By संतोष उत्सुक | Sep 08, 2025
मंत्रीजी ने लगभग चीख कर हुक्म दिया, सभी बंद सड़कें तत्काल खोलें। उनका मतलब यही रहा होगा कि फिल्हाल दो सौ सतासठ सड़कें तत्काल डिजिटली खोलें। आजकल सब कुछ डिजिटली ही होता है। कोशिश रहती है कि नकली बुद्धि से सलाह लेकर किया जाए। असलीयत यह है कि असली बुद्धि विसर्जित की जा रही है। मंत्रीजी ने अपने दोनों हाथ उठाकर कहा, हम बारिश से डरते नहीं हैं। आपदा प्रबंधन और राहत बचाव का कार्य युद्ध स्तर पर जारी है ।
बारिश से बंद, निन्यानवे प्रतिशत सड़कों को खोला जा चुका है। उनके निजी सचिव प्रेस ने उन्हें सुझाया था, सर, निन्यानवे प्रतिशत कहना ज्यादा हो जाएगा तो उन्होंने उसे थपकी दी थी, हमें सकारात्मक सोचना और कहना चाहिए। सब जानते मानते हैं कि आंकड़े बढ़ा चढ़ा कर बताए जाते हैं। उन्होंने सूचित किया कि एक हज़ार इतने सौ इतनी सड़कों में से, एक हज़ार उतनी सौ उतनी खोल दी गई हैं। बस इतनी सी रह गई हैं। मंत्रीजी की बात ठीक है, कौन देखने और गिनने जाता है। जो जाएगा सड़क पर फंस जाएगा।
उन्होंने समझाया कि लोक निर्माण विभाग के साथ ही अन्य एजेंसियों को भी सड़क खोलने के काम में सर्वोच्च प्राथमिकता बरतने के सख्त निर्देश भेजे हैं। जेसीबी व अन्य मशीनों की डीज़ल टंकियां फुल करवा दी हैं। कई पुराने चालक भूल गए थे कि कैसे चलानी हैं। मंत्रीजी ने राज़ की बात सार्वजनिक स्तर पर बताई, प्रदेशवासियों की सुरक्षा और सुविधा, सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता में शामिल है। सड़कें खोलने के साथ बिजली पानी सुचारु रूप से उपलब्ध करवाने के लिए भी निर्देश दिए गए हैं। मंत्रीजी ने लगे हाथ यह उपदेश भी दे, वर्तमान चुनौतियों के आधार पर भविष्य के लिए भी आपदा प्रबंधन तंत्र मज़बूत किया जाए।
इन महकमों के सुविधाहीन कर्मचारी सरकार को हमेशा कोसते रहते हैं कि हमारे पास मरम्मत करने के लिए सामान नहीं है। सीढियां टूटी पड़ी हैं। हमारे पास फटे पुराने दस्ताने भी नहीं हैं। हमारी बात कोई सुन कर राज़ी नहीं है। आपदा प्रबंधन वालों ने कहा हम तो कब से कह रहे हैं लेकिन यहां तो आपदा आकर जाने के बाद ही सोचने की परम्परा है। मंत्रीजी ने फिर हाथ उठाकर कहा कि आपदा से प्रभावित लोग इस आपदा को कुदरती आपदा ही समझें। इस मामले में सरकार पूरी तरह भावनात्मक और संवेदनात्मक रूप से उनके साथ जुड़ी हुई है। उन्होंने अपने साथी और विपक्षी नेताओं से कहा कि वे भी पीड़ितों के दुःख को अपना दुःख समझें ।
उन्होंने लगभग चीख कर कहा दिन रात हर तरफ निगरानी रखी जाए, खतरा महसूस होते ही सुरक्षात्मक कदम उठाए जाएं। उनके कहने का मतलब शायद यह था कि जो व्यक्ति पानी में बह रहा हो और बच सकता हो उसे बचाने का प्रयास शुरू का दिया जाए। उन्होंने बिलकुल स्पष्ट शब्दों में निर्देश देते हुए धनराशि के विवेकपूर्ण और पारदर्शी उपयोग पर बल दिया। यह तो उन्हें पता ही था कि ऐसी राशि पूरी ईमानदारी से वितरित की जाती है। उन्होंने कहा किसी भी मामले में गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं किया जाएगा। मरम्मत कार्यों में भौतिक निरीक्षण सुनिश्चित किया जाए। उन्होंने यह भी शोरदार ढंग से कह डाला कि विपक्ष वाले किसी गलतफहमी में न रहें। मंत्रीजी ने जो कहा डंके की चोट पर कहा ।
- संतोष उत्सुक