशी तो हम, शरीर, दिल और दिमाग से भी महसूस कर सकते हैं। उसमें कुछ खाना तो बाहरी क्रिया है।

जो बात मीठे में है वह किसी और में नहीं है। सुबह से शाम तक लाखों प्रवाचक मीठा बोलते रहते हैं। मीठा बोलने को कहते हैं। प्रसाद में मीठा खिलाते हैं लेकिन मीठा खाना और सुनना खतरनाक हुआ जाता है। मीठा खाकर आराम से बैठने के कारण सेहत परेशान हो रही है। इतनी परेशान हो रही है कि हमारा देश दुनिया की मीठी राजधानी बनने की ओर अग्रसर है। हो सकता है वास्तविकता में बन भी चुका हो क्यूंकि सच, अब बेचारा हो चुका है। पता नहीं वक़्त के किस कोने में सर झुकाए बैठा हो ।

‘कुछ मीठा हो जाए’ विज्ञापन ने प्यार तो बहुत पाया लेकिन जितना नुकसान मीठा खाने वालों का हुआ यह मीठा खाने वाले नहीं समझते। मीठे के पीछे दुनिया इतनी दीवानी है कि खुशियों की मूल मिठाई यानी गुड़ को भी नहीं बख्शा गया, उसे ज्यादा मीठा बनाने के लिए उसमें चीनी मिलाना कब से हो रहा है। असली चीनी की जगह जो नकली चीनी खिलाई जा रही है वह असली चीनी से ज्यादा खतरनाक बताई जाती है।

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खुशी मनाने और मनवाने के लिए मुंह मीठा करवाना हमारी राष्ट्रीय परम्परा है। खुश करने वाली कोई घटना हुई और मुंह मीठा करवाना शुरू। लेकिन अब इस बारे संजीदा विचार होना चाहिए और सेहत में सुधार बनाए रखने के लिए कहा जाए, ‘कुछ नमकीन हो जाए’। इससे सेहत का नुकसान कम हो सकता है। वैसे तो खुशी मनाने के लिए कड़वा हो जाए कहने का प्रचलन भी बढ़ रहा है। पीने वाले तो यही मानते हैं कि खुशी की पार्टी तो तभी होती है जब बोतल खुले। एक बार मिली ज़िंदगी का पूरा लुत्फ़ लेने के लिए पीना पिलाना बढ़ रहा है। महिलाएं इसमें सक्रिय सहयोग कर रही हैं। हमारे देश को कड़वा जल की खपत में दुनिया भर में काफी बढ़त मिली है। खुशी के मौक़ा पर बच्चों, युवाओं और महिलाओं से बच बचाकर, ‘कुछ कडवा हो जाए’ भी कहा जा रहा है। 

वैसे तो सेहत बनाए रखने के लिए और ज़िंदगी की खुशियां बढाने के लिए सैंकड़ों स्टार्टअप कितनी ही योजनाएं स्टार्ट कर चुके हैं। खुशी तो हम, शरीर, दिल और दिमाग से भी महसूस कर सकते हैं। उसमें कुछ खाना तो बाहरी क्रिया है। कुछ न भी खाओ तो भी खुशी ज़िंदगी को उत्साह से भर देगी।  इसलिए बदलते ज़माने के साथ, ‘कुछ मीठा हो जाए’ की जगह ‘कुछ खट्टा-मीठा हो जाए’ ही कह दिया जाए तो क्या हर्ज़ है। किसी को मीठा ज्यादा परेशान कर रहा है तो ‘सिर्फ खट्टा हो जाए’ बोलकर सिर्फ खट्टा ही खाया जा सकता है। बाज़ार ने सामान को बहुत ज्यादा बदल दिया है तो खुशी मनाने के लिए कुछ नया अलग खाना शुरू करना चाहिए।

तो फिर हो जाए, ‘कुछ मीठा हो जाए’ की जगह बदले ज़माने की तरह यानी ‘कुछ नमकीन हो जाए’। 

- संतोष उत्सुक

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