इन देशों ने बिछाया है तगड़ा जाल, इसलिए मोदी पहलगाम का बदला लेने में कर रहे देरी?

चीन, तुर्किए जैसे देश ये चाह रहे थे कि भारत एक बार कोई इस तरह का दुस्साहस कर दे। फिर हम उसे अपने ट्रैप में फंसा लेंगे, जैसे रूस को फंसाया था।
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले के बाद से भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव वढ़ता जा रहा है। यहां तक कि जंग की आशंका जाहिर की जा रही है। ऐसे में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों को 7 मई यानी मॉक ड्रिल करने के लिए कहा है। मकसद यह है कि अगर युद्ध या ऐसे इमरजेंसी हालात बनें तो देश के नागरिकों को बचाया जा सके। देशभर में होने वाली इस मॉक ड्रिल में लोगों को जागरूक किया जाएगा कि हवाई हमला होने पर क्या करें, ब्लैक आउट (बत्ती गुल) होने...या ऐसे ही अन्य हालात पर क्या कदम उठाएं और किस तरह से अपनी सुरक्षा की जाए। नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से ही लोगों को जागरूक करने वाली यह मॉक ड्रिल करने को कहा गया है। आपको बता दें कि पहलगाम में आतंकी हमले के बाद पूरा देश बदले की मांग कर रहा है और ये बदला जल्द ही पूरा भी हो जाएगा। बदला फाइनल है और उधर इस्लामिक देश पाकिस्तान उबाल मार रहा है। जंग लड़ने की हाय तौबा मचाने वाला पाकिस्तान अपनी तैयारियों के हिसाब से कितना खाली है, ये तो हालिया रिपोर्ट के बाद पूरी दुनिया को पता चल गया। जंग हुई तो चार दिन तक भी पाकिस्तान टिक नहीं पाएगा। यही कारण है कि पाकिस्तान इस्लामिक वर्ल्ड से मदद की उम्मीद कर रहा है। लेकिन इस्लामिक वर्ल्ड से भी पाकिस्तान को निराशा ही हाथ लगी है। यूएई, सऊदी, कतर पहले ही अपने दरवाजे पाकिस्तान के लिए बंद कर चुका है।
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क्या चीन युद्ध में पाकिस्तान का साथ देगा?
चीन ने भी अपनी बात रखी और उसने ये साफ कर दिया है कि वो पाकिस्तान के साथ है। भारत से बढ़ते तनाव के बीच पाकिस्तान में चीन के राजदूत जियांग जैदोंग पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी से मिले। दूत ने कहा कि चीन दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता के लिए पाकिस्तान का हमेशा समर्थन करेगा। बैठक के दौरान राष्ट्रपति जरदारी ने पहलगाम हमले के बाद भारत के हाल के कदमों पर चिंता जताई। चीन के इस बयान के बाद सवाल उठने लगे हैं कि क्या भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ने पर चीन वाकई पाकिस्तान का साथ देगा? या फिर वह इस्लामाबाद पर दबाव बनाएगा कि वह चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे या बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत अन्य परियोजनाओं जैसे अपने हितों की रक्षा के लिए भारत के साथ युद्ध में शामिल न हो? बीजिंग ने कई अन्य परियोजनाओं के अलावा CPEC में 60 बिलियन डॉलर से अधिक का निवेश किया है।
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पाकिस्तान क्यों है चीन का सदाबहार मित्र
पाकिस्तान चीन का सदाबहार दोस्त है और अपनी भू-राजनीतिक उपस्थिति के कारण आर्थिक और सुरक्षा कारणों से रणनीतिक साझेदार है। यह बीजिंग को ग्वादर में एक नौसैनिक अड्डा दे सकता है, जहाँ चीन नई दिल्ली को घेरने और अमेरिका पर नज़र रखने की अपनी नीति के तहत भारत से लेकर अफ्रीका तक हिंद महासागर में होने वाली गतिविधियों पर नज़र रख सकता है। दूसरे, इस्लामाबाद चीन को हिमालय पर अपनी सेनाएँ तैनात करने के लिए पर्याप्त जगह और स्थान भी दे सकता है ताकि भविष्य में नई दिल्ली के साथ किसी भी झड़प में भारत को घेरने के लिए दूसरा मोर्चा खोला जा सके। स्वाभाविक रूप से, शी जिनपिंग के नेतृत्व वाली सरकार पाकिस्तान को एक सच्चे दोस्त के रूप में समर्थन देती है।
अमेरिका के साथ ट्रेड वॉर में फंसा चीन भारत को नाराज करने का जोखिम उठाएगा?
