नहीं रहे भारत के पूर्व राजदूत केएस बाजपेयी, 92 साल की उम्र में ली अंतिम सांस

By अंकित सिंह | Aug 31, 2020

अमेरिका, चीन और पाकिस्तान में भारत के राजदूत रहे कात्यायनी शंकर बाजपेयी का रविवार को निधन हो गया। वह 92 वर्ष के थे। बाजपेयी अमेरिका, चीन और पाकिस्तान में भारत के राजदूत रहे है। उनके परिवार ने एक बयान में यह जानकारी दी। बाजपेयी के परिवार में पत्नी मीरा बाजपेयी और दो पुत्र धर्म और जयंती बाजपेयी हैं। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बाजपेयी के निधन पर शोक व्यक्त किया है। उन्होंने एक ट्वीट में कहा, ‘‘राजदूत शंकर बाजपेयी के निधन पर बहुत दुख हुआ। हममें से कई को उनकी कमी खलेगी।’’ बयान के अनुसार वह भारत के तीन सबसे महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण पदों पर राजदूत बनने वाले कुछ करियर राजनयिकों में से एक थे। बाजपेयी के परिवार ने बयान में बताया कि बाजपेयी अमेरिका में भारत के राजदूत थे जब पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 1985 में वाशिंगटन की अपनी पहली महत्वपूर्ण यात्रा की थी। इसमें कहा गया है कि एक युवा अधिकारी के रूप में, वह 1965 के युद्ध के दौरान पाकिस्तान में पद पर रहे। वर्ष 1966 में, वह पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अयूब खान के साथ शिखर सम्मेलन के लिए (पूर्व) प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के साथ ताशकंद गए। बयान में कहा गया है कि 1986 में सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त होने के बाद, बाजपेयी ने 1987-88 में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय सहित कई विश्वविद्यालयों में अकादमिक क्षेत्र में सेवाएं दी और वह कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले में 1989-92 में ‘विजिटिंग प्रोफेसर’ भी रहे। उन्होंने 2008 से 2010 तक राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया।

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पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह ने दिग्गज राजनयिक को याद करते हुए कहा कि वाह भारत के बेहतरीन राजनयिकों में से एक थे। बाजपेयी 1952 में विदेश सेवा में शामिल हुए। उन्होंने कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। वह इंदिरा गांधी के विश्वसनीय अधिकारियों में से एक थे। 1960 के दशक में उन्होंने पाकिस्तान में एक छोटे अधिकारी के रूप में कार्य किया जब पश्चिम क्षेत्र में पाकिस्तान के साथ युद्ध छिड़ गया था। वह लाल बहादुर शास्त्री के साथ ताशकंद भी गए हुए थे। बाजपेयी ने शीत युद्ध के दौरान संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में भारत के लिए नए अवसरों को भी शुरू किया। बाजपेयी सुदैव विदेश नीति के साथ जुड़े रहे। वह कविता लिखने के शौकीन थे। साथ ही साथ खाने-पीने के भी शौकीन थे। उन्हें फिल्मों का भी शौक था।

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