By Neeraj Kumar Dubey | Aug 29, 2025
उत्तर कोरिया को दुनिया के सबसे ज्यादा सत्तावादी देशों में गिना जाता है। अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों, आर्थिक संकट और सूचनाओं पर कठोर नियंत्रण के बावजूद किम जोंग उन की सरकार अब देश को एक आधुनिक उपभोक्तावादी छवि देने की कोशिश कर रही है। हाल ही में न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट में उन झलकियों का विवरण है जो विदेशी पर्यटकों और छात्रों ने प्योंगयांग तथा तटीय इलाकों से साझा की हैं।
समाचार-पत्र की रिपोर्ट बताती है कि राजधानी प्योंगयांग में ‘स्टारबक्स रिजर्व’ की हूबहू नकल “मिराई रिजर्व” नाम से कैफ़े चल रहा है, जहाँ महंगी कॉफ़ी कई डॉलर में बिकती है। इसी तरह, शहर का बहुमंज़िला शॉपिंग मॉल “नॉर्थ कोरियन आइकिया” कहलाता है क्योंकि उसकी बनावट और सामान स्वीडिश कंपनी आइकिया से मेल खाते हैं। हालांकि संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंधों के तहत उत्तर कोरिया में विदेशी लक्ज़री ब्रांडों का कारोबार वर्जित है, फिर भी यहाँ पश्चिमी ब्रांडों की नकल या तस्करी से पहुँचा माल दिखाई देता है। यह प्रवृत्ति दर्शाती है कि किम जोंग उन की रणनीति केवल उपभोक्तावाद को बढ़ावा देना नहीं, बल्कि राजधानी के अभिजात वर्ग की पश्चिमी चीज़ों की भूख को भुनाकर राज्य के खजाने में विदेशी मुद्रा खींचना भी है।
हम आपको बता दें कि दूसरा बड़ा प्रयोग तटीय क्षेत्र वोनसान काल्मा रिसॉर्ट में किया गया है, जिसे “नॉर्थ कोरिया का वाइकिकी” कहा जा रहा है। यहाँ विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए आधुनिक होटल, वॉटर स्लाइड और विदेशी बीयर जैसी सुविधाएँ मुहैया कराई गई हैं। रूस से पहुँचे पर्यटक इसे चमचमाता और आकर्षक बताते हैं। हम आपको बता दें कि पर्यटन उद्योग पर संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंध नहीं है, इसलिए उत्तर कोरिया इसे विदेशी मुद्रा अर्जित करने का एक प्रमुख साधन मानता है। परंतु इसके साथ जोखिम भी जुड़ा है– जैसे-जैसे विदेशी पर्यटक देश में आते हैं, बाहरी सूचनाएँ और विचार भी भीतर पहुँच सकते हैं। इससे किम की सत्तावादी पकड़ ढीली पड़ने का खतरा है।
देखा जाये तो यहाँ सबसे बड़ा विरोधाभास यह है कि जहाँ प्योंगयांग में डिजिटल पेमेंट, नकली ब्रांड और भव्य मॉल मौजूद हैं, वहीं देश के आम नागरिकों की औसत सालाना आय महज़ 1,000 डॉलर के आसपास है। अधिकांश जनता इन सुख-सुविधाओं से कोसों दूर है। इससे स्पष्ट है कि किम की ‘आधुनिक उपभोक्ता संस्कृति’ वास्तव में एलीट वर्ग और विदेशी पर्यटकों के लिए सजाया गया मुखौटा है, न कि व्यापक समाज के लिए वास्तविक विकास है।
बहरहाल, देखा जाये तो उत्तर कोरिया की यह रणनीति दो स्तरों पर काम करती दिख रही है। पहली- अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों को दरकिनार कर विदेशी मुद्रा जुटाना और दूसरी- देश की वैश्विक छवि को आधुनिक और पर्यटक-मित्र बताना। लेकिन यह “नकली आधुनिकता” कितनी टिकाऊ होगी, यह एक बड़ा प्रश्न है। पश्चिम की नकल और दिखावटी समृद्धि से भले ही तात्कालिक लाभ मिल सकता है, परंतु यदि सूचना का प्रवाह और बाहरी संस्कृति का असर बढ़ता है तो वही किम शासन के लिए दीर्घकालीन चुनौती भी साबित हो सकता है।
-नीरज कुमार दुबे