By Prabhasakshi News Desk | Mar 05, 2025
नयी दिल्ली । उच्चतम न्यायालय ने कहा कि दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) के तहत दिया गया अंतरिम स्थगन व्यक्तियों या कंपनियों को उपभोक्ता संरक्षण कानूनों के तहत लगाए गए नियामकीय दंड से नहीं बचाता है। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। इसमें यह निर्धारित किया गया कि क्या आईबीसी की धारा 96 के तहत दिए गए अंतरिम स्थगन के दौरान उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 27 के तहत निष्पादन कार्यवाही पर भी रोक लगाई जा सकती है।
आईबीसी की धारा 96 के तहत एक अंतरिम स्थगन लागू होता है जिसके बाद कर्जदार कंपनी के खिलाफ सभी लंबित कानूनी कार्यवाही अस्थायी रूप से निलंबित हो जाती है। इससे कर्जदार कंपनी के खिलाफ किसी भी फैसले के निष्पादन पर रोक भी लग जाती है। ईस्ट एंड वेस्ट बिल्डर्स के मालिक सारंगा अनिलकुमार अग्रवाल ने अपनी याचिका में कहा था कि वह आईबीसी के तहत दिवाला कार्यवाही का सामना कर रहे हैं लिहाजा राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के आदेश के निष्पादन पर रोक लगाई जानी चाहिए।
उच्चतम न्यायालय की पीठ ने अपने फैसले में कहा, ‘‘एनसीडीआरसी द्वारा लगाए गए दंड नियामकीय प्रकृति के हैं और वे आईबीसी के तहत ‘ऋण’ में नहीं आते हैं। आईबीसी की धारा 96 के तहत स्थगन उपभोक्ता संरक्षण कानूनों के गैर-अनुपालन के लिए लगाए गए नियामकीय दंडों तक विस्तारित नहीं है।’’ इसके साथ ही पीठ ने आवासीय इकाइयों के कब्जे में देरी से जुड़े एक मामले में एनसीडीआरसी द्वारा लगाए गए दंड पर रोक लगाने की मांग करने वाली अपील को खारिज कर दिया।