नव संवत्सर पर्व पर कैसे करें भगवान को प्रसन्न, आइए जानें

By शुभा दुबे | Mar 28, 2017

इस साल 'विक्रम संवत 2074' का शुभारम्भ 28 मार्च, सन 2017 को चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होगा। पुराणों के अनुसार चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को ब्रह्माजी ने सृष्टि निर्माण किया था, इसलिए इस पावन तिथि को नव संवत्सर पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। मान्यता है कि संवत्सर-चक्र के अनुसार सूर्य इस ऋतु में अपने राशि-चक्र की प्रथम राशि मेष में प्रवेश करता है। भारतवर्ष में वसंत ऋतु के अवसर पर नूतन वर्ष का आरम्भ मानना इसलिए भी हर्षोल्लासपूर्ण है, क्योंकि इस ऋतु में चारों ओर हरियाली रहती है तथा नवीन पत्र-पुष्पों द्वारा प्रकृति का नव श्रृंगार किया जाता है।

इस दिन प्रात: काल स्नान आदि के बाद हाथ में गंध, अक्षत, पुष्प और जल लेकर ओम भूर्भुव: स्व: संवत्सर- अधिपति आवाहयामि पूजयामि च इस मंत्र से नव संवत्सर की पूजा करनी चाहिए तथा ब्रह्मा जी से प्रार्थना करनी चाहिए कि 'हे भगवन! आपकी कृपा से मेरा यह वर्ष कल्याणकारी हो और इस संवत्सर के मध्य में आने वाले सभी अनिष्ट और विघ्न शांत हो जाएं।' नव संवत्सर के दिन नीम के कोमल पत्तों और ऋतुकाल के पुष्पों का चूर्ण बनाकर उसमें काली मिर्च, नमक, हींग, जीरा, मिश्री, इमली और अजवायन मिलाकर खाने से रक्त विकार आदि शारीरिक रोग शांत रहते हैं और पूरे वर्ष स्वास्थ्य ठीक रहता है। 

 

ब्रह्म पुराण के अनुसार आज के ही दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी। यही कारण है कि आज के दिन ब्रह्माजी की पूजा आराधना करने का शास्त्रीय विधान है। इस दिन भूमि को शुद्ध एवं पवित्र करने के बाद वहां पर लकड़ी की बनी हुई चौकी बिछाएं। चौकी पर बालू अर्थात् रेत की वेदी बनाकर उस पर नया सफेद कपड़ा बिछाएं। इस कपड़े पर हल्दी या केसर से रंगे हुए अक्षत से अष्टदल कमल बनाना चाहिए। फिर उस पर ओम ब्रह्मणे नमः मंत्र से ब्रह्माजी का आह्वान कर पुष्प, धूप, दीप, नेवैद्य से उनका पूजन करना चाहिए।

 

आज के दिन नये वस्त्र धारण करने, घर को सजाने, नीम के कोमल पत्ते खाने, ब्राह्मणों को भोजन कराने और प्याउ की स्थापना कराने का भी विशेष विधान है। इसके साथ ही ईश्वर से अब तक किये हुए पापों के लिए क्षमा मांगें और भगवान से प्रार्थना करें कि नवीन वर्ष में वह हमें अधिकाधिक शुभ कार्य करने की प्रेरणा और शक्ति प्रदान करे। पूरे वर्ष परिवार सुख शांति तथा धन धान्य से परिपूर्ण रहे, इसके लिए आवश्यक है कि हम नववर्ष के दिन शोक−विषाद से रहित होकर आनन्दपूर्वक उल्लासमय वातावरण में आज का दिन बिताएं। हमें चाहिए कि नववर्ष के दिन अपने घरों के दरवाजों पर आम और अशोक के पत्तों की वन्दनवारें लगाएं तथा घरों को सजाएं।

 

नव वर्ष के स्वागत में मकानों के ऊपर गेरूए रंग की धर्म ध्वजाएं भी हमें फहरानी चाहिएं। ब्राह्मणों, गुरुजनों और अपने से बड़ों को प्रणाम करके उनसे आशीर्वाद तो हमें लेना ही चाहिए, नव वर्ष का पंचांग सुनने का भी विशिष्ट धार्मिक महत्व है। इसके लिए उचित तो यही है कि नव वर्ष का पंचांग अथवा जन्त्री पहले ही घर लाकर रख ली जाए और उसे आज के दिन स्वयं पढ़ा जाए अथवा कोई पंडित बुलाकर उससे सुना जाए।

 

- शुभा दुबे

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