राफेल मामले में फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति का खुलासा, बढ़ सकती है मोदी सरकार की टेंशन

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Sep 21, 2018

नयी दिल्ली। एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में फ्रांसीसी मीडिया की एक खबर में फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के हवाले से कथित तौर पर कहा गया कि 58,000 करोड़ रुपये के राफेल युद्धक विमान सौदे में भारत सरकार ने रिलायंस डिफेंस को दसॉल्ट एविएशन का साझेदार बनाने का प्रस्ताव दिया था और फ्रांस के पास कोई विकल्प नहीं था। ओलांद की टिप्पणी इस मामले में भारत सरकार के रूख से इतर है। इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए शुक्रवार को रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, ‘‘पूर्व फ्रांसीसी राष्ट्रपति के इस बयान कि भारत सरकार ने एक खास संस्था को राफेल में दसॉल्ट एविएशन का साझीदार बनाने के लिये जोर दिया, की जांच की पुष्टि की जा रही है।’’

 

प्रवक्ता ने यह भी कहा, ‘‘एक बार फिर इस बात को जोर देकर कहा जा रहा है कि इस वाणिज्यिक फैसले में न तो सरकार और न ही फ्रांसीसी सरकार की कोई भूमिका थी।’’ राफेल के निर्माता दसॉल्ट एविएशन ने करार के दायित्वों को पूरा करने के लिये रिलायंस डिफेंस को अपना साझीदार चुना। सरकार यह कहती रही है कि ऑफसेट साझीदार के चयन में उसकी कोई भूमिका नहीं है। अरबों डॉलर के इस सौदे में ओलांद की इस टिप्पणी के बाद देश में सियासी आरोप-प्रत्यारोप का दौर और तेज होने की उम्मीद है। 

 

फ्रांसीसी मीडिया की खबर में ओलांद का हवाला देते हुए कहा गया, ‘‘इसमें हमारी कोई भूमिका नहीं थी...भारत सरकार ने इस सेवा समूह का प्रस्ताव दिया था और दसॉल्ट ने (अनिल) अंबानी समूह के साथ बातचीत की। हमारे पास कोई विकल्प नहीं था, हमने वह साझीदार लिया जो हमें दिया गया।’’ कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों ने इस खबर के बाद मोदी सरकार पर करार को लेकर अपने हमले और तेज कर दिये हैं। 

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 अप्रैल 2015 को पेरिस में तत्कालीन फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के साथ बातचीत के बाद 36 राफेल विमानों की खरीद का ऐलान किया था। विपक्ष आरोप लगाता रहा है कि सरकार ने निजी कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिये सरकारी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के बजाए रिलायंस डिफेंस को चुना जिसके पास एयरोस्पेस सेक्टर का कोई पूर्व अनुभव नहीं था।

 

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