जूतों के दाँत (व्यंग्य)

By डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’ | Mar 06, 2021

वाकिंग करते-करते पुराने जूते फट गए थे। सोच रहा था नए जूते ले लूँ। इधर कुछ दिनों से हाथ बड़ा तंग चल रहा था। जैसे-तैसे पैसों का जुगाड़ हुआ। अपने करीबी साथी के सामने जूते खरीदने की बात यह सोचकर रखी कि वह किसी अच्छे ब्रेंड का नाम सुझाएगा। किंतु अगले कुछ मिनटों में उसने मेरा ऐसा ब्रेन वाश किया कि नए जूते खरीदना तो दूर सोचने से भी हाय-तौबा कर ली। मित्र ने बताया कि नए जूते शोरूम से ऐसे निकलते हैं मानो उनकी जवानी सातवें आसमान पर हो। उनके रगों में गरम लहू ऐसा फड़फड़ाता है मानो जैसे जंग में जा रहे हों। बिना किसी सावधानी के इन्हें पहनना बिन बुलाए आफत को दावत देने से कम नहीं है। पैरों को ऐसे काटेंगे जैसे कि केंद्र और राज्य सरकार जीएसटी के नाम पर पेट्रोल-डीजल का टैक्स काटते हैं। हाँ यह अलग बात है कि आम लोगों के लिए जीएसटी की समझ अभी भी दूर की पौड़ी है, किंतु नए जूतों का चुर्रर्र करने वाला संगीत भुलाए नहीं भूलते।

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मित्र ने नए जूतों का इनसाइक्लोपीडिया ज्ञान बाँटते हुए आगे कहा– यदि भूल से भी नए जूते खरीद लिये तो इन्हें कभी पास-पास मत रखना। दोनों ऐसी खिचड़ी पकायेंगे कि तुम्हारा जीना हराम कर देंगे। दोनों की ऐसी सांठ-गांठ होगी मानो वे जूते नहीं विपक्षी पार्टी हों। बात-बात में तुम्हारे विरोध में आवाज़ बुलंद करेंगे। इन्हें भूल से भी कैलेंडर, घड़ी, समाचार पत्रों की रैक के पास मत रखना, वरना ये कभी वेतन वृद्धि की मांग तो कभी काम करने के घंटों को लेकर तुम्हारे पीछे हाथ धोकर पड़ जायेंगे। कभी मंदिर जाने का प्लान बनाओ तो इनके साथ भूलकर भी न जाना। यदि इन्हें पता चल गया कि तुम बिना कोई मेहनत किए भगवान भरोसे अपना भाग्य बनाना चाहते हो तब तो तुम्हारी खैर नहीं। ऐसा काटेंगे तुम्हें तुम्हारी सातों पुश्तें याद आ जायेंगी।


मुझे लगा मित्र ‘नव जूता बखान’ से थक गया होगा। उसे एक गिलास पानी देना चाहिए। किंतु मित्र था कि थकने का नाम ही नहीं ले रहा था। न जाने कौनसी एनर्जी ड्रिंक पीकर आया था? उसने आगे कहा– अभी तो मैंने तुम्हें सबसे जरूरी बात बताई ही नहीं। इन्हें भूल से भी पत्नी के आस-पास फटकने मत देना। ये बड़े चुगली खोर होते हैं। अपने रूप-रंग से पत्नी के सामने तुम्हारे सारे काले चिट्ठे खोलकर रख देंगे। ये तुम्हें चलने में साथ दे न दें लेकिन पिटाई में जरूर साथ देंगे। ये ऐसी-ऐसी जगह पर अपना निशान बनायेंगे कि न किसी को दिखाए बनेगा न बताए।

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इतना सुनना था कि मेरे होश उड़ गए। जैसे-तैसे होश में आते हुए हिम्मत की और पूछा- तो क्या नए जूतों का ख्याल दिमाग से निकाल दूँ? इस पर मित्र ने कहा– सावधानी बरत सकते हो तो खरीदो, नहीं तो हाय-तौबा कर लो। ये इतने बदमाश होते हैं कि कितना भी महँगा मोजा खरीद लो लेकिन उसके भीतर घुसकर पैर काटने से बाज़ नहीं आते। इनके दाँत एकदम सरकार के दिखाए मनलुभावन सपनों की तरह होते हैं। मजाल जो कोई इन्हें देख ले! इन्हें पहले छोटी-छोटी दूरियों के लिए साथ ले जाओ। अच्छी-अच्छी जगह घुमाओ। इन्हें विश्वास दिलाओ कि तुम एकदम निहायती शरीफ इंसान हो। तब तक ये भी अपनी पकड़ ढीली कर देंगे। तब इनके कोरों पर थोड़ा तेल लगाओ। ये और फैल जायेंगे। तब अपने वसा वाले पैरों से अपनी दुनिया में मनमानी ढंग से घूमना। कहते हैं न जब सीधी उंगली से घी न निकले तो उंगली टेढ़ी करनी पड़ती है। यही आज का मूल मंत्र है।


-डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त'

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