By अनन्या मिश्रा | Dec 03, 2025
स्वतंत्रता सेनानी खुदीराम बोस का आज ही के दिन यानी की 03 दिसंबर को जन्म हुआ था। 18 साल के युवा क्रांतिकारी खुदीराम बोस ने देश की आजादी के आंदोलन में हंसते-हंसते अपनी जान न्योछावर कर दी थी। खुदीराम भारत के सबसे युवा स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। खुदीराम बोस अपनी साहस और वीरता के लिए जाने जाते थे। देश की आजादी की लड़ाई में शामिल होने के लिए उन्होंने 9वीं कक्षा के बाद पढ़ाई करना छोड़ दिया था। तो आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर खुदीराम बोस के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
पश्चिम बंगाल के मिदनापुर में 03 दिसंबर 1889 को खुदीराम बोस का जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम त्रैलोक्यनाथ बोस था। जब खुदीराम बोस छोटे थे, तो उनके माता-पिता का देहांत हो गया था। खुदीराम का शुरूआती जीवन कठिनाइयों से भरा था। उनका पालन-पोषण खुदीराम की बड़ी बहन ने किया था।
स्कूल के दिनों से ही खुदीराम अंग्रेजों के खिलाफ राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने लगे थे। उनमें देश को आजाद कराने का ऐसा जज्बा था कि खुदीराम ने 9वीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी। वह जुलूसों और जलसे में शामिल होकर अंग्रेजी साम्राज्यवाद के खिलाफ नारे लगाते थे। साल 1905 में बंगाल का विभाजन होने के बाद देश को आजादी दिलाने के लिए खुदीराम बोस स्वदेशी आंदोलन में कूद पड़े।
खुदीराम बोस ने सत्येन बोस के नेतृत्व में अपने क्रांतिकारी जीवन की शुरूआत की। वह रिवॉल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बने और वंदे मातरम् पंफलेट वितरित करने में अहम भूमिका निभाई। वहीं साल 1905 में बंगाल विभाजन के विरोध में हुए आंदोलन में भी खुदीराम ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। साल 1906 में खुदीराम बोस को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन वह अंग्रेजों की कैद से भाग निकले और करीब 2 महीने बाद फिर से गिरफ्तार कर लिए गए। 16 मई 1906 को खुदीराम बोस को रिहाकर दिया गया।
बता दें कि 06 दिसंबर 1907 को खुदीराम ने नारायगढ़ रेलवे स्टेशन पर बंगाल के गवर्नर की विशेष ट्रेन पर हमला किया। लेकिन गवर्नर बच गया। फिर साल 1908 में खुदीराम ने दो अंग्रेज अधिकारियों वाट्सन और पैम्फायल्ट फुलर पर बम से हमला किया। लेकिन वह दोनों भी बच गए। वह मुजफ्फरपुर के सेशन जज पर काफी खफा थे, क्योंकि उस जज ने बंगाल के कई देशभक्तों को कड़ी सजा दी थी।
ऐसे में खुदीराम ने अपने साथी प्रफुल्लचंद चाकी के साथ मिलकर सेशन जज किंग्सफोर्ड से बदला लेने की योजना बनाई। योजना के तहत दोनों मुजफ्फरपुर आए। वहीं 30 अप्रैल 1908 को सेशन जज की गाड़ी पर बम फेंक दिया। लेकिन उस दौरान गाड़ी में जज की जगह दो यूरोपीय महिला थीं। किंग्सफोर्ड के धोखे में दोनों महिलाएं मारी गईं। जिसके बाद अंग्रेज सैनिक उनके पीछे लगे और वैनी रेलवे स्टेशन पर खुदीराम और प्रफुल्लचंद को घेर लिया।
पुलिस से खुद को घिरा देखकर प्रफुल्लचंद ने खुद को गोली मार ली। जबकि पुलिस ने खुदीराम को पकड़ लिया। फिर 11 अगस्त 1908 को खुदीराम बोस को मुजफ्फरपुर जेल में फांसी दी गई। उस समय खुदीराम की उम्र महज 19 साल थी।