गुजरात में है दुनिया की सबसे बड़ी कुरान, जरूर करें इसका दीदार

By रेनू तिवारी | Nov 22, 2017

भारत में एक से बढ़कर एक मशहूर मस्जिद हैं। सबका अपना अपना ऐतिहासिक महत्व है आज हम आपको एक एसी मस्जिद के बारे में बताएंगे जो ज्यादा मशहूर तो नहीं है लेकिन यहां पर जो इस्लामिक ग्रंथ है उसका आकार सबसे बड़ा है। गुजरात के वडोदरा शहर के मांडवी इलाके में स्थित ऐतिहासिक जुम्मा मस्जिद में 250 साल से भी पुरानी कुरान-ए-शरीफ को हिफाजत के साथ संभालकर रखा गया है। इराक से आए संत मोहम्मद गौस ने वडोदरा आकर इस कुरान को लिखना शुरू किया था। 

वडोदरा की जुम्मा मस्जिद में पठान परिवार करता है कुरान की हिफाज़त

 

शाही जुम्मा मस्जिद के शाही मुअज्जिन पठान अब्दुल मजीदखान शेर जमानखान का दावा है कि यह कुरान-ए-शरीफ दुनिया की सबसे बड़ी और पवित्र कुरान है। जो हाथ से लिखी गई है। इसे मस्जिद के पहले माले पर पूरी हिफाजत के साथ रखा गया है।

 

साल में एक बार दीदार के लिए रखी जाती है

 

हर साल इस कुरान को शबे बरात के दिन लोगों के दीदार के लिए रखा जाता है। उल्लेखनीय है कि क्रिकेटर पठान और युसूफ पठान इसी मस्जिद के मैदान में ही खेलकर बड़े हुए हैं। पहले इस कुरान की हिफाजत पठान बंधुओं के वालिद महमूद खान करते थे, अब वह जिम्मेदारी पठान बंधुओं के चाचा मजीदखान निभा रहे हैं।

 

इराकी संत ने लिखी थी यह कुरान

 

इस कुरान के बारे में यह कहा जाता है कि इसे इराक से आए मोहम्मद गौस नाम के एक संत ने वडोदरा आकर लिखा था। उन्होंने 17 साल की उम्र से इस कुरान को लिखना शुरू किया था। जब वे 80 साल के थे, तब यह काम पूरा हुआ। इस कुरान-ए-शरीफ की लम्बाई 75 इंच और चौड़ाई 41 इंच है। इस कुरान के तैयार होने के बाद वडोदरा के तत्कालिक महाराजा ने उसकी भव्य सवारी निकाली थी।

 

अभी तक सुरक्षित

 

ऐतिहासिक शाही जुम्मा मस्जिद के शाही मुअज्जिन पठान अब्दुल मजीद खान शेर जमानखान ने बताया कि यह पवित्र कुरान-ए-शरीफ हमारे लिए बहुत ही मूल्यवान और पवित्र है। इसकी हिफाजत हम सामान्य रूप से ही करते हैं। इसके बाद भी यह आज तक सुरक्षित है, यह एक चमत्कार ही है।

 

संत ने इसके कागज भी खुद ही तैयार किए थे

 

इस पवित्र कुरान-ए-शरीफ की बॉर्डर पर फारसी में तर्जुमा भी किया गया है। इस कुरान के लिए कागज भी संत ने स्वयं बनाए थे। उस पर जिस स्याही का इस्तेमाल किया गया है, वह वास्तव में आंख में लगाया जाने वाला काजल ही है। लिखने के लिए मोर के पंख का भी इस्तेमाल किया गया। इसकी बॉर्डर को सजाने के लिए सोने के बरक का उपयोग किया गया है।

 

- रेनू तिवारी

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