By अनन्या मिश्रा | Jan 18, 2025
आज ही के दिन यानी की 18 जनवरी को हिंदी के मशहूर कवि-लेखक हरिवंश राय बच्चन इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया था। जब हरिवंश राय बच्चन काव्य पाठ करते थे, तो लोग अपनी सुध-बुध खोकर उनकी कविताओं में खो जाते थे। उनकी कविताओं में सरलता और संवेदनशीलता का जो मिश्रण था, वह उनको हमेशा के लिए अमर कर गया। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर हरिवंश राय बच्चन के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और शिक्षा
उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद के पास प्रतापगढ़ जिले के छोटे से गांव पट्टी में हरिवंश राय बच्चन का जन्म हुआ था। शुरूआती शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने साल 1938 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से अंग्रेजी साहित्य में एमए किया था। वहीं साल 1941 से 1952 तक उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में प्रवक्ता रहे। फिर वह आगे की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चले गए। वहां पर कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से उन्होंने अंग्रेजी साहित्य पर शोध किया था।
काव्य पाठ
यह बात करीब 7 दशक पुरानी है, जब मंचों पर हरिवंश राय काव्य पाठ करते तो लोग अपनी सुध-बुध खो बैठते थे। साल 1954 में प्रयागराज में आयोजित कवि सम्मेलन में बिना मेहनताना के हरिवंश राय बच्चन ने काव्य पाठ करने से मना कर दिया। फिर करीब 1 घंटे तक चली मान-मनौव्वल के बाद कवि के सामने आयोजकों को झुकना पड़ा। तब जाकर हरिवंश राय बच्चन काव्य पाठ के लिए तैयार हुए। इस दौरान उन्होंने काव्य पाठ से 101 रुपए की कमाई की थी। यह मेहनताना हरिवंश बच्चन ने खुद हासिल किया और बल्कि अन्य कवियों को भी दिलवाया था। इसी के बाद से कविता पाठ का मेहनताना देने की परंपरा की शुरूआत की थी। जो अब तक जारी है।
काव्य संग्रह
बता दें कि हरिवंश राय बच्चन ने कुल 26 काव्य संग्रह लिखे हैं। अंग्रेजी के अध्यापन के अलावा उन्होंने भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के हिंदी ट्रांसलेटर के रूप में भी काम किया था। साहित्य में अपना योगदान देने के लिए हरिवंश राय को राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया गया था। साल 1976 में भारत सरकार ने हरिवंश बच्चन को पद्मभूषण दिया। इसके अलावा हरिवंश राय बच्चन को साल 1968 में '2 चट्टानों' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला था।
मधुशाला लिखने पर नाराज हुए थे पिता
मधुशाला पढ़ने वालों को लगता था कि इसके रचयिता शराब के शौकीन होंगे। लेकिन हरिवंश राय बच्चन ने अपने पूरे जीवन में कभी भी शराब को हाथ नहीं लगाया था। लेकिन इस हरिवंश बच्चन के पिता प्रताप नारायण श्रीवास्तव को लगता था कि इस कविता से देश के युवाओं पर गलत असर पड़ रहा है। युवा शराब की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। इसके कारण वह हरिवंश राय बच्चन के पिता उनसे काफी नाराज हो गए थे। उस समय मधुशाला का अन्य कई जगहों पर भी विरोध हुआ था। लेकिन यही कविता हरिवंश बच्चन की सबसे बड़ी पहचान बनी।