हालांकि, चीन भारत को नाराज़ नहीं कर सकता, जिसके साथ उसका 127.7 बिलियन डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार है और 99.2 बिलियन डॉलर का व्यापार अधिशेष है और वह भी ऐसे समय में जब वह अमेरिका के साथ ट्रेड वॉर में फंसा है। दूसरी बात, चीनी अर्थव्यवस्था अभी भी 5% की मामूली जीडीपी वृद्धि दर के साथ संकट से बाहर नहीं आई है, जबकि डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा शुरू किए गए टैरिफ युद्ध के कारण दुनिया भर में मंदी का खतरा मंडरा रहा है। युद्ध में किसी भी तरह की भागीदारी न केवल इसकी आपूर्ति श्रृंखला को बाधित करेगी, बल्कि इसे आर्थिक रूप से अलग-थलग भी कर सकती है, जिससे यह गहरे आर्थिक संकट में फंस सकता है। आतंकवाद या जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन करके, चीन को बदले में कुछ नहीं मिलेगा। इसे न तो LAC के साथ लेह में भारत के साथ अपनी सीमा पर कोई रणनीतिक गहराई मिलेगी और न ही कोई भू-राजनीतिक लाभ। दूसरी ओर, इसे आतंकवाद का समर्थन करने और भारत-शासित क्षेत्र में पाकिस्तान का समर्थन करने के लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा, जिसे इस्लामाबाद के दृष्टिकोण से भी विवादित कहा जा सकता है। चीन-पाकिस्तान रक्षा सहयोग लड़ाकू विमानों और मिसाइलों सहित सैन्य हार्डवेयर के निर्यात, खुफिया जानकारी साझा करने और संयुक्त अभ्यास तक सीमित है, और इसका मुख्य लाभार्थी पाकिस्तान है, चीन नहीं।
चीन के पास क्या संभावित विकल्प हैं
हालांकि, रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि चीन पाकिस्तान में पैर जमाने के लिए मुश्किल हालात का फायदा उठाने की कोशिश कर सकता है, ताकि उसे नुकसान न हो। कुछ खास परिस्थितियों में बीजिंग पाकिस्तान की सीमित सीमा तक मदद कर सकता है। भारत-पाकिस्तान के बीच स्थानीय संघर्ष की स्थिति में, चीन कूटनीतिक समर्थन दे सकता है, जैसा कि उसने पहलगाम हमले की स्वतंत्र जांच की मांग का समर्थन करके पहले ही किया है। लेकिन, सैन्य मदद देने की संभावना नहीं है।
पहलगाम पर रिएक्ट करने में मोदी क्यों कर रहे देरी
पहलगाम पर कायराना हमले के बाद ये सवाल लगातार उठ रहे हैं कि भारत की तरफ से रिएक्ट करने में क्यों इतनी देरी की जा रही है। पाकिस्तन को मिट्टी में कब मिलाया जाएगा जैसे सवाल सोशल मडिया पर तैर रहे हैं। लेकिन पहलगाम पर मोदी सरकार काफी सूझबूझ के साथ कदम उठा रही है। कभी कभी सबकुछ जैसा दिखता है वैसा होता नहीं है। पहलगाम में पाकिस्तान प्रायोजित हमला हुआ है ये तो सबसे सीधी और सरल बात है। लेकिन मामला उतनाभर नहीं है। वक्फ बिल को लेकर देशभर में प्रदर्शन, मुर्शादाबाद में दंगे और इसके ठीक बाद जिस तरह से धर्म पूछकर, पैंट तक उतरवाकर कश्मीर में आतंकियों ने टारेट किलिंग की उसके पीछे काफी गहरी साजिश है। एक धार्मिक उन्माद भी देश में फैलाने की कोशिश भारत के दुश्मनों की तरफ से की