By अनन्या मिश्रा | May 19, 2023
भारतीय उद्योगों के पिता कहे जाने वाले जमशेदजी टाटा ने आज ही के दिन यानी की 19 मई को इस दुनिया को अलविदा कह दिया था। जमशेदजी टाटा को भी सफलता इतनी आसानी से नहीं मिली थी। भारतीय उद्योग में अपना सिक्का जमाने वाले टाटा के जीवन के हालात उनके अनुकूल नहीं थे। लेकिन उन्होंने कभी भी विपरीत परिस्थितियों में हार नहीं मानी और अपने काम को पूरी ईमानदारी व लगन के साथ करते चले गए। आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सिरी पर जमशेदजी टाटा के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और शिक्षा
गुजरात के नवसारी में 3 मार्च 1839 को जमशेदजी टाटा का जन्म हुआ ता। बता दें कि उनके पिता नौशरवांजी पारसी पादरियों के वंश में पहले व्यापारी थे। वहीं जमशेदजी महज 14 साल की उम्र से ही अपने पिता के कारोबार में हाथ बंटाने लगे थे। साल 1858 में उन्होंने एल्फिस्टन कॉलेज से ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद वह पूरी तरह से व्यापार से जुड़ गए। परिवार की ओर से विरासत में मिले व्यवसाय को छोड़ने के बाद जमशेदजी ने जिस भी व्यवसाय में अपनी किस्मत आजमाई। वहां पर उन्होंने बुलंदियों को छुआ। बता दें कि वह अपने जमाने के बहुत बड़े दानी माने जाते थे।
अफीम का कारोबार
जमशेदजी टाटा के पिता की जापान, चीन यूरोप, और अमेरिका में निर्यात कंपनी की शाखाएं थीं। लेकिन साल 1858 में विद्रोह की स्थितियों के चलते उस दौरान व्यापार को चलाना व उसका विस्तार करना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं था। उनके पिता नौशरवांजी अक्सर चीन जाया करते थे और वहां पर अफीम का कारोबार करते थे। नौशरवांजी अपने बेटे जमशेदजी को भी उसी व्यवसाय में डालना चाहते थे। नौशरवांजी उन्हें चीन भेजना चाहते थे, ताकि वह अफीम के कारोबार की बारीकियों को अच्छे से सीख सकें।
कपड़े का व्यवसाय
जब अपने पिता की इच्छा के मुताबिक जमशेदजी चीन गए तो उन्होंने देखा कि भविष्य तो कपड़े के व्यवसाय में है। जमशेदजी ने 29 साल की उम्र तक अपने पिता के कारोबार में हाथ बंटाया। इसके बाद उन्होंने साल 1868 में 21 हजार रुपयों से चिंचपोकली में दिवालिया तेल की कारखाने को खरीद लिया। इसके बाद उस कारखाने को रूई की फैक्ट्री में बदला। वहीं 2 साल बाद उस फैक्ट्री को मुनाफे में बेंच दिया।
ऐसे मिली सफलता
जमशेदजी ने पहले नागपुर में ही रुई का कारखाना खोला और फिर वहीं पर कपड़े का कारखाना भी खोल दिया। जमशेदजी द्वारा मुंबई जैसी जगह को छोड़ कर उन्होंने नागपुर में कारखाना खोलना लोगों को समझ नहीं आया। लेकिन य़हां पर उनको उम्मीद के विपरीत बड़ी सफलता हासिल की। जिसके बाद उन्होंने साल 1877 में नागुपर में एक और मिल खोल दी।
तय किए थे 4 लक्ष्य
जमशेदजी टाटा के जिंदगी में 4 लक्ष्य तय किया थे। जिसमें एकस्टील कंपनी खोलना था। इसके अलावा विश्वस्तरीय प्रशिक्षण संस्थान, एक आलीशान फाइव स्टार होटल और हाइड्रोइलेक्ट्रिक संयंत्र खोलना चाहते थे। हालांकि वह सिर्फ होटल खुलने का सपना पूरा होते देख सके। साल 1903 को मुंबई के कोलाबा इलाके में ताज होटल खुला। बता दें कि यह उस दौरान का एक मात्र ऐसा होटल था, जहां बिजली की व्यवस्था थी।
कपड़ा निर्यातक
वह भारत में कपड़ा और कपास उद्योग के शीर्ष पर पहुंच गए थे। इस सफलता में अहमदाबाद के कपड़ा मिल की काफी बड़ी भूमिका थी। जमशेदजी भी स्वदेशी के पक्षधर थे। वह चाहते थे कि मानचेस्टर में जिस क्वालिटी का कपड़ा बनकर तैयार होता था। वही क्वालिटी भारत के कपड़ों में भी पैदा हो। वह कपड़ा उद्योग के मामले में भारत को निर्यातक की श्रेणी में लाना चाहते थे। बता दें कि जमशेदजी के तीन सपनों को उनके वंशजों ने पूरा किया। दुनिया की सर्वश्रेष्ठ कंपनियों में से टाटा स्टील कंपनी का नाम शामिल है। यह न सिर्फ भारत बल्कि एशिया की सबसे बड़ी कंपनी है।
मृत्यु
साल 1900 में जर्मनी की व्यापारिक यात्रा के दौरान जमशेदजी गंभीर रूप से बीमार हो गए थे। वहीं 19 मई 1904 को उनका निधन हो गया था।