By नीरज कुमार दुबे | Nov 01, 2025
अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस की टिप्पणी ने एक बार फिर दिखा दिया है कि जब धर्म राजनीति का औज़ार बन जाता है, तो सबसे पहले सम्मान और संवेदनशीलता की बलि चढ़ती है। मिसिसिपी में हुए Turning Point USA कार्यक्रम में वेंस ने कहा कि उनकी पत्नी उषा वेंस, जो जन्म से हिंदू हैं, “धार्मिक नहीं थीं” और वह उम्मीद करते हैं कि “एक दिन वह भी ईसा मसीह में विश्वास करेंगी।” यह सुनते ही दुनियाभर के हिंदू समुदाय में नाराज़गी फैल गई।
कुछ साल पहले तक यही जेडी वेंस अपनी पत्नी की आस्था की सराहना करते थे। वह कहते थे कि उषा ने उन्हें ईश्वर और प्रार्थना की ओर लौटने की प्रेरणा दी। उनकी किताब Hillbilly Elegy में भी उषा की भूमिका को उनकी आध्यात्मिक यात्रा का केंद्र बताया गया था। पर अब वही व्यक्ति अपनी पत्नी के धर्म को “अधूरा” बताने लगे हैं क्योंकि आज वह राजनीति के ऐसे दौर में हैं, जहाँ धर्म सिर्फ़ आस्था नहीं, बल्कि चुनावी हथियार बन चुका है।
हम आपको बता दें कि 2014 में जब जेडी और उषा वेंस का विवाह हुआ था, तब वह आधुनिक अमेरिका में सांस्कृतिक और धार्मिक सहअस्तित्व की मिसाल माना गया। शादी में वैदिक मंत्र भी थे और चर्च के गीत भी। वेंस उस समय गर्व से कहते थे कि उनकी पत्नी के हिंदू संस्कारों ने उन्हें विनम्रता और ईश्वर के करीब रहना सिखाया। लेकिन अब, जब वह ट्रम्प समर्थक कट्टर दक्षिणपंथी राजनीति के केंद्र में हैं, तो वही उषा की आस्था “कमज़ोरी” के रूप में दिखाई जाने लगी है। यह बदलाव सिर्फ़ व्यक्तिगत नहीं, बल्कि उस राजनीतिक दबाव का नतीजा है जहाँ हर नेता से उम्मीद की जाती है कि वह “ईसाई पहचान” को खुलकर प्रदर्शित करे।
दूसरी ओर, अमेरिका और भारत, दोनों जगह के हिंदू संगठनों ने वेंस के बयान को “धार्मिक अहंकार” बताया है। Hindu American Foundation (HAF) ने सीधा सवाल पूछा है कि जब वेंस अपनी पत्नी की आस्था से प्रेरित होकर खुद ईश्वर में लौटे, तो अब वह हिंदू धर्म को कमतर क्यों दिखा रहे हैं? संस्था ने यह भी याद दिलाया कि हिंदू धर्म में किसी को अपने धर्म में “लाने” की कोई आवश्यकता नहीं मानी जाती। हिंदू दर्शन बहुलता और सह-अस्तित्व पर टिका है— यह मानता है कि सत्य एक है, परंतु उसे पाने के कई मार्ग हैं। इसके विपरीत, वेंस का कहना है कि वह उम्मीद करते हैं कि उनकी पत्नी “कभी ईसा को अपनाएँगी”, इस विचारधारा के बिल्कुल खिलाफ़ है। देखा जाये तो असल समस्या यह नहीं कि वेंस ईसाई हैं; समस्या यह है कि उन्होंने अपनी पत्नी के विश्वास को कमतर दिखाकर अपनी धार्मिक श्रेष्ठता साबित करने की कोशिश की। यही बात हिंदू समुदाय के लिए अपमानजनक है।
वैसे जेडी वेंस का यह बयान अमेरिकी राजनीति के एक बड़े बदलाव का संकेत है, जहाँ आस्था अब निजी नहीं रही, बल्कि सार्वजनिक प्रदर्शन का विषय बन गई है। MAGA (Make America Great Again) आंदोलन के भीतर अब धर्म केवल आध्यात्मिक नहीं, बल्कि पहचान और वोट का प्रतीक बन चुका है। वेंस का यह कहना कि “ईसाई होना मतलब दूसरों के साथ अपने विश्वास को साझा करना” इस मानसिकता को दिखाता है, जिसमें “साझा करना” दरअसल “मनवाना” बन गया है। ऐसी सोच में धार्मिक स्वतंत्रता की जगह धार्मिक श्रेष्ठता ले लेती है।
उषा वेंस अब तक सार्वजनिक रूप से बहुत कम बोलती हैं। लेकिन जो लोग उन्हें जानते हैं, वह कहते हैं कि वह एक शांत, दृढ़ और सहिष्णु व्यक्तित्व हैं। उन्होंने कभी अपने पति से यह नहीं कहा कि वह हिंदू बनें, न ही अपनी संस्कृति को छोड़ें। उनके जीवन में धर्म एक संतुलन और संवाद का माध्यम रहा है। इस पृष्ठभूमि में जेडी वेंस का बयान न केवल उनके प्रति अन्याय है, बल्कि उन लाखों अंतरधार्मिक परिवारों का भी अपमान है जो प्रेम और परस्पर सम्मान पर टिके हैं।
इसमें कोई दो राय नहीं कि जब धर्म प्रचार बन जाए, तो प्रेम खो जाता है। जेडी वेंस की यह टिप्पणी यह दिखाती है कि राजनीतिक महत्वाकांक्षा कैसे व्यक्तिगत रिश्तों और धार्मिक संवेदनाओं को निगल जाती है। जो व्यक्ति कभी अपनी पत्नी के धर्म से प्रेरणा लेता था, आज उसी धर्म को “अधूरा” बताकर अपने वोटरों को खुश कर रहा है। यह घटना सिर्फ़ अमेरिका के लिए नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक चेतावनी है कि जब धर्म संवाद की जगह प्रचार का माध्यम बन जाता है, तो सत्य की जगह सत्ता ले लेती है।
उषा वेंस की आस्था, उनकी शांति और उनका मौन, दरअसल उस हिंदू विचार की ताकत है जो बिना प्रचार के भी जीवित है। लेकिन जेडी वेंस की राजनीति हमें यह याद दिलाती है कि दुनिया में अभी भी ऐसे लोग हैं जिन्हें दूसरे की आस्था से ज़्यादा अपनी पहचान की चिंता है। और यही वह जगह है जहाँ आस्था हार जाती है और राजनीति जीत जाती है। जेडी वेंस की टिप्पणी न केवल एक पत्नी के सम्मान का हनन है, बल्कि उन लाखों अंतरधार्मिक परिवारों के लिए भी अपमानजनक संदेश है, जो संवाद और सह-अस्तित्व पर विश्वास करते हैं।
बहरहाल, वेंस का यह “राजनीतिक बपतिस्मा” शायद उन्हें MAGA समर्थकों की तालियाँ दिला दे, लेकिन इससे उन्होंने उस अमेरिका की उस भावना को कमजोर किया है, जो विविधता और समानता पर टिकी है। अब भले वेंस विवाद पर तमाम तरह की सफाई देते रहें लेकिन इस पूरे प्रकरण का सबसे बड़ा सबक यही है कि धर्म का सार विश्वास में है, प्रचार में नहीं और जब आस्था राजनीति की सीढ़ी बन जाए, तो ईश्वर भी मौन हो जाता है।
-नीरज कुमार दुबे