केरल पुलिस को 118ए से मिलती अतिरिक्त शक्तियां, 24 घंटे के भीतर पिनराई सरकार को लगानी पड़ी रोक !

By अनुराग गुप्ता | Nov 24, 2020

केरल की माकपा नीत वाम लोकतांत्रिक मोर्चा सरकार ने देशभर में आलोचना के बाद राज्य पुलिस अधिनियम में विवादित संशोधन पर सोमवार को रोक लगाने का फैसला किया। इस संशोधन से देश में सियासी तूफान मच गया और लोगों ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मीडिया पर हमला बताया। दिल्ली में माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने ऐलान किया था कि पुलिस कानून में संशोधन पर पुनर्विचार किया जाएगा। इसके कुछ देर बाद ही मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कहा कि उनकी सरकार का इरादा अभी इस संशोधित कानून को लागू नहीं करने का है। उन्होंने कहा कि इस संबंध में विधानसभा में विस्तृत विचार-विमर्श होगा और विभिन्न तबकों की राय सुनने के बाद आगे का कदम उठाया जाएगा। इससे पहले कांग्रेस ने इस संशोधन के खिलाफ प्रदर्शन किया था और भाजपा ने इसे कानूनी तौर पर चुनौती देने की धमकी दी थी। 

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बता दें कि राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने रविवार को इस अध्यादेश का मंजूरी दे दी थी लेकिन 24 घंटे के भीतर प्रदेश की पिनराई विजयन सरकार ने राज्य पुलिस अधिनियम में विवादित संशोधन पर रोक लगाने का फैसला किया।

क्या था केरल का विवादित कानून ?

केरल की पिनपाई विजयन सरकार एक अध्यादेश लेकर आई थी। जो केरल पुलिस अधिनियम में धारा-118 ए को जोड़ती थी। इस संशोधन के अनुसार, जो कोई भी सोशल मीडिया के माध्यम से किसी पर धौंस दिखाने, अपमानित करने या बदनाम करने के इरादे से कोई सामग्री डालता है अथवा प्रकाशित/प्रसारित करता है तो उसे पांच साल तक कैद या 10,000 रुपए तक के जुर्माने या फिर दोनों सजा हो सकती है। ऐसे मामले में धारा-118 ए पुलिस को स्वत: संज्ञान लेने की अनुमति प्रदान करता है। साफ शब्दों में कहें तो यदि पुलिस को लगता है कि कोई सामग्री किसी व्यक्ति को बदनाम करने के इरादे से प्रकाशित/प्रसारित की गई है तो इस पर स्वत: संज्ञान लेते हुए उस व्यक्ति को पुलिस गिरफ्तार कर सकती है। 

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अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ नहीं किया गया संशोधन !

समाचार एजेंसी एनएनआई के मुताबिक, मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कहा था कि केरल पुलिस एक्ट में किए गए संशोधन का प्रयोग अभिव्यक्ति की आजादी और मीडिया के खिलाफ नहीं किया जाएगा। हर किसी को संविधान के दायरे में रहकर आलोचना करने का पूरा अधिकार है। उन्होंने आगे कहा था कि मीडिया की स्वतंत्रता को ध्यान में रखते हुए लोगों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गरिमा की रक्षा करना भी सरकार का दायित्व है।

उच्चतम न्यायालय ने धारा-118D को किया था निरस्त

उच्चतम न्यायालय ने साल 2015 में केरल पुलिस एक्ट की धारा-118 डी और आईटी एक्ट की धारा-66ए को यह कहते हुए निरस्त कर दिया था कि यह दोनों धाराएं अभिव्यक्ति की आजादी और भाषण देने की स्वतंत्रता का उल्लंघन करती हैं। उच्चतम न्यायालय ने इस तरह के कानून को जब निरस्त कर दिया था तो फिर ऐसी क्या जरूरत पड़ी कि केरल सरकार को अध्यादेश लाना पड़ा। 

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कोरोना वायरस संक्रमण के काल में केरल की पिनराई विजयन सरकार का कहना है कि सोशल मीडिया में भड़काऊ और आपत्तिजनक सामग्री काफी ज्यादा बढ़ गईं हैं। ऐसे में साइबर अपराध भी इजाफा हुआ है और साइबर अपराध के चलते लोगों की प्राइवेसी पर खतरा बना हुआ है। विजयन सरकार ने कहा कि केरल पुलिस के पास इस तरह से अपराध से निपटने के लिए कोई शक्ति नहीं है। ऐसे में सरकार ने एक अध्यादेश लाने के बारे में विचार किया। फिलहाल, राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान द्वारा मंजूरी मिले जाने के बाद विजयन सरकार ने इस अधिनियम पर रोक लगाने का फैसला किया है। क्योंकि उन्हें विपक्षी दलों से भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है और विशेषज्ञ बताते हैं कि इस अधिनियम का गलत इस्तेमाल भी किया जा सकता है, ऐसे में इस अधिनियम पर रोक लगाना ही उचित है।

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