Ukraine History: कई दशकों तक उबाल के बाद फटा युद्ध का ज्वालामुखी, इतिहास में छुपी हैं जिसकी जड़ें

By अभिनय आकाश | Feb 26, 2022

यूक्रेन, रूस के बाद सोवियत संघ का दूसरा सबसे बड़ा गणराज्य था। इसके साथ ही वो रूस का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार भी था। न केवल यूक्रेन बल्कि अन्य देश, जिनमें लेनिनग्राद (रूसी एसएफएसआर या रूसी सोवियत संघीय समाजवादी गणराज्य), मिन्स्क (बाइलोरूसियन एसएसआर या सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक), ताशकंद (उज़्बेक एसएसआर), अल्मा-अता (कज़ाख एसएसआर), और नोवोसिबिर्स्क (रूसी एसएफएसआर) भी यूएसएसआर का हिस्सा थे। उस दौर में यूएसएसआर दुनिया का सबसे बड़ा देश था, जो 22,402,200 वर्ग किलोमीटर (8,649,500 वर्ग मील) से अधिक और ग्यारह सीमांत क्षेत्रों में फैला था। सोवियत संघ कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा शासित एक दलीय राज्य था। महासचिव गोर्बाचेव मास्को से परे क्षेत्रों को नियंत्रित नहीं कर सके। 1990 में, लातविया और एस्टोनिया ने अपनी पूर्ण स्वतंत्रता की बहाली की घोषणा की। दिसंबर 1990 तक रूस और कजाकिस्तान को छोड़ सभी गणराज्य यूएसएसआर से अलग हो गए थे। यूएसएसआर के दूसरे सबसे बड़े गणराज्य यूक्रेन ने 1991 में अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। 

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कुछ सालों तक सब ठीक चलता रहा और सोवियत की छत्रछाया से निकलकर यूक्रेन में सब सुचारू ढंग से चलता रहा। फिर आता है साल 1999 में लियोनिड क्रॉवचक से सत्ता हासिल करने वाले लियोनिड कुचमा के ऊपर कई तरह की अव्वस्थाओं के आरोप लगते हैं। दोबारा चुनाव की नौबत आती है। दोबारा चुनाव हुए और इसके परिणाम भी सवालों के घेरे में रहे। फिर के बार कुचमा को जीत हासिल हुई। लेकिन चुनाव में धांधली के आरोपों ने इस बार विरोध प्रदर्शन का रूप ले लिया। बड़े पैमाने पर लोग सड़कों पर उतर आए। इस प्रदर्शन को ऑरेंज रिवॉल्यूशन का नाम दिया गया। बाद में पश्चिमी देशों के समर्थक पूर्व प्रधानंमंत्री विक्टर यूशचेंकों को राष्ट्रपति बनाया गया। उन्होंने से लोगों से वादा किया वो यूक्रेन को क्रेमलिन की गिरफ्त से  बाहर लेकर आएंगे। बता दें कि सामंतवादी युग में रूस के विभिन्न नगरों में जो दुर्ग बनाए गए थे वे क्रेमलिन कहलाते हैं। इसके साथ ही एक और वादा किया कि यूक्रेन को यूरोपियन यूनियन और नाटो की तरफ लेकर जाएंगे। इसके साथ ही एक वादा नाटो की तरफ से यूक्रेन को किया गया कि वो एक दिन उसे अपने में शामिल करेगा।

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यहीं पर शुरू होता है असली पेंच। दरअसल, माना जाता है कि इस विलय के समय मौखिक समझौता हुआ था कि नाटो अपना विस्तार पूर्वी यूरोप में नहीं करेगा।  विक्टर यानुकोविच जो 4 अगस्त 2006 से 18 दिसंबर 2007 तक राष्ट्रपति युशचेंको के अधीन प्रधानमंत्री के रूप में कार्य करते रहे। लेकिन साल 2010 में यानुकोविच प्रधानमंत्री यूलिया टिमोशेंको को हराकर राष्ट्रपति चुने गए। यानुकोविच ने एक लंबित यूरोपीय संघ के समझौते को खारिज कर दिया, इसके बजाय उन्होंने  रूस के साथ घनिष्ठ संबंधों को आगे बढ़ाया। जिसकी वजह से राजधानी कीव में हजारों-लाखों की संख्या में लोग प्रदर्शन करने लगे। कीव के मैदान स्क्वायर पर प्रदर्शनकारी हिंसक हुए। जिसमें दर्जनों प्रदर्शनकारी मारे गए। नवंबर 2013 में घटनाओं की एक श्रृंखला की शुरुआत के बाद फरवरी 2014 में  विक्टर यानुकोविच को राष्ट्रपति पद से हटा दिया गया। 

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विक्टर फरार हो गए और कुछ ही दिनों में हथियारबंद लोगों ने यूक्रेन के क्रीमिया में मौजूद संसद को कब्जे में ले लिया। इसके साथ ही वहां रूसी झंडे फहरा दिए गए। फिर आता है साल 2014 का दौर जब रूस ने क्रीमिया इलाके को यूक्रेन से अलग कर दिया। 16 मार्च को रेफरेंडम आया, जिसमें बताया गया कि क्रीमिया रूस के साथ मिलकर खुश है। रूस-समर्थित अलगाववादियों ने डोनबास को भी आजाद करा लिया। वह भी रूस के साथ हो लिया। पश्चिम देशों के समर्थक व्यवसायी पेट्रो पोरोशेंको राष्ट्रपति चुने गए।

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यूक्रेन ने वापस यूरोपियन यूनियन के साथ व्यवसायिक संबंध बनाने शुरु किए। बाजार फिर से खोल दिए गए और वीजा मुक्त यात्रा की इजाजत दे दी गई। अप्रैल में पूर्व कॉमेडियन वोलोडिमिर जेलेन्स्की ने पेट्रो पोरोशेंको को चुनाव में हराकर राष्ट्रपति की कुर्सी संभाली। उन्होंने कहा कि वो पूर्वी यूक्रेन के साथ चल रहे युद्ध को समाप्त कर भ्रष्टाचार को समाप्त करेंगे। जेलेन्स्की का झुकाव अमेरिका की तरफ ज्यादा रहा। उन्होंने जो बाइडेन से नाटो में शामिल होने के लिए सहायता भी मांगी। जबकि जेलेन्स्की सरकार ने विपक्षी नेता विक्टर मेडवेडचुक पर प्रतिबंध लगाए। इससे रूस नाराज हो गया क्योंकि मेडवेडचुक के संबंध क्रेमलिन से बहुत ही मधुर रहे थे।

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