आविष्कारों की गिरफ्त्त में ज़िंदगी (व्यंग्य)

By संतोष उत्सुक | Feb 17, 2021

हमारे यहां सेहत के लिए संजीवनी बनकर आई वैक्सीन लगवाने के लिए, मानवीय हिचकिचाहट अभी पूरी तरह खत्म होनी बाकी है और उनके यहां इंसानी ज़िंदगी पर तकनीक का कब्ज़ा बढाने की तैयारी की जा रही है। इलेक्ट्रोनिक्स के अस्तबल में तैयार किए जा रहे नए घोड़े पुराने रास्तों से ज़िंदगी में प्रवेश पाने के लिए तैयार किए जा रहे हैं। आंतरिक मानवीय परीक्षण में निरंतर फेल होने के बावजूद इंसान सफल होने की घोषणा करता आया है। उसने व्यवहार में पारदर्शी होना कब का छोड़ दिया लेकिन उसके जीवन को और जागरूक बनाने के लिए इन्स्टाव्यू रेफ्रिजरेटर आ रहा है। दो बार दस्तक देने पर इसका दरवाज़ा पारदर्शी हो जाएगा और खाने पीने क्या क्या सामान खत्म हो चुका या होने वाला है दिख जाएगा। यह अलग बात है कि इंसानियत का शरीर कई तरह से खाली हुआ जा रहा है लेकिन इसकी भरपाई के लिए आदमीयत कम पड़ रही है। प्रयास करने से डरने वालों की तादाद बढ़ती जा रही है।

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क्या कहीं किसी अनजान जगह पर छिपकर कोई आविष्कारक नई इंसानियत के जीन खोज कर रहा है। बताते हैं अब एक से ज्यादा चश्मे नहीं रखने पड़ेंगे। कुछ हज़ार रूपए में ऐसा चश्मा मिल जाएगा जो दूरियों और नजदीकियों पर एक साथ फोकस कर सकेगा लेकिन ठीक से देखने वाली स्वस्थ आंखों वाले अंधे बढ़ते जा रहे हों तो यह आविष्कार क्या कर सकता है। उनकी समझदार पैनी नज़रें इतने साम, दाम, दंड और भेद के बावजूद, सबको एक नज़र से देखना इतने दशकों में विकसित नहीं कर सकी। बराबरी का दर्जा देना तो आंखों से बहुत दूर की बात लगती है। इंसान के ईजाद किए विज्ञान ने इतना कुछ कर दिया लेकिन इंसान को इंसान समझने का आविष्कार करने के लिए अभी भी नए वैज्ञानिकों की ज़रूरत है जो वकीलों का आविष्कार भी करें जो आदमी से आदमी को न्याय दिलवाएं। अपनी परम्पराओं को अभी तक संजो कर रखने वाले जापानी ऐसी टॉयलेट सीट लेकर आ रहे हैं जो प्रयोग करने वाले की सेहत भी जांच लेगी। उसमें लगा सेंसर मानवीय शरीर व अवशिष्ट को स्कैन कर पाई गई कमियों के हिसाब से जीवन शैली बदलने की सलाह देगा। लगता है इंसान का सामान्य बुद्धि पर और बुद्धि का इंसान पर से भरोसा उठ चला है। यहां तो बुद्धिमत्ता इसलिए मरीज़ के टेस्ट पर टेस्ट करवाती है ताकि कई प्रयोगशालाओं का धंधा चलता रहे और अपनी कमीशन का आविष्कार निरंतर होता रहे।

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अनेक आविष्कार ज़िंदगी को कुदरत से और दूर करने के लिए जी तोड़ कोशिश करते हैं हालांकि पूरी दुनिया प्रकृति के करीब रहने की वकालत करने पर करोड़ों खर्चती है। डरता हूं कहीं उनके आविष्कारों के परिणाम हमारे बाज़ार का हिस्सा न बनें अगर ऐसा हुआ तो इंसानों और इंसानों के बीच की रुस्वाई और हैवान हो जाएगी। 


- संतोष उत्सुक

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