गई। जिससे की हिंदू-मुस्लिम आपस में लड़ने लग जाए। पाकिस्तान-चीन को ये अंदाजा था कि भारत के मुसलमान मोदी सरकार के खिलाफ खुलकर आएंगे। वो मोदी के खिलाफ मोर्चा खोलेंगे। लेकिन वो शायद भारत के मुसलमानों को समझ नहीं सका। लाख उनकी सरकार से नाराजगी हो। लाख मोदी से नाराजगी हो लेकिन जब बात देश की आती है तो पूरा माहौल बदल जाता है। ये आपको ओवैसी जैसे नेताओं के बयान से भी समझ आ गया होगा। पाकिस्तान के नेता ने हालांकि भारत को उकसाने की भी कोशिश की। वहां के मंत्रियों के बयान आए कि भारत के 22 करोड़ मुसलमान हमारा साथ देंगे। पहलगाम की घटना के बाद जैसे ही हुवाय का सैटेलाइट फोन पकड़ा गया। फिर चाइना स्पेस मिशन के लिए काम करने वाली कंपनी के उपकरण पकड़े जाने के बाद हमारी जांच एजेंसियों के कान खड़े हो गए। पाकिस्तान के पास चाइनिज मेड सैटेलाइट फोन तो आ सकता है। लेकिन चाइना स्पेस एजेंसी द्वारा इस्तेमाल में लाए जाने वाला कम्युनिकेशन नेटवर्क कश्मीर में कैसे आ गया? इसका मतलब है कि कोई बहुत बड़ी साजिश है। फिर अचानक चीन सीधे पाकिस्तान के सपोर्ट में आ गया। फिर खबर आई कि ब्रिटेन का एक जहाज इक्यूपमेंट्स लेकर आया है। भारत ने वहीं पर अपने कदम रोके कि नहीं जैसा दिख रहा है वैसा है नहीं। भारत को उसी वक्त लगा कि ये कोई बहुत बड़ा ट्रैप है।
कौन कौन से देश मिलकर भारत को युद्ध में फंसाना चाहते हैं?
तुर्किए को इस बात की टीस है कि मीडिल ईस्ट कॉरिडोर में उसे नहीं बल्कि सऊदी अरब को शामिल किया गया है। उसका अपना इंट्रेस्ट जुड़ा हुआ था। जब तमात तरह की साजिशों की बू आने लगी तो भारत सरकार सतर्क हो गई कि हमें भावना में बहकर काम नहीं करना है। चीन, तुर्किए जैसे देश ये चाह रहे थे कि भारत एक बार कोई इस तरह का दुस्साहस कर दे। फिर हम उसे अपने ट्रैप में फंसा लेंगे, जैसे रूस को फंसाया था। पश्चिमी देशों ने यूक्रेन से जानबूझकर उखसावे वाली कार्रवाई करवाई। जिससे रूस जंग में उलझ जाए। जंग में यूक्रेन नहीं लड़ रहा था। वो तो बस एक फेस हैं, बल्कि नाटो की पूरी फौज लड़ रही थी। पूरा अमेरिका का हथियार डिपो लड़ रहा था। लेकिन भारत ने स्ट्रैजिकली स्टैंड लिया। भारत समझ गया कि उसे युद्ध में उलझाना चाह रहे हैं ये देश, लेकिन वो एक्शन तब लेंगे जब माकूल वक्त आएगा। पाकिस्तान से बदला लेना कोई बहुत बड़ा मुद्दा नहीं है। आपको एस जयशंकर का बयान भी दौर करना चाहिए कि उन्होंने कहा भारत को ज्ञान देने वाले नहीं पार्टनर चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि यूरोप के कुछ देशों को आज भी ये लगता है कि वो दूसरे को ज्ञान दे सकते हैं, बल्कि वो खुद इसे फॉलो नहीं करते। अब आप खुद ही समझ सकते हैं कि ऐसे माहौल में यूरोप के देशों को डॉ. जयशंकर को जवाब देने की क्या जरूरत आन पड़ी थी? मतलब साफ है कि भारत ये समझ गया कि क्या गेम प्लान किया जा रहा था।
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