बैंकों में भ्रष्टाचार, अन्याय व शोषण को उजागर करता है उपन्यास “जाँच अभी जारी है (पुस्तक समीक्षा)

By दीपक गिरकर | Jun 03, 2020

बोधि प्रकाशन जयपुर से प्रकाशित 'जाँच अभी जारी है' कथाकार दिलीप जैन का दूसरा उपन्यास है। इसके पूर्व इन का प्रथम उपन्यास "देर आयद..." काफी चर्चित रहा था। दिलीप जैन पंजाब नेशनल बैंक में वरिष्ठ प्रबंधक थे। इनकी रचनाएं देश की पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही है। यह उपन्यास आज की भारतीय बैंकिंग की कार्यप्रणाली की सच्चाइयों से रूबरू करवाता है। यह उपन्यास जिम्मेदार पदों पर आसीन भ्रष्ट बैंक अधिकारियों की कर्त्तव्यनिष्ठ कर्मचारियों के प्रति संवेदनहीनता और गैरजिम्मेदाराना हरकतों का कच्चा चिट्ठा है। यह एक कोलाज है। सत्य को उकेरता कोलाज। उपन्यास के कथानक में मौलिकता और स्वाभाविकता है। इस उपन्यास के माध्यम से लेखक बैंकों में ऋण स्वीकृति में अनियमितताओं, ऋण स्वीकृति व एनपीए खातों में बैंक द्वारा समझौतों में दलालों और ठेकेदारों की दखलदाजी, भ्रष्ट बैंक अधिकारियों के कच्चे चिठ्ठों को उद्घाटित करने में सफल हुए है। बैंकों में भ्रष्टाचार के परिवेश पर बुनी गई इस कृति में बैंक के वरिष्ठ अधिकारियों, ट्रेड यूनियन के पदाधिकारियों, बैंक के दलालों व ठेकेदारों के विविध रंग-रूप दिखाई देते हैं।


लेखक ने इस उपन्यास में एक बैंकर की दृष्टि से बैंकों में व्याप्त भ्रष्टाचार, भ्रष्ट, निकम्मे और नियम विरुद्ध कार्य करने वाले अधिकारियों की पदोन्नति को बहुत ही रोचक तरीके से प्रस्तुत किया हैं। उपन्यास के पात्र गढ़े हुए नहीं लगते हैं, सभी पात्र जीवंत लगते हैं। प्रत्येक पात्र अपने-अपने चरित्र का निर्माण स्वयं करता है। पुस्तक के प्रत्येक पात्र की अपनी चारित्रिक विशेषता है, अपना परिवेश है जिसे लेखक ने सफलतापूर्वक निरूपित किया है। इस उपन्यास में दिखने वाले चेहरे हमारे बहुत करीबी परिवेश के जीते-जागते चेहरे हैं। "जाँच अभी जारी है" हरिहर बाबू की कथा है। यह कृति हरिहर बाबू जैसे मेहनती, ईमानदार छोटे स्तर के अधिकारी के शोषण पर आधारित है। हरिहर बाबू अंत तक अपने सिद्धांतों, नैतिक मूल्यों पर अडिग रहते हैं। हरिहर बाबू की विवशता बड़े संजीव ढंग से लेखक द्वारा चित्रित हुई है। इस पुस्तक को पढ़ते हुए हरिहर बाबू के अंदर की छटपटाहट, व्यथा, पीड़ा और उनके अन्तर्मन की अकुलाहट को पाठक स्वयं अपने अंदर महसूस करने लगता है। कथाकार ने घटनाक्रम से अधिक वहाँ पात्रों के मनोभावों और उनके अंदर चल रहे अंतर्द्वन्द्वों को अभिव्यक्त किया है। लेखक ने पात्रों के मनोविज्ञान को भली-भांति निरूपित किया है और साथ ही उनके स्वभाव को भी रूपायित किया है। पुस्तक में यहाँ वहाँ बिखरे सूत्र वाक्य उपन्यास के विचार सौंदर्य को पुष्ट करते हैं। जैसे – 

 

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इस बहती नदी में डुबकी लगाने से कौन चुकता है? जो किसी कारण डुबकी लगाने की हिम्मत नहीं कर पाते, वे भी गंगा जल का आचमन कर पुण्य लाभ तो क्या ही लेते हैं। जिनको चाहने के उपरांत भी आचमन का मौका नहीं मिलता वे ही गंगा के मैली होने का ढिंढोरा पीटते हैं। (पृष्ठ 14)


