आइए बयान देते हैं (व्यंग्य)

By संतोष उत्सुक | Jun 04, 2025

बयान देने और दिलवाने का ज़माना है। कोई ध्यान दे न दे, कोई पढ़े न पढ़े, इतिहास के किसी पन्ने पर तो अंकित हो ही जाता है। फिर कभी ज़रूरत हो तो कह सकते हैं, हमने तो पहले ही कहा था। एक दूसरे से प्रेरित होकर बयान देने वाले, बयान दागने वाले, बयान की निंदा करने वालों की जमात बढ़ती जा रही है। किसी और के बयान की ज़ोरदार निंदा करते हुए उन्होंने बयान दिया, उनका रवैया बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। अफ़सोस भी व्यक्त करते हुए कहा, उनका रवैया दोहरा है, हमें भड़काऊ भाषण से बचकर रहना चाहिए। पहले देख लेना चाहिए कि आप बयान देने के लिए अधिकृत हैं या नहीं। 


हर कुछ बयानवीर एकता, एकजुटता, सामूहिक इच्छाशक्ति, सामूहिक प्रतिक्रिया और निरंतर संवाद की वकालत करते हैं। बयान सिर्फ एक बात ही तो होती है। बयान देने वाले या लेने वाले ने व्यवहारिक रूप से कुछ करना थोड़ा होता है। अपने गिरेबान में नहीं दूसरों के गिरेबान में झांकना ही तो होता है। बयान में यह खुली स्वतंत्रता होती है कि स्वर्ग या नरक, पता नहीं कहां गए या जीवित व्यक्ति, शासक, राजा पर टिप्पणी करते हुए ईंट, पत्त्थर, रोड़ों को भी नहीं बख्शना ।

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बयान देने के फायदे बहुत हैं और अगर बयान की वीडियो भी जारी कर वायरल करवा दी गई है तो वारे न्यारे हैं। बयान, असामाजिक, अधार्मिक, अजिम्मेदाराना और अनैतिक है तो महावारेन्यारे हो सकते हैं। राजनीति में हैं तो नायक बन सकते हैं। राजनीति में नहीं हैं तो व्यावसायिक राजनीतिक पार्टियां, चाय पर नहीं सीधे खाने और खिलाने पर बुला सकती हैं। फिर बयान के वस्त्र और जूते बदलवाकर, बाल कटवाकर पुन जारी करती हैं।  


कितनी बार ऐसा होता है कि बयान इतनी ऊंचे या गहरे स्रोत से आता है कि उसके कितने ही अर्थ और अनर्थ निकाले जाते हैं। उसका असली अर्थ किसी को समझ नहीं आता। फिर कहा जाता है कि बयान को तोड़ मोड़कर पेश किया गया। शब्दों का वो अर्थ नहीं लिया गया जो लिया जाना चाहिए था।


बयान देने वालों को यह सुविधा रहती है कि कुछ दिन तक हलचल कर, शोरशराबा मचाकर बयान वापिस भी ले लो। बयान तो वही बढ़िया माना जाता है जिसे उचित समय पर वापिस लिया जा सके। कई बार ऐसा होता है कि उच्चकोटि का आदमी बयान वापिस लेने के लिए कहता है और बयान लेने वाला उसके कहने से मान जाता है। बयान वापिस लेते हुए, कहने वाले का सन्दर्भ भी सार्वजनिक कर देता है। इससे बयान की थोड़ी बहुत प्रसिद्धि और बढ़ जाती है। उस बयान को, ज़्यादा जोर और शोर से पढ़ा, सुना और वायरल किया जाता है जिसे वापिस लेने के लिए शक्तिवान व्यक्ति को भी बयान देना पड़ा। बयान देना पुराने ज़माने जैसी परम्परा, ज़बान देने जैसा तो होता नहीं कि मुकर जाओ तो फज़ीहत हो जाएगी। अब तो ऊपर से नीचे तक सब बेशर्म ज़बान वाले हैं इसलिए बयान देने से क्या डरना और क्या मुकरना। इसलिए जब चाहो फिसलती ज़बान से कह दिया जाता है, आइए बयान देते हैं।  


- संतोष उत्सुक

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