अपराजिता (कविता)

By डॉ. राजकुमारी | May 22, 2018

हिन्दी काव्य संगम से जुड़ीं कवयित्री डॉ. राजकुमारी ने कानपुर से भेजी है 'अपराजिता' नामक कविता। इसमें उन्होंने अपने मन के भावों को बेहद खूबसूरती के साथ प्रस्तुत किया है।

तुम चाहे कह लेना पराजिता

देखा है जो तुमने आक्षेपों से हारते

किन्तु बार-बार, लड़ी तो हूँ!

 

क्या तुमने नहीं देखा मुझे गिराता

प्रारब्ध, जो आया था मुझसे लड़ने

किन्तु मैं गिरकर, सम्भली तो हूँ!

 

वो दुराग्राही प्रचंड प्रहार करता

समय, देखा होगा तुमने मुझ पर हँसते

किन्तु चोटिल होकर भी, डटी तो हूँ!

 

देखा किनारों तक आकर डूबता

मेरा प्रयास, गहरे तम को चीरते

किन्तु दिनकर बन, उगी तो हूँ!

 

व्यर्थ-अनर्थ गणनाएँ करता

मन, इनसे मुक्त हो सुंदरता गढ़ते

यहीं 'अपराजिता' बन, खड़ी तो हूँ!

 

-डॉ. राजकुमारी (कानपुर)

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