By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | May 15, 2018
बेंगलूरू। कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए मतों की गिनती शुरू हो गई हैं। चुनाव बाद सर्वेक्षणों में राज्य में त्रिशंकु विधानसभा का पूर्वानुमान व्यक्त किया गया है। ऐसे में पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा का जनता दल (एस) ‘किंगमेकर’ की भूमिका निभा सकता है। राज्य की 224 सदस्यीय विधानसभा की 222 सीटों पर 12 मई को मतदान हुआ था।
आर.आर नगर सीट पर चुनावी गड़बड़ी की शिकायत के चलते मतदान स्थगित कर दिया गया था। जयनगर सीट पर भाजपा उम्मीदवार के निधन के चलते मतदान टाल दिया गया था। चुनाव कार्यालय के सूत्रों ने बताया कि मतगणना लगभग 40 केंद्रों पर सुबह आठ बजे शुरू होगी। रुझान एक घंटे के भीतर आने शुरू हो सकते हैं और चुनाव परिणाम देर शाम तक स्पष्ट होंगे।
यदि कांग्रेस के पक्ष में स्पष्ट जनादेश जाता है तो 1985 के बाद यह पहली बार होगा जब कोई दल लगातार दूसरी बार सरकार बनाएगा। 1985 में तत्कालीन जनता दल ने रामकृष्ण हेगड़े के नेतृत्व में लगातार दूसरी बार सरकार बनाई थी। यह हालांकि अभी अस्पष्ट है कि कांग्रेस के जीतने की स्थिति में पिछड़ा वर्ग से आने वाले सिद्धरमैया मुख्यमंत्री होंगे या नहीं।
कांग्रेस ने हालांकि कहा था कि चुनाव में सिद्धरमैया ही उसका चेहरा होंगे , लेकिन उसने यह घोषणा नहीं की कि पार्टी की जीत की स्थिति में मुख्यमंत्री भी वही होंगे। सिद्धरमैया ने कल कहा था कि यदि आलाकमान फैसला करता है तो वह किसी दलित को मुख्यमंत्री बनाए जाने पर सहमत होंगे। राजनीतिक हल्कों में उनके इस बयान को खंडित जनादेश की स्थिति में जनता दल (एस) से गठबंधन करने की ओर इशारा करने के रूप में माना गया।
देवगौड़ा की पार्टी से सिद्धरमैया के संबंध हमेशा तनावपूर्ण रहे हैं। हालांकि पूर्व में वह जनता दल (एस) के ही नेता थे। सिद्धरमैया ने पूर्व में संवाददाताओं से कहा था, ‘मुझे यकीन है कि कांग्रेस बहुमत के साथ चुनाव जीतेगी और मैं मुख्यमंत्री बनूंगा।’ उन्होंने हालांकि यह भी कहा कि आलाकमान अगले मुख्यमंत्री के बारे में फैसला करने से पहले जीत हासिल करने वाले उम्मीदवारों से भी सलाह-मशविरा करेगा।
कांग्रेस ने क्योंकि मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा नहीं की थी, इसलिए लोकसभा सांसद मल्लिककार्जुन खड़गे और प्रदेश कांग्रेस प्रमुख जी परमेश्वर जैसे दलित नेताओं को संभावित विकल्पों के रूप में देखा जा रहा है। पार्टी के गिरते मनोबल को कर्नाटक में जीत से मजबूती मिलेगी जो केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार आने के बाद एक के बाद एक राज्य हारती जा रही है।
कर्नाटक में हार से अगले लोकसभा चुनाव के लिए संभावित भाजपा विरोधी मोर्चे का नेतृत्व करने का उसका दावा कमजोर हो जाएगा। वहीं, अगर राज्य में भाजपा जीतती है तो एक बार फिर इसे मोदी के करिश्मे के रूप में लिया जाएगा तथा भाजपा शासित मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा कार्यकर्ताओं में एक नई ऊर्जा का संचार होगा।