By अभिनय आकाश | Jun 14, 2023
किसी भी चीज के विकास में रफ्तार का बहुत महत्व होता है। रफ्तार लगातार बनी रहे उसके लिए अच्छे टायरों का होना बहुत जरूरी है। जब टायरों की बात होती है तो हमारे दिमाग में एक ही नाम दस्तक देता है एमआरएफ। इन दिनों ये नाम बेहद ही सुर्खियों में है। शेयर बाजार की सबसे महंगी शेयर बन चुकी एमआरएफ के एक शेयर की कीमत 1 लाख रुपये के पार हो चुकी है। शेयर बाजार में मंगलवार को एमआरएफ के शेयर ने इतिहास बना दिया। लंबे इंतजार के बाद एमआरएफ भारत का पहला लखटकिया शेयर बन गया। जिस कंपनी की नीमंव एक गुब्बारा बेचने वाले शख्स ने रखी, उसे भी नहीं पता था कि एक दिन उसकी कंपनी देश की सबसे बड़ी कंपनियों में शामिल हो जाएगी।
लखटकिया शेयर वाला एमआरएफ
बाजार खुलते ही एनएसई पर एमआरफ का शेयर बढ़त के साथ खुला और ये स्टॉक 100050 रुपये पर पहुंच गया। ऐसे में भारतीय शेयर बाजार में एमआरएफ पहली ऐसी कंपनी बन गई है जिसके शेयर ने 1 लाख रुपये का भाव पार कर लिया। कंपनी का शेयर 100300 रुपये के भाव पर पहुंचने के बाद 99950.65 रुपये के भाव पर बंद हुआ। एक साल में एमआरएफ के शेयर में 45% से ज्यादा की तेजी आई है। इस स्टॉक ने इसके पहले मई में फ्यूचर्स एंड ऑप्शन सेगमेंट में 1 लाख रुपये का स्तर छुआ था।
गुब्बारे बनाने से शुरू हुआ था एमआरएफ का कारोबार
मद्रास रबर फैक्ट्री यानी एमआरएफ भारत की सबसे अग्रणी टायर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी है। इसकी नींव 1946 में युवा उद्यमी केएम मामेन मपिल्लई ने रखी थी। मपिल्लई का जन्म केरल के एक किसान परिवार में हुआ था। अपनी पढ़ाई उन्होंने केरल के किश्चिन स्कूल से की। जब वो कॉलेज में थे तो उनके पिता केसी मपिल्लाई का एक अखबार और बैंक चला करता था। लेकिन आजादी के आंदोलन में शामिल होने की वजह से त्रावणकोर सरकार ने उन्हें जेल भेज दिया और अखबार व बैंक पर ताला लगाकर सारी संपत्ति जब्त कर ली। बाद में मद्रास में अपने रिश्तेदारों से उधार लेकर मपिल्लई ने एक गुब्बारे बनाने की फैक्ट्री शुरू की। उसका नाम मद्रास रबर फैक्ट्री रखा। वहां से वो गुब्बारा बनाते थे और बैग में खुद ही भरकर बाजारों में बेचने के लिए निकल जाया करते थे। 1949 तक उन्होंने खिलौने, गर्भ निरोधक बनाना भी शुरू कर दिया।
एमआरएफ का मसलमैन
वो अपने चचेरे भाई से मिला जिनका टायरों पर रबर चढ़ाने का प्लांट था। फिर उन्होंने अपने भाई के साथ ट्रिड रबर बनाना शुरू कर दिया। उनके बनाए रबर उपभोक्ताओं को अपनी तरफ लुभाने लगे। देखते ही देखते एमआरएफ की प्रसिद्धि इतनी बढ़ गई कि उसके साथ वाली कंपनियां इस मल्टीनेशनल कंपनियां इस बाजार से अपना हाथ पीछे खीचने लगी। एमआरएप के लोगों को आप गौर से देखेंगे तो एक हट्टा-कट्टा आदमी हाथ में टायर को उठाए नजर आता है। इसे मसलमैन का नाम दिया गया है। साल 1964 में एमआरएफ के मसलमैन का जन्म हुआ।