मजहब और जातियों में जकड़े रहे तो कैसे आगे बढ़ सकेगा भारत?

By डॉ. वेदप्रताप वैदिक | May 09, 2022

अपने देश में हाल में दो घटनाएं ऐसी हुई हैं, जिन्हें लेकर भारत के धर्मध्वजियों और नेताओं को विशेष चिंता करनी चाहिए। पहली घटना हैदराबाद में हुई और दूसरी गुजरात में। हैदराबाद में एक हिंदू नौजवान नागराजू की हत्या इसलिए कर दी गई कि उसने सुल्ताना नामक एक मुसलमान लड़की से शादी कर ली थी। गुजरात के एक गांव में कुछ हिंदुओं ने दो अन्य हिंदुओं पर इसलिए हमला कर दिया कि वे अपने पूजा-पाठ को लाउडस्पीकर पर गुंजा रहे थे।

इसे भी पढ़ें: राहुल गांधी को पार्टियां पसंद हैं तो इस बात पर हंगामा खड़ा करने की क्या जरूरत है?

ध्यान रहे कि यह हमला न तो मुसलमानों पर हिंदुओं का था और न ही हिंदुओं पर मुसलमानों का! उक्त दोनों हमले अलग-अलग कारण से हुए और उनका चरित्र भी अलग-अलग है लेकिन दोनों में बुनियादी समानता भी है। दोनों हमलों में मौतें हुईं और दोनों का मूल कारण एक ही है। वह कारण है— असहिष्णुता! यदि गांव के कुछ लोगों ने अनजाने या जान-बूझकर लाउडस्पीकर लगा लिया तो उससे कौन-सा आसमान टूट रहा था? उन्हें रोकने के लिए मारपीट और गाली-गुफ्ता करने की क्या जरूरत थी। यदि सचमुच लाउडस्पीकर की आवाज कानफोड़ू थी और उससे आपके काम में कुछ हर्ज हो रहा था तो आप पुलिस थाने में जाकर शिकायत भी कर सकते थे लेकिन किसी की आवाज काबू करने के लिए आप उसकी जान ले लें, यह कहां कि इंसानियत है? इसके पीछे का सूक्ष्म कारण पड़ोसियों का अहंकार भी हो सकता है। किसी कमतर पड़ोसी की यह हिम्मत कैसे पड़ गई कि वह पूजा-पाठ के नाम पर सारे मोहल्ले में अपने नाम के नगाड़े बजवाए? यदि हमलावर लोग कानून-कायदों का दूसरों से इतना सख्त पालन करवाना चाहते हैं तो उन्हें खुद से पूछना चाहिए कि उन्होंने अपने पड़ोसी की हत्या करके कौन-से कानून का पालन किया है?

इसे भी पढ़ें: धर्मनिरपेक्षता के असल मायनों को समझें, समाज में भेद पैदा करने वालों से सतर्क रहें

जहां तक एक मुस्लिम लड़की का एक हिंदू लड़के से विवाह का सवाल है, दोनों की दोस्ती लंबी रही है। वह विवाह किसी धर्म-परिवर्तन के अभियान के तहत नहीं किया गया था। वह शुद्ध प्रेम-विवाह था। लेकिन भारत में आज कोई भी बड़ा नेता या बड़ा आंदोलन ऐसा नहीं है, जो अन्तरधार्मिक और अंतरजातीय विवाहों को प्रोत्साहित करे। हम लोग अपने मजहबों और जातियों के कड़े सींखचों में अभी तक जकड़े हुए हैं। जो व्यक्ति इन संकीर्ण बंधनों से मुक्त है, वह ही सच्चा धार्मिक है। वही सच्चा ईश्वरभक्त है। यदि ईश्वर एक ही है तो उसकी सारी संतान अलग-अलग कैसे हो सकती हैं? उनका रंग-रूप, भाषा-भूषा, खान-पान देश और काल के मुताबिक अलग-अलग हो सकता है लेकिन यदि वे एक ही पिता के पुत्र हैं तो आप उनमें भेद-भाव कैसे कर सकते हैं? यदि आप उनमें भेद-भाव करते हैं तो स्पष्ट है कि आप धार्मिक हैं ही नहीं। आप एक नहीं, अनेक ईश्वरों को मानते हैं। इसका एक गंभीर अर्थ यह भी है कि ईश्वर ने आपको नहीं, आपने ईश्वर को बनाया है। हर देश और काल में लोगों ने अपने मनपसंद ईश्वर को गढ़ लिया है। ऐसे लोग वास्तव में ईश्वरद्रोही हैं। उनके व्यवहार को देखकर तर्कशील लोग ईश्वर की सत्ता में अविश्वास करने लगते हैं।


-डॉ. वेदप्रताप वैदिक

प्रमुख खबरें

भाजपा ने आयोग से निकम को ‘बदनाम’ करने के लिए वडेट्टीवार के खिलाफ कार्रवाई का अनुरोध किया

Southern Lebanon में इजराइली हमले में चार नागरिकों की मौत: मीडिया

Puri Assembly Seat के कांग्रेस उम्मीदवार पर हमला, घायल

Delhi में अधिकतम तापमान 41.1 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया