By अनन्या मिश्रा | Aug 26, 2024
आज के दिन यानी की 26 अगस्त को मदर टेरेसा का जन्म हुआ था। मदर टेरेसा का जीवन संतों की तरह था, वह सभी से प्रेम से मिलती और करुणा भाव उनमें कूट-कूटकर भरा था। उनके अंदर मानव सेवा का जज्बा कमाल का था। उन्होंने मानव सेवा के संकल्प का सफर अकेले ही शुरू किया था। मदर टेरेसा का जीवन संघर्षपूर्ण रहा, लेकिन वह सेवाभाव के जज्बे से आगे बढ़ती रहीं। आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर मदर टेरेसा के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म
अल्बानिया में 26 अगस्त 1910 को मदर टेरेसा का जन्म हुआ था। जन्म के अगले दिन उनको ईसाई धर्म की दीक्षा मिली, जिस कारण वह 27 अगस्त को अपना जन्मदिन मनाती थीं। उन पर बचपन से ही मिशिनरी जीवन का अधिक प्रभाव था, वह बंगाल के मिशिनरियों के सेवाकार्यों की कहानियां सुनती थीं, जिस कारण उनके मन में भारत आने का विचार पनपने लगा। मदर टेरेसा का असली नाम एक्नेस था। उन्होंने अपना धर्म परिवर्तन करने का फैसला किया और वह आयरलैंड के इंस्टीट्यूट ऑफ ब्लेस्ड वर्जिन मेरी चली गईं। जहां से वह अंग्रेजी भाषा सीखकर भारत जाने के सपने को पूरा कर सकें। इसके बाद मदर टेरेसा ने कभी अपने परिवार वालों को नहीं देखा।
शिक्षा
साल 1929 में एक्नेस भारत पहुंची और दार्जलिंग में रहने लगीं। इसी दौरान उन्होंने बंगाली सीखी और कॉन्वेंट के पास शिक्षण कार्य शुरू किया। साल 1931 में एक्नेस ने पहली बार धार्मिक प्रतिज्ञा ली और अपना नाम मदर टेरेसा रख लिया। मदर टेरेसा ने कलकत्ता में करीब 20 साल तक लोरेट कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ाया। लेकिन मदर टेरेसा का मन कलकत्ता में गरीबी को देखकर काफी द्रवित होता था।
ऐसे बदला जीवन
साल 1943 में आए बंगाल अकाल में और फिर 1946 में साम्प्रदायिक हिंसा ने मदर टेरेसा को अंदर से झझकोर कर रख दिया। इसी दौरान जब वह दार्जलिंग जा रही थीं, तभी उनके अंदर से आवाज आई और उन्हें ऐसा लगा जैसे ईश्वर उनको आदेश दे रहे हैं कि वह गरीबों की सेवा करें। इसके बाद उन्होंने शिक्षण कार्य छोड़कर लोगों की सेवा करने का फैसला लिया।
संघर्ष की हुई शुरुआत
स्कूल छोड़ने के बाद साल 1948 से मदर टेरेसा ने पूरी तरह से गरीबों के लिए मिशिनरी कार्य शुरू किया। उन्होंने दो साधारण कपास की साड़ियां लीं, जिनमें नीली पट्टी थी। फिर वह गरीबों की झोपड़ी में जाकर रहने लगीं, लेकिन किसी तरह का सहयोग न मिलने पर उन्होंने खुद को जिंदा रखने के लिए भीख तक मांगी। वहीं लोग उनको संदेह की नजरों से देखते हुए नजरअंदाज कर देते थे।
विशुद्ध सेवा करती रहीं
मदर टेरेसा की संकल्पशक्ति के आगे चुनौतियां भी न ठहर सकीं। धीरे-धीरे युवा महिलाएं उनसे जुड़ने लगीं और उनकी मदद से पुअरेस्ट अमंग द पुअर नाम का धार्मिक समुदाय बनाया। मदर टेरेसा बिना किसी भेदभाव के गरीबों की सेवा करने लगीं और लोग उनके कामों में हाथ बंटाने लगे। बता दें कि मदर टेरेसा ने कोढ़ रोगियों के लिए खूब सेवा की।
साल 1950 में मदर टेरेसा को वैटिकन से उनके मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्वीकृति मिली। यह धार्मिक सिस्टर्स समूह गरीबों को निस्वार्थ सेवा देने का काम कर रहा था। मदर टेरेसा के निधन के समय मिशनरीज ऑफ चैरिटी 120 से ज्यादा देशों में 450 ब्रदर्स और पांच हजार सिस्टर्स काम कर रहे थे।