''कट मनी'' से इस तरह फटाफट मनी बनाते रहे तृणमूल नेता, गरीब जनता पिसती रही

By नीरज कुमार दुबे | Jul 03, 2019

सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में भ्रष्टाचार होना कोई नई बात नहीं है। अधिकतर आपने भ्रष्टाचार के मामलों में मंत्रियों, विधायकों या सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत होने की बातें ही सुनी होंगी। लेकिन जरा पश्चिम बंगाल में देखिये वहां क्या हो रहा है? वहां सरकार के मंत्रियों, विधायकों पर ही नहीं राज्य में सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं पर भी आरोप लग रहे हैं कि कल्याणकारी योजनाओं का लाभ लोगों को तभी दिया जाता है जब वह उनसे 'कट मनी' वसूल लेते हैं। इसके अलावा किसी भी तरह की सरकारी मंजूरी देने के लिए भी 'कट मनी' वसूली जाती है। ये 'कट मनी' आपके लिए शब्द भले नया हो लेकिन इसे हम रिश्वत, घूस, नजराना आदि शब्दों के माध्यम से बरसों से जानते हैं। भाजपा का आरोप है कि तृणमूल कांग्रेस के शासन में सभी मंत्री, विधायक, पंचायत प्रतिनिधि आदि 'कट मनी' लिये बिना सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं दिलाते। 

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कट मनी बिना कुछ नहीं

 

पश्चिम बंगाल में आपको सरकारी योजना के तहत घर लेना है, मनरेगा के तहत रोजगार हासिल करना है अथवा पंचायतों, निकायों या राज्य सरकार की ओर से चलायी जाने वाली किसी भी कल्याणकारी योजना का लाभ लेना है तो 'कट मनी' तैयार रखिये। आपका काम तभी होगा जब आप तृणमूल कांग्रेस के लोगों को नजराने के रूप में उनका हिस्सा दे देंगे। हालिया लोकसभा चुनावों में जब तृणमूल कांग्रेस की सारी हेकड़ी निकल गयी तो राज्य सरकार को जनता की सुध आयी और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तय किया कि सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों से 'कट मनी' लेने वाले निर्वाचित जन प्रतिनिधियों और सरकारी अधिकारियों को अब भारतीय दंड संहिता की धारा 409 के तहत आरोपी बनाया जाएगा जो कि लोकसेवक, बैंकर, एजेंट द्वारा आपराधिक विश्वास हनन से संबंधित है। इस कानून के तहत दोषी ठहराये जाने वाले व्यक्ति को आजीवन कारावास की सजा या जुर्माने के अलावा 10 वर्ष तक के कारावास की सजा हो सकती है।

 

मुख्यमंत्री क्या वाकई जनता की सुध ले रही हैं?

 

सवाल उठता है कि क्यों अब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को 'कट मनी' लेने वालों पर कार्रवाई की बात ध्यान आई जबकि इस तरह के आरोप तो बहुत पहले से लग रहे थे? तृणमूल कांग्रेस के कुछ निर्वाचित प्रतिनिधियों ने 'कट मनी' वापस करने की बात कही भी है लेकिन क्या ममता बनर्जी उन सभी लोगों को पैसे वापस करवाएंगी जिनकी मेहनत की कमाई रिश्वत के लिए लोलुप निर्वाचित प्रतिनिधियों की भेंट चढ़ गई? अब जब जनता 'कट मनी' के खिलाफ सड़कों पर प्रदर्शन कर रही है, भाजपा के नवनिर्वाचित सांसद लोकसभा में यह मुद्दा उठा रहे हैं तभी क्यों ममता बनर्जी की आंखें खुलीं? और इस बात की क्या गारंटी है कि अब कानून का सख्ती से अनुपालन कराने की बात कह रहीं ममता बनर्जी अपनी बातों पर खरी उतरेंगी? क्या वह आज तक चिटफंड घोटाले के आरोपियों को सजा दिला पायी हैं? चिटफंड घोटाले में उनकी पार्टी के जो लोग संलिप्त थे उन पर ममता बनर्जी ने क्या बड़ी कार्रवाई की? चिटफंड घोटाले में अपनी मेहनत की कमाई गंवाने वाले लोगों को क्या ममता बनर्जी सरकार ने कोई भरपाई की? इन सब प्रश्नों का जवाब जब 'नहीं' में हैं तो 'कट मनी' देने वालों को उनका पैसा वापस मिल जायेगा इस बात पर भरोसा कैसे किया जा सकता है? क्या राज्य सरकार इस बात का जवाब देगी कि उसने जनप्रतिधियों द्वारा लोगों से ‘कट मनी’ वसूलने के बारे में शिकायतें प्राप्त करने के लिए पूर्व में जो शिकायत इकाई शुरू की थी और जो टोल फ्री नम्बर और ईमेल शुरू किया था उस पर कितनी शिकायतें आईं और उन पर क्या कार्रवाई हुई? क्यों मुख्यमंत्री 'कट मनी' मामलों की जाँच के लिए एक स्वतंत्र आयोग बनाने की माँग को नहीं मान रही हैं?

