राष्ट्रगान की अनिवार्यता राष्ट्र के प्रति प्रेम और बढ़ाएगी

By राहुल लाल | Dec 02, 2016

ऐसा कोई भारतीय नहीं होगा, जो गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के लिखे राष्ट्रगान के शब्दों और उन्हें दी गई धुन से गुजरा न हो। राष्ट्रगान पिछले 66 वर्षों से हमारी आजादी और संप्रभुता पर गर्व करने का मौका देता रहा है। 1911 में रवीन्द्रनाथ टैगोर की कलम से निकले इस गीत को 24 जनवरी 1950 को भारत का राष्ट्रगान घोषित किया गया। तब से ही यह हमारी राष्ट्रीय अस्मिता, संस्कृति, एकता व अखंडता का प्रतीक बना हुआ है।

 

30 नवंबर, 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक आदेश देते हुए कहा कि सभी सिनेमा हॉल और मल्टीप्लेक्स में अब फिल्मों को शुरू करने से पहले राष्ट्रीय गान जरूर बजेगा। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि राष्ट्रीय गान बजते समय सिनेमा हॉल के पर्दे पर राष्ट्रीय ध्वज दिखाया जाना भी अनिवार्य होगा और सिनेमाघर में मौजूद सभी लोगों को राष्ट्रीय गान के सम्मान में खड़ा होना होगा। राष्ट्रगान के समय इंट्री एवं एक्जिट गेट बंद रहेंगे, जो राष्ट्रगान के बाद ही खुलेंगे।

 

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आपत्तिजनक वस्तुओं या जगहों पर राष्ट्रगान को प्रिंट नहीं किया जाना चाहिए। यही नहीं कोई भी व्यक्ति राष्ट्रगान का उपयोग कर व्यवसायिक लाभ नहीं उठा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय गान राष्ट्रीय पहचान, राष्ट्रीय एकता और संवैधानिक देशभक्ति से जुड़ा है। कोर्ट के आदेश के मुताबिक, ध्यान रखा जाए कि किसी भी व्यवसायिक हितों में राष्ट्रीय गान का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। इसके आलावा किसी भी तरह की गतिविधि में ड्रामा क्रिएट करने के लिए भी राष्ट्रीय गान का प्रयोग कदापि नहीं होगा तथा इसे वैरायटी सांग के तौर पर नहीं गाया जा सकता।

 

समाचारों में प्राय: राष्ट्रगान के अपमान का मुद्दा चर्चा में रहता है। पिछले वर्ष 31 अक्टूबर 2015 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के मंत्रिमंडल विस्तार कार्यक्रम के दौरान राज्यपाल राम नाईक ने राष्ट्रगान को बीच में ही रुकवा दिया था। इससे एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया था। दरअसल शपथ ग्रहण समारोह को समाप्त करने की अनुमति देकर बीच में राज्यपाल को याद आया कि उन्हें लोगों को सरदार पटेल जयंती पर राष्ट्रीय एकता की शपथ दिलानी थी और उन्होंने "राष्ट्रगान रोको" कहकर बीच में ही राष्ट्रगान रुकवा दिया, जिसकी काफी आलोचना हुई। राज्यपाल चाहते तो राष्ट्रगान को पूर्ण होने के बाद भी राष्ट्रीय एकता की शपथ लोगों को दिलवा सकते थे। राष्ट्रगान का अब इस प्रकार अपमान न हो, इसके लिए उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश में स्पष्ट कर दिया कि एक बार राष्ट्रीय गान प्रारंभ होने के बाद फिर अंत तक गाया जाना चाहिए।

 

इसी तरह पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के शपथ ग्रहण समारोह खत्म होने पर राष्ट्रगान के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला फोन पर व्यस्त थे। इस विवाद के गहराने पर फारुख अब्दुल्ला को माफी मांगनी पड़ी। हाल ही में मुंबई के एक थियेटर में दर्शकों ने राष्ट्रगान के दौरान एक परिवार के खड़े न होने को लेकर आक्रोश जताया और उस परिवार को थियेटर छोड़कर जाने पर बाध्य होना पड़ा था। तब भी प्रश्न उठा था कि क्या राष्ट्रगान पर खड़ा होना कानूनी रूप से आवश्यक है? प्रिवेंशन ऑफ नेशनल ऑनर एक्ट, 1971 केवल राष्ट्रगान में बाधा पहुँचाने तक ही सीमित है। इसमें राष्ट्रगान के गाने या बजाने के दौरान बैठे या खड़े होने के बारे में कुछ नहीं कहा गया था। 5 जनवरी 2015 को भारत सरकार ने एक आदेश में कहा था- "जब भी राष्ट्रगान गाया या बजाया जाए, वहाँ मौजूद लोगों को सावधान मुद्रा में खड़ा हो जाना चाहिए। ज्ञातव्य है कि उपरोक्त आदेश में किसी दंड का उल्लेख नहीं किया गया है। प्रिवेंशन ऑफ नेशनल ऑनर एक्ट, 1971 की धारा-3 के अनुसार राष्ट्रगान के गायन को रोकने अथवा किसी समूह को राष्ट्रगान के दौरान बाधित करने वाले व्यक्ति को 3 वर्ष का कारावास अथवा जुर्माना अथवा दोनों दंड दिया जा सकता है। इसी तरह 1971 के कानून के अनुसार यदि कोई इसका दोबारा उल्लंघन करता है तो उसे कम से कम एक साल कैद की सजा का प्रावधान है।

