जल तत्व पर आधारित लघुकथा संग्रह धारा (पुस्तक समीक्षा)

book review
सतीश राठी । May 27 2020 4:29PM

इन लघुकथाओं में प्रेम है, समर्पण है, भाव है, भावना है। कहीं पर रिश्तो की नदी में डुबकी लगाने का जज्बा है, कहीं नदी के उद्गम तक जाकर उसके साथ रिश्ता जोड़ने की साहस पूर्ण कथा है। किसी लघुकथा में तरलता का भाव है, तो किसी में आंसुओं की नमी है।

गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है: 

छिति जल पावक गगन समीरा। 

पंच रचित अति अधम सरीरा।। 

यह पंचमहाभूत क्षिति, जल, पावक, गगन और समीर प्रकृति में सृजन के मूल बीज तत्व हैं। इन्हीं पंचतत्व में से एक तत्व जल को लेकर 'धारा' लघुकथा संग्रह की प्रस्तुति की गई है। लघुकथा प्रारंभ से ही एक प्रयोगवादी विधा रही है। इसके संप्रेषण को लेकर बहुत सारे प्रयोग किए गए हैं। लघुकथा के परंपरा काल में जब हम लघुकथा को देखते हैं तो, उस समय में उसमें कई तरह के प्रयोग हमारे सामने आते हैं। आठवें दशक में भी कई लघुकथाकारों ने लघुकथा में चमत्कृत कर देने वाले कई सारे प्रयोग किए हैं। शंकर पुणतांबेकर ने अपनी लघुकथाओं की भाषा और उनके शिल्प को लेकर बहुत सारे प्रयोग किए हैं। पारस दासोत ने लघुकथा में विषय के प्रस्तुतीकरण को लेकर और लघुकथा की प्रस्तुति को लेकर बहुत सारे प्रयोग किए हैं। पिछले तकरीबन 10 वर्षों से लघुकथा में प्रयोग की यह कमी खल रही थी। आभासी दुनिया में अथवा मुद्रण की दुनिया में जो लघुकथाएं सामने आ रही थीं, उनमें एकरसता का भाव परिलक्षित होने लगा था।

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पिछले दिनों जब वसुधा गाडगिल और अंतरा करवड़े की पुस्तक 'धारा' मेरे हाथ में आई, तो मुझे लगा कि पुनः लघुकथा में प्रयोग करने की एक नई शैली सामने आई है। इन दोनों लेखिकाओं ने पंचमहाभूत तत्वों में से 'जल' तत्व को लेकर पचास शीर्षक तय किए हैं और उन शीर्षकों को लेकर दोनों ने अलग-अलग लघुकथाओं की रचना की है। यह एक बिल्कुल नवीन तरह का प्रयोग है और इन लघुकथाओं को पढ़ने के बाद इस प्रयोग की सफलता हमारी आंखों के समक्ष प्रस्तुत होती है। अपने लेखकीय मनोगत में इन लेखिकाओं ने यह कहा है कि, 'गर्भ जल से लेकर तर्पण तक जल हमारे साथ चलता है। पंचमहाभूतों में से प्रमुख और जीवन के प्रमुख आधारों में से एक जल पर लिखने का मन इसलिए बना, क्योंकि संभवतः यही सर्वाधिक उपेक्षित है।'

करुणा की यह धारा जिन लेखिकाओं के मन में हो, निश्चित रूप से उनका संवेदना पूर्ण लेखन पाठक को भीतर तक भावना से अभिभूत कर देता है। उन्होंने प्रकृति के जल तत्व में से संवेदना के कुछ बीजाक्षर चयनित किए हैं, जैसे नदी, झरना, फुहार, कल-कल, सरोवर, सागर, वृष्टि , बूंदें, निर्झर, सरिता, आंसू, प्रवाह, लहर, झील आदि। ऐसे 50 जल शब्दों पर दोनों लेखिकाओं ने अपने अपने भाव रचे हैं। एक की भावना में पहाड़ को चीर कर प्रवाहित होती सशक्त नदी है, तो दूसरी लेखिका की भावना में स्मृतियों में जुड़ी हुई 45 वर्ष पूर्व की नदी के किनारे पुनः आकर स्मृतियों को जोड़ने की शक्ति वाली नदी है। किसी लघुकथा में रिश्तों के मध्य प्रवाहित मुस्कान का सकारात्मक झरना है, तो किसी लघुकथा में विकलांगता से बाहर उतर कर अपने स्वरों से अपना ही रास्ता बनाने वाले शिवा की कथा है। इन लघुकथाओं का मूल स्वर प्रकृति को सहेजने का है और आज के इस वक्त में जब हम लॉक डाउन के समय से गुजर रहे हैं, तब प्रकृति के साथ किस तरह का सामंजस्य होना चाहिए, यह बात हमें समझ में आने लगी है।

इन लघुकथाओं में प्रेम है, समर्पण है, भाव है, भावना है। कहीं पर रिश्तो की नदी में डुबकी लगाने का जज्बा है, कहीं नदी के उद्गम तक जाकर उसके साथ रिश्ता जोड़ने की साहस पूर्ण कथा है। किसी लघुकथा में तरलता का भाव है, तो किसी में आंसुओं की नमी है। कोई लघुकथा अपने भीतर भावनाओं का उफान लेकर आती है, तो कोई लघुकथा जल का सैलाब बन कर भीतर तक समाने के लिए आतुर हो जाती है। किसी लघुकथा में नदी के भीतर पड़ा हुआ पाषाण अपने दर्द की अभिव्यक्ति कर रहा है, तो कोई लघुकथा अपने भीतर पड़ी हुई माटी को समेट कर उससे सृजन कर रही है।

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लघुकथा में एक लंबे अरसे से इस तरह का कोई भाव कहीं पर सृजित नहीं हुआ है और उसके पीछे यही बात है कि, लघुकथाओं के लेखकों में पढ़ने की और समर्पित होने की कमी है। इन दोनों लेखिकाओं ने यह साबित किया है कि, उन्होंने बहुत सारा पढ़ा भी है और बहुत सारा ग्रहण भी किया है। जब हमारे भीतर बहुत सारा चिंतन एकत्र हो जाता है, तब जाकर  सृजन का यह सोपान प्राप्त होता है, जो पाठक को चमत्कृत करता है।

आने वाले समय में इन दोनों लेखिकाओं की चार पुस्तकें सृजन के चार बचे हुए महातत्वों पर आने वाली हैं। क्षिति, पावक, गगन और समीर यह बचे हुए चार महातत्व इनकी लघुकथाओं में हमारे समक्ष होंगे। निश्चित रूप से यह पुस्तक यह आशा जगाती है कि, आने वाले समय में यह चार पुस्तकें लघुकथा में किसी नए मील के पत्थर को जन्म देंगी और ऊंचाई का एक नया आयाम स्थापित करेगी। सफलता के पहाड़ तक पहुंचना आसान नहीं होता, लेकिन जो लोग जिद ठान लेते हैं, वह सफलता शीर्ष पर जाकर अर्जित कर ही लेते हैं। यह सफलता अर्जित करने की कथाएं हैं, निश्चित रूप से पाठकों को पसंद आयेगी ऐसा मेरा विश्वास है।

पुस्तक का नाम: धारा

लेखिका: वसुधा गाडगिल, अंतरा करवड़े

प्रकाशक: रश्मि प्रकाशन, लखनऊ

मूल्य: 180 रु.

समीक्षक: सतीश राठी

- सतीश राठी 

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