By अभिनय आकाश | Dec 10, 2020
ऐसे क्षण में जब सब कुछ जैसे रूका हुआ हो, थमा हुआ हो। रुकी हुई राहें, रुकी हुई सांसें, रुके हुए लोग, रुका हुआ समाज, रुके हुए सफर, पलछिन रुकी हुई, पुरवाई रुकी हुई। लेकिन रुके हुए देश में परमात्मा को आवाज देती अंतरआत्मा की आवाजों के बावजूद सब कुछ रुका हुआ नहीं रहा। कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने अपनी साहस को हमारी चिंताओं की सेज बना डाला। इन्हें भी कोरोना हो सकता है, जिंदगी भर का रोना हो सकता है। लेकिन ये योद्धा रख कर हथेली पर जान फंसे हुए लोगों के बचा रहे हैं प्राण और दुनिया को दिखा रहे हैं कि वायरस जैसा भी हो हम हैं उससे बलवान। भारत में कोरोना वैक्सीन के बाजार में आने को लेकर काउंट डाउन शुरू हो चुका है। फाइजर सहित तीन वैक्सीन-निर्माताओं के भारत में आपातकालीन उपयोग के लिए अपने कोविड-19 टीके को मंजूरी देने का आवेदन के बाद से टीकाकरण अभियान जल्द ही शुरू होने की संभावना है।
देश के प्रधानमंत्री ने 4 दिसंबर को सर्वदलीय बैठक में बताया था कि भारत ने एक खास सॉफ्टवेयर बनाया है, कोविन। जिसमें आम लोग कोरोना वैक्सीन के उपलब्ध स्टॉक और वास्तविक समय की जानकारी के लिए एक विशेष सॉफ्टवेयर बनाया गया है। स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण की ओर से ये कहा गया है कि केंद्र ने एक एपलिकेशन बनाया है जो प्रक्रिया की शुरुआत से अंत तक निगरानी करेगा। को विन नया है ऐप जो मुफ्त डाउनलोड के लिए उपलब्ध होगा, यह इलेक्ट्रॉनिक वैक्सीन इंटेलिजेंस नेटवर्क (ईवीएम) का उन्नत संस्करण है। यह ऐप प्रक्रिया में लगे सभी लोगों के लिए उपयोगी होगा - प्रशासक, टीकाकारक और ऐसे लोग जो इन वैक्सीन शॉट्स को प्राप्त करने जा रहे हैं। सरकार पहले दो चरणों में प्राथमिकता समूहों का टीकाकरण करेगी। पहले चरण में सभी स्वास्थ्य पेशेवरों और दूसरे चरण में आपातकालीन श्रमिकों का टीकाकरण होगा। इन लोगों का डेटा पहले से ही राज्य सरकारों द्वारा संकलित किया जा रहा है।
आप पर हम जो बेसब्री से इस वैक्सीन के इंतजार में बैठे हैं उन्हें यह वैक्सीन मिलेगी कैसे। 130 करोड़ की आबादी वाले देश में सबको वैक्सीन देना वाकई बड़ी चुनौती है। लेकिन हिंदुस्तान में इस चुनौती से पार पाने की क्षमता है और इसके लिए कमर भी कर ली गई है। आपको याद होगा जब कोरोना ने देश में दस्तक दी थी तब सरकार ने आरोग्य सेतु एप लांच किया था। जो कोरोना के खिलाफ लड़ाई में बहुत कारगर सिद्ध हुआ और अब वैक्सीनेशन में भी एक ऐप की सहायता ली जाएगी। आखिर वह कौन सा ऐप होगा और कैसे हमारे आपके वैक्सीनेशन में मददगार होगा। भारत ने एक विशेष सॉफ्टवेयर भी बनाया है। कोविन जिसमें कोरोना वैक्सीन के लाभार्थी वैक्सीन के उपलब्ध स्टॉक और स्टोरेज से जुड़ी real-time इंफॉर्मेशन रहेगी।
सरकार को क्या मदद मिलेगी
