हिन्दूवादी संगठनों के प्रति 'तालिबानी' सोच रखने वाले जावेद अख्तर को संघ की बैठक में जाने की जरूरत, तालिबान पर भी होने वाली है चर्चा

By अभिनय आकाश | Sep 04, 2021

तालिबान इन दिनों टॉप सर्चिंग कीवर्ड बना हुआ है। हो भी क्यों न एक लोकतांत्रिक देश की सत्ता को बंदूक के दम पर जमींदोज करते हुए वहां के लोगों के अधिकारों का दमन करने में लगा है। वहीं तालिबान को लेकर देश-दुनिया में भी खूब चर्चा हो रही है। प्याज की बढ़ती कीमतों से लेकर आलू की मिठास तक गीतकार जावेद अख्तर इन दिनों खूब सक्रिय रहते हैं। वे समाज, राजनीति, साहित्य, इतिहास हर तरह के मुद्दे पर अपना पक्ष जरूर रखते हैं और कई बार वे विवादित विचार भी रख देते हैं। मशहूर शायर और गीतकार जावेद अख्तर ने तालिबान की बर्बरता की आलोचना करते-करते हिन्दू संगठनों की तुलना भी उससे कर दी। 

क्या कहा जावेद अख्तर ने? 

जावेद अख्तर ने कहा है कि इसमें कोई शक नहीं कि तालिबान बर्बर है और उसकी करतूतें भी निंदनीय है। लेकिन आरएसएस, विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल का समर्थन करने वाले भी ऐसे ही हैं। पूर्व राज्यसभा सांसद अख्तर ने कहा कि देश में मुस्लिमों का एक छोटा सा हिस्सा ही तालिबान का समर्थन कर रहा है। जावेद अख्तर ने कहा कि तालिबान और तालिबान की तरह बनने की चाहत रखने वालों के बीच अजीबो-गरीब समानता है। दिलचस्प बात ये है कि दक्षिणपंथी इस बात का इस्तेमाल खुद को प्रमोट करने के लिए इस उद्देश्य से करते हैं कि उसी की तरह बन सके जिसका वो विरोध कर रहे हैं। 

आरएसएस की बैठक में तालिबान पर चर्चा 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की दो दिवसीय बैठक नागपुर में शुरू हो गई है जिसमें कई राज्यों में विधानसभा चुनाव, अफगानिस्तान में तालिबान के अधिग्रहण सहित देश और दुनिया के मौजूदा मुद्दों पर चर्चा होगी। संघ अफगानिस्तान में तालिबान शासन के मुद्दे पर अपनी राय रखेगा और बताएगा कि यह इसका दुनिया और भारत पर असर किस तरह देखता है। संघ विचारक सुनील देवधर ने कहा कि आरएसएस को लगता है कि तालिबान की सत्ता में हिंसक वापसी सभ्य दुनिया के लिए शुभ संकेत नहीं है और इससे कश्मीर में आतंकवादियों का मनोबल बढ़ सकता है।'' बैठक में इस मुद्दे पर प्रस्ताव भी पारित किया जा सकता है। ऐसे में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की परिभाषा गढ़ने वाले इस संगठन की बैठक में हिन्दूवादी संगठनों के प्रति ऐसी सोच रखने वाले लोगों को भी जाने कि जरूरत हैं जहां उन्हें इस बात का भान होगा कि समाज के भीतर देश के सबसे बड़े परिवार के तौर पर आरएसएस अपनी पहचान कराने वाले संगठन राष्ट्रहित से इतर कुछ भी नहीं हैं। 

 

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