By नीरज कुमार दुबे | May 06, 2025
कांग्रेस समेत विपक्ष के तमाम नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सवाल पूछ रहे हैं कि पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले का बदला कब लिया जायेगा? कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय राय तो यहां तक कह रहे हैं कि राफेल लड़ाकू विमान से नींबू मिर्ची हटा कर कब उसे दुश्मन को सबक सिखाने के लिए भेजा जायेगा? कांग्रेस नेताओं का कहना है कि पहलगाम हमले को दो सप्ताह हो चुके हैं लेकिन सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है। यहां सवाल उठता है कि क्या कोई छेड़ेगा तो हम छोड़ेंगे नहीं की बात कहने वाली मोदी सरकार वाकई हाथ पर हाथ धरे बैठी है? सवाल यह भी उठता है कि पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई करने में लग रहे समय को लेकर सवाल पूछ रही कांग्रेस को क्या इंदिरा गांधी का कार्यकाल याद नहीं है?
हम आपको याद दिला दें कि 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी चाहती थीं कि युद्ध मार्च के महीने में लड़ा जाये लेकिन तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल सैम मानेकशॉ जानते थे कि युद्ध के लिए तैयारी पूरी नहीं है इसलिए उन्होंने उस समय लड़ने से मना कर दिया था। अपने एक साक्षात्कार में खुद सैम मानेकशॉ ने बताया था कि उनके मुँह से ना सुन कर इंदिरा गांधी नाखुश हो गयी थीं। लेकिन उन्होंने कहा था कि अभी हमारी तैयारी नहीं है, अगर अभी युद्ध लड़ा तो हम हार जाएंगे। उन्होंने इंदिरा गांधी से पूछा था कि क्या आप जीत नहीं देखना चाहतीं? उन्होंने कहा था कि मैं जानता था कि मानसून आने वाला है और ऐसे में नदियां समुद्र बन जाती हैं जिससे हमारी सेना की मूवमेंट में दिक्कत होगी। उन्होंने कहा था कि मैं जानता था कि युद्ध की तैयारी के लिए योजना बनानी पड़ेगी और सेना को तैयार करना पड़ेगा, जिसके लिए पर्याप्त समय की जरूरत थी। उन्होंने कहा था कि मैं जानता था कि अधूरी तैयारी के साथ जंग के मैदान में जाना हार का मुंह देखने की तरह ही है। उन्होंने कहा था कि उस समय जंग में हार की शर्मिंदगी झेलने की जगह मैंने इंदिरा गांधी का गुस्सा झेलना बेहतर समझा था। सैम मानेकशॉ ने बताया था कि मेरे जवाब के बाद इंदिरा गांधी ने मुझसे कहा था कि जब आप युद्ध के लिए तैयार हो जायें तो मुझे बताना। हम आपको बता दें कि इंदिरा गांधी को मना करने के सात महीने के बाद सैम मानेकशॉ ने युद्ध के लिए हामी भरी थी और पाकिस्तान से पूर्वी क्षेत्र को अलग कर दिया था जिसे बांग्लादेश के नाम से जाना जाता है।
देखा जाये तो 1971 और आज की स्थितियां बिल्कुल अलग हैं इसलिए उस समय जो सात महीने लगे थे उतना समय इस बार नहीं लगेगा लेकिन फिर भी ऐसा तो हो नहीं सकता कि सात घंटे में ही कोई देश अपनी सेना को युद्ध के मैदान में उतार दे। सेना युद्ध के मैदान में उतर रही है तो पूरी तैयारी के साथ ही उतरेगी क्योंकि जंग जीतने के लिए लड़ी जाती है। विपक्षी नेताओं के सवालों से परेशान होकर सेना को अधूरी तैयारी के साथ मैदान में नहीं उतारा जा सकता यह बात बड़बोले नेताओं को समझनी चाहिए। कब हमला होगा, कब हमला होगा की रट लगाने वाले विपक्षी नेताओं को पता होना चाहिए कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सेना को कार्रवाई के लिए पूर्ण रूप से छूट दे चुके हैं इसलिए अब यह सेना को ही तय करना है कि कार्रवाई कब और कहां होगी और किस स्तर की होगी? इसलिए रोज रोज सवाल पूछ कर पाकिस्तानी मीडिया में वायरल होने की चाहत रखने वालों को चाहिए कि वह भारतीय सेना के साथ खड़े हों और राष्ट्रीय एकता को किसी भी सूरत में तोड़ने की कोशिश ना करें। बड़बोले विपक्षी नेताओं को यह भी देखना चाहिए कि पाकिस्तान के खिलाफ श्रृंखलाबद्ध रूप से जो कूटनीतिक कार्रवाइयां की गयी हैं उसने इस्लामाबाद को हिला कर रख दिया है। सरकार पर दोषारोपण करने वालों को राजनीति के लिए आगे बहुत समय मिलेगा, यह समय सरकार के साथ खड़े रहने का है इसलिए एकता की बात सिर्फ बयानों में ही नहीं बल्कि आचरण में भी दिखनी चाहिए।