 

लेकिन 30 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट कर दिया कि सभी को राष्ट्रगान के समय खड़ा होना होगा। साथ ही दिव्यांगों को इसके अपवाद में भी रखा है। इसके पूर्व 1987 में बिजोए एम्मानुएल बनाम केरल राज्य विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रगान के समय सम्मानपूर्वक खड़ा है और गा नहीं रहा है, तो यह अपमान की श्रेणी में नहीं आएगा। दरअसल इस वाद में कुछ विद्यार्थियों को राष्ट्रगान नहीं गाने के आरोप में स्कूल से निकाल दिया गया था। कहा गया कि वे खड़े होते हैं परंतु राष्ट्रगान गाते नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट ने स्कूल को उन बच्चों को वापस लेने के लिए कहा था।

 

राष्ट्रगान का पूर्ण संस्करण अब तक 52 सेकेण्ड में गाया जाता है, जबकि राष्ट्रगान की पहली और अंतिम पंक्तियों के साथ एक संक्षिप्त संस्करण भी कुछ विशिष्ट अवसरों पर 20 सेकेण्ड में गाया या बजाया जाता था। लेकिन 30 नवंबर के सुप्रीम कोर्ट के आदेश में स्पष्टत: कहा गया है कि 20 सेकेण्ड का संक्षिप्त संस्करण किसी भी रूप में गाया और बजाया नहीं जा सकेगा। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि फिल्म या टीवी धारावाहिकों के बीच राष्ट्रगान का प्रयोग अचानक से नहीं होगा क्योंकि लोगों को इसके पूर्व सम्मान देने के लिए संभलने का मौका नहीं मिलेगा।

 

1975 से पूर्व फिल्मों के समाप्ति के बाद राष्ट्रगान को गाने की परंपरा थी। लेकिन वहाँ लोगों द्वारा इसको समुचित सम्मान न देने पर इस पर रोक लगा दी गयी थी। कुछ वर्षों बाद फिल्मों के प्रदर्शन से पहले केरल के सरकारी सिनेमाघरों में फिर से राष्ट्रगान को प्रोत्साहन दिया गया। वहीं महाराष्ट्र में भी अब कुछ वर्षों से फिल्म की शुरुआत से पहले राष्ट्रगान बजाया जाता है लेकिन 30 नवंबर के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद अब संपूर्ण देश में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य होगा। इस आदेश को 10 दिनों में क्रियान्वित कराया जाना है।

 

एक तरह से राष्ट्रगान के नियमन संबंधी स्पष्ट निर्देशों का अब तक अभाव था, जिसे 30 नवंबर 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश ने काफी हद तक पूरा किया है। राष्ट्रगान के बारे में भारतीय संविधान के मूल कर्तव्यों के अंतर्गत अनुच्छेद 51-A में स्पष्ट कहा गया है कि प्रत्येक राष्ट्रवासी का यह कर्तव्य होगा कि वह राष्ट्रगान और राष्ट्रध्वज का आदर करे। हमारा संविधान जहाँ हमें मूल अधिकारों (अनुच्छेद-12से 35 तक) से विभूषित करता है, वहीं वह हमसे मौलिक कर्तव्य की अपेक्षा भी करता है। एक विकसित लोकतंत्र के लिए यह आवश्यक है कि उसके नागरिक न केवल अधिकारों के प्रति सजग रहें, अपितु अपने संवैधानिक मूल कर्तव्यों के निर्वहन में भी सजग रहें। सुप्रीम कोर्ट का बुधवार 30 नवंबर का आदेश इस संदर्भ में मील का पत्थर साबित होगा।

 

- राहुल लाल

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