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जनता में दिख रहा है आक्रोश

 

हाल ही में 'कट मनी' के खिलाफ पश्चिम बंगाल के विभिन्न हिस्सों में जनता का आक्रोश दिखा था और सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के कई नेताओं को भीड़ ने घेर लिया और उनसे ‘कट मनी’ वापस मांगी। ममता बनर्जी ने गत 18 जून को तृणमूल पार्षदों की एक बैठक को संबोधित करते हुए उन्हें आदेश दिया था कि वे लाभार्थियों से लिया गया ‘कट मनी’ का कमीशन वापस करें। उनके आदेश के बाद राज्य के बीरभूम जिले में तृणमूल कांग्रेस के एक स्थानीय नेता ने सरकारी योजनाओं के 100 से अधिक लाभार्थियों को करीब 2.25 लाख रुपये लौटा दिये और माफी भी मांग ली। लेकिन ऐसा और कोई उदाहरण तृणमूल कांग्रेस के किसी और नेता की ओर से राज्य के अन्य हिस्सों से देखने को नहीं मिला। साथ ही ममता बनर्जी ने जो 'कट मनी' वापस देने का निर्देश दिया है उससे साबित होता है कि उन्हें इन सब गलत कामों की पूरी जानकारी थी लेकिन उन्होंने अपने पार्टी कार्यकर्ताओं को फलने-फूलने देने के लिए जनता को पिसने दिया। राज्य विधानसभा के हालिया सत्र में भी यह मुद्दा विपक्ष ने जोरशोर से उठाया था। विपक्ष के नेता अब्दुल मन्नान ने दावा किया था कि ‘कट मनी’ मुद्दे और उसके खिलाफ प्रदर्शनों ने पूरे राज्य में कानून एवं व्यवस्था की स्थिति उत्पन्न कर दी है। 

 

अब क्या होगा ?

 

ममता बनर्जी को यह देखना चाहिए कि 'कट मनी' लेकर जनता को लूटने की अब हद हो चुकी है और जाँच की आंच तृणमूल कांग्रेस के अन्य नेताओं तक होते हुए उन तक भी आ सकती है। कलकत्ता हाईकोर्ट ने 'कट मनी' के एक मामले की सुनवाई करते हुए पश्चिम बंगाल के खाद्य मंत्री ज्‍योतिप्रिय मलिक, उनके सहायक, एक निगम पार्षद और राज्य सरकार से चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है। यह पहला मौका है जब 'कट मनी' में किसी मंत्री का नाम सामने आया है। कभी तृणमूल कांग्रेस में रहे और वर्तमान में भाजपा सांसद सौमित्र खान ने तो संसद में ‘कट मनी’ का मुद्दा उठाते हुए कहा है कि राज्य में 2011 से मुख्यमंत्री और उनके परिवार ने कितना पैसा लिया है, उसकी जांच कराई जानी चाहिए। भाजपा सांसद लॉकेट चटर्जी ने भी संसद में यह मुद्दा उठाते हुए कहा कि पश्चिम बंगाल में ‘‘जन्म से लेकर मृत्यु तक हर जगह कट मनी ली जाती है।’’

 

बहरहाल, अब देखना होगा कि 'कट मनी' के खिलाफ जो लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं उसका राज्य सरकार पर और क्या असर पड़ता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि पश्चिम बंगाल की गरीब जनता को वहां के सत्तारुढ़ नेताओं ने लूटने का काम किया है। तृणमूल कांग्रेस को समय पर चेतना होगा क्योंकि यह जनता जब अपना हक मांगने पर अड़ती है तो बड़े से बड़े बहुमत वाली पार्टियों को हिला कर रख देती है।

 

-नीरज कुमार दुबे

 

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