भारत के पास दुनिया के सबसे बड़े और कामयाब टीकाकरण का अनुभव है जिससे 55 करोड लोगों तक पहुंचाया जाता है इसमें नवजात शिशु और गर्भवती महिलाएं होती है। इसके लिए इलेक्ट्रॉनिक वैक्सीन इंटेलिजेंस नेटवर्क बनाया गया। ई-विन को कोरोना की लड़ाई में जोड़ा जा सकता है, जिससे देश सभी जिलों में 28000 वैक्सीन जुड़े हैं। इनसे जुड़े कोल्ड चैन प्वाइंट में स्टाक, टेंपरेचर की रियल टाइम जानकारी लोगों को पता चलेगी।
वैक्सीन क्या है
साल 1796 ये वो साल था जब एक वैज्ञानिक ने एडवर्ड जेनर ने स्माॅल पाॅक्स के लिए मेडिसीन बनाई थी। साल 2016 आते-आते ये ऐसी पहली बीमारी थी जिसे दुनिया से जड़ से खत्म कर दिया था। ऐसा संभव हो पाया सिर्फ और सिर्फ उसी दवाई की वजह से। इसे नाम दिया गया वैक्सीन। ये पहली सफल वैक्सीन थी। 1796 से 1885 तक वैक्सीन पर काफी सारी रिसर्च हुई और 1885 में लुईस पास्चर ने रैबीज की वैक्सीन का ईजाद किया। जिसके बाद 20वीं सदी के मध्य तक जितनी भी बड़ी-बड़ी बीमारी थी उसके लिए वैक्सीन तैयार की जाने लगी। ये वैक्सीन शरीर के अंदर जाकर वैक्टीरिया में तब्दिल हो जाते हैं जिससे बीमारी से लड़ने में मदद मिलती है।
कैसे करता है काम
मैसेंजर रिबोन्यूक्लिक एसिड (एमआरएनए)जिसका इस्तेमाल पहले जीन थेरेपी और कैंसर ट्रीटमेंट के लिए होता रहा है। कोरोना वायरस में 29 प्रोटीन होते हैं। कोरोना वायरस के आउटर लेयर पर मुकुट की तरह दिखने वाले हिस्से से वयरस प्रोटीन निकलता है। जिसे स्पाइक प्रोटीन कहते हैं। इसी प्रोटीन से संक्रमण की शुरुआत होती है। यह इंसान के एंजाइम एसीई2 रिसेप्टर से जुड़कर शरीर तक पहुंचता है। फिर अपनी संख्या बढ़ाकर संक्रमण को बढ़ाता है। एमआरएनए कोशिकाओं को वायरस स्पाइक प्रोटीन के विशेष टुकड़ों के निर्माण के लिए निर्देश देते है। जब वास्तविक संक्रमण होता है तब ये उस पर हमला कर देते हैं। ये इम्यून सिस्टम को कोरोना वायरस से लड़ने के लिए एंटीबॉडी बनाने और टी-सेल को एक्टिवेट कर संक्रमित कोशिाकओं को नष्ट करने के लिए कहती है।
वैक्सीन बनाने में क्यों लगता है समय
चाहे वो फ्लू हो या पोलियो उसकी वैक्सीन बनाने के लिए एकदम शुरू से काम हुआ। जिसमें काफी वक्त भी लगता है। पहले बीमार करने वाले वायरस की पहचान की जाती है। फिर मृत कोशिकाओं को लोगों के शरीर में इंजेक्ट कर उसे प्रतिरोध करने की एक तरह से कहे कि ट्रेनिंग दी जाती है। एक पूरी सीरीज बनाने के रास्ते तलाशने पड़ते हैं। वक्त बदला और बदलते वक्त के साथ तकनीक भी बदली।
फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन और ऐडवांस्ड तकनीक पर आधारित हैं। ये 'सिंथेटिक मेसेंजर आरएनए' का यूज करते हैं। इस तकनीक का इससे पहले कभी इस्तेमाल नहीं हुआ है। एमआरएनए शरीर में प्राकृतिक रुप से मिलने वाला पदार्थ है जो कोशिकाओं को बताता है कि उन्हें कौन से प्रोटीन देते हैं, फिर एंटीबाडी बनती है बिना संक्रमण हुए।- अभिनय आकाश