"इसमें चौंकने की क्या बात है? फील्ड पोस्टिंग तो सभी जगह बिकती है, फिर चाहे वह बैंक हो, थाना या और कोई सरकारी महकमा। हरिहर बाबू सरकारी महकमों में तो ट्रांसफर एक फलता फूलता उद्योग है। पर छोड़िए इन बातों को। यहां तो शतरंज की बिसात बिछी है। बेशक जीत हार खिलाड़ियों की होती है, पर पिटना तो मोहरों को ही है। अब वो मोहरा कोई भी हो सकता है, इस बार आप हैं, तो यह आपकी किस्मत है।" (पृष्ठ 49)


"उधर बैंक को तो शहीद करने के लिए कोई मोहरा ढूंढना ही पड़ेगा। फंदा जिसके गले के नाप का होगा उसमें डाल दिया जायेगा। अब इसमें कोई मोटी गर्दन तो फंसने से रही। मरेगा तो कोई लोअर लेवल ऑफिसर ही।" (पृष्ठ 51)


कथाकार ने भ्रष्ट अधिकारियों की महत्वाकांक्षा, लालच को पी.जी. बाज जैसे भ्रष्ट, निकम्मे बैंक अधिकारी और हरिहर बाबू जैसे मेहनती, ईमानदार, मासूम बैंक अधिकारी के मनोविज्ञान, उनके मानसिक सोच-विचार को इस पुस्तक के माध्यम से भली-भाँति निरूपित किया है। उपन्यास में इस तरह की अभिव्यक्ति शिल्प में बेजोड़ है और लेखक की रचनात्मक सामर्थ्य का जीवंत दस्तावेज है। इस उपन्यास में सजीव, सार्थक, स्वाभाविक और सरल संवादों का प्रयोग किया गया है।

 

दिलीप जी पाठकों का ध्यान इन दिनों बढ़ते बैंकों के एनपीए, धोखाधड़ी और छोटे स्तर के अधिकारियों की आत्महत्या के कारणों की तह में ले जाने में कामयाब होते हैं। बैंकों में और सरकारी नौकरियों में योग्यता को दरकिनार करते हुए होने वाले भ्रष्ट अधिकारियों की पदोन्नतियों पर भी यह उपन्यास सीधे-सपाट प्रभावशाली तरीके से कटाक्ष करता है। स्वार्थ और अर्थवादी मानसिकता ने जीवन को जिस प्रकार प्रभावित किया हुआ है, उपन्यास उस क्रूर यथार्थ को प्रस्तुत करता है। इस पुस्तक में वरिष्ठ बैंक अधिकारियों द्वारा किए जा रहे शोषण का हृदय स्पर्शी चित्रण है। आलोच्य कृति उपन्यास का शीर्षक अत्यंत सार्थक है।

 

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उपन्यास शिल्प और औपन्यासिक कला की दृष्टि से सफल रचना है। इस उपन्यास के बुनावट में कहीं भी ढीलापन नहीं है। यह कृति मानवीय संवेदनाओं के प्रति कथाकार के दायित्व बोध को दर्शाती है। " जाँच अभी जारी है" अत्यंत महत्वपूर्ण उपन्यास बन पड़ा है। यह उपन्यास सिर्फ पठनीय ही नहीं है, संग्रहणीय भी है। यह कृति बैंकों में ऋण स्वीकृति, अधिकारियों की पदोन्नति व स्थानांतरण की प्रक्रिया पर पर बहुत ही स्वाभाविक रूप से सवाल खड़े करती है और साथ ही ट्रेड यूनियन नेताओं के कार्यकलापों पर प्रश्नचिन्ह लगाती है। यह उपन्यास बेहद पठनीय है और पाठक की चेतना को झकझोरता है। भाषा सरल और सहज है। कथाकार श्री दिलीप जैन ने अपने बैंकिंग अनुभव के आधार पर यह उपन्यास प्रस्तुत किया है। आशा है यह उपन्यास साहित्य जगत में काफी लोकप्रिय होगा। 


पुस्तक: जाँच अभी जारी है

लेखक: दिलीप जैन

प्रकाशक: बोधि प्रकाशन, सुदर्शनपुरा, इंडस्ट्रियल एरिया एक्सटेंशन, नाला रोड़, 22 गोदाम, जयपुर - 302006

मूल्य: 120 रूपए

पेज: 88

समीक्षकः दीपक गिरकर


- दीपक गिरकर

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