जब कार्टरपुरी को गोद लेना चाहते थे अमेरिकी राष्ट्रपति जिम्मी कार्टर...

By रजत दीक्षित | Feb 24, 2020

गुरुग्राम। हरियाणा के गुरुग्राम के नजदीक एक गांव है कार्टरपुरी, जिसका अमेरिकी राष्ट्रपति जिम्मी कार्टर से एक अटूट रिश्ता था और इसी संबंध के चलते दौलतपुर नसीराबाद का नाम बदलकर कार्टरपुरी हो गया। दौलतपुर नसीराबाद दिल्ली से सिर्फ 6 किलोमीटर की दूरी पर बसा हुआ एक पिछड़ा और गरीब गांव था। यह गांव चारों तरफ से शहरों से घिरा एक अविकसित गांव था।

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जब जिमी कार्टर भारत आए थे...

3 जनवरी, 1978 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जिम्मी कार्टर अपनी पत्नी रोजलीन कार्टर के साथ इसी गांव में आए थे, क्योंकि यह दिल्ली के नजदीक था लेकिन उनके यहां आने की मुख्य वजह कुछ और थी। जिम्मी कार्टर के साथ भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई, उनकी कैबिनेट के कुछ सदस्य और हरियाणा सरकार के सभी नेता यहां पहुंचे थे। जब कार्टर अपनी पत्नी के साथ गांव आए तो गांववालों के अंदर एक अलग सा उत्साह था, गांव के अंदर खुशी की लहर सी दौड़ गई थी। गांववालों ने कार्टर को हरियाणवी पगड़ी पहनाई और उनकी पत्नी को घुंघट और पर्दादान किया था। जिम्मी कार्टर ने अपनी पत्नी के साथ पूरा गांव घूमा और गांववालों की मेहमाननवाजी का आनंद भी उठाया था। 

इसी बीच जिम्मी कार्टर उस हवेली में भी गए थे जहां पर कभी उनकी मां रहा करती थी। गांववालों ने कार्टर की अध्यक्षता में पंचायत की एक बैठक बुलाई, इस बैठक में जिम्मी कार्टर ने गांव को गोद लेकर उसका विकास करने की इच्छा जताई थी। तब मोरारजी देसाई ने उनका यह प्रस्ताव ठुकराते हुए कहा था कि इस गांव का विकास हम करेंगे। उनके इस फैसले से गांव वाले काफी दुखी हुए, लेकिन यह उनके अब तक के इतिहास का सर्वोच्च पल था जिसे वह कभी भूल नहीं सके। इसी कारण से उन्होंने अपने गांव का नाम बदलकर कार्टरपुरी कर दिया जो आज भी इसी नाम से जाना जाता हैं।

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जिम्मी कार्टर के आने की मुख्य वजह ?

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जिम्मी कार्टर की मां लिलियन कार्टर भारत में बतौर नर्स काम करती थी। इस दौरान काम के सिलसिले में लिलियन दौलतपुर नसीराबाद आती रहती थी। यही कारण था कि जब जिम्मी कार्टर भारत की यात्रा पर आए तो उन्होंने विशेष तौर से इस गांव की यात्रा करने की इच्छा जताई थी।

कैसा है आज का कार्टरपुरी ?

अमेरिकी राष्ट्रपति जिम्मी कार्टर, प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के आने के बाद गांव के लोगों को लगता था कि अब उनके गांव की तस्वीर बदल जाएगी लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं। आज भी यह गांव गुरुग्राम के दूसरे सेक्टर्स की तुलना में एक पिछड़ा हुआ गांव माना जाता है। नगर निगम में विलोपित होने के बाद भी इस गांव की तस्वीर और रूप में ज्यादा परिवर्तन नहीं आया है।

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