थोडा इधर उधर हो गया तो क्या (व्यंग्य)

neta
संतोष उत्सुक । Feb 10 2021 4:34PM

उन्होंने इस बार पहली बार मानवता की परेशानी के एवज में, उचित दूरी की तरह उचित मुआवजा देने का इकरार किया। सबसे प्रशंसनीय उपलब्धि यह रही कि विकासजी बहुत प्रसन्न रहे, बेशक कुछ लोगों को खाना ठीक से नहीं मिला, कुछ किलोमीटर पैदल चलना पड़ गया।

क्या हो गया यदि थोडा इधर उधर हो गया। शुभ कामनाएं तो दी थी और काम हो जाने के बाद फेसबुक और व्ह्त्सेप पर बधाई भी पेस्ट की थी। उन्होंने फरमाया कि अब किसी अभियान को युद्ध न कहा जाए।  बात तो ठीक है आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता के समकक्ष युद्ध जैसा शब्द अच्छा नहीं लगता। कोशिश तो पूरी हो रही है कि चुने जाने की तरह सब कुछ हो, क्या हो गया यदि तीन चार बार पूर्वाभ्यास करने के बावजूद आई दिक्कतों के कारण थोड़ा इधर उधर हो गया। चुनाव भी तो कितनी बार होते हैं फिर भी अनेक बार थोड़ा तो क्या, ज्यादा इधर उधर हो जाया करता है। अभ्यास तो अभ्यास ही होता है वह चाहे पूर्वोत्तर हो या उतरोत्तर। असली पता तो तब चलता है जब व्यवहारिक स्तर पर कुछ करना पड़ता है। इंटरनेट की वजह से भी दिक्कत आती है। अब सब कुछ डिजिटल कर दोगे तो हाड मांस के इंसानों से थोडा बहुत इधर से उधर हो ही जाएगा न। असली बात है यह मानते रहना है कि दुनिया में सबसे पहले, सब कुछ हमने ही किया। इस बात के लिए हम सब बधाई के पात्र हैं। जिनके नाम नहीं लिए गए उन्हें भी बधाई मिल जाए यह सबसे बढ़िया बात है। 

इसे भी पढ़ें: आसमान के तारे और बजट के आँकड़े (व्यंग्य)

अवसर का लाभ उठाना बहुत ज़रूरी होता है। अब लाभ या नुक्सान उठाते वक़्त थोडा बहुत इधर उधर या ऊपर नीचे हो ही जाता है। जो मारा मारी में अवसर ढूंढ लेते हैं वे सज्जन जमकर लाभ उठा लेते हैं। इससे एक सीख मिलती है कि डाटा बनाना, पकाना, खाना व बांटना भी काफी ज़रूरी काम हो गया है। अब तो इंटरनेट की कम गति, तेज़ रफ़्तार से काम करने वालों को पसंद नहीं आती। कभी कभार काम, थोडा धीरे धीरे हो पाया या ज्यादा करना पडा तो क्या हो गया। भजन व पूजा अर्चना के सहयोग से भी बीमारी दूर ही रहती है, अब इतने बड़े ताम झाम में.... खैर। बुरे वक़्त में संघर्ष, मेहनत व परम्पराएं परेशान हो जाती हैं, उनका स्वागत गाकर कर लो तो काफी सहज लगने लगता है। कई बार ऐसा भी होता है कि किसी कपड़े पर कोई रंग फीका पड़ जाता है। अच्छी बात यह मानी जाती है कि मानवता ज्यादा परेशान न हो।

इसे भी पढ़ें: आयो बजट महाराज (व्यंग्य)

उन्होंने इस बार पहली बार मानवता की परेशानी के एवज में, उचित दूरी की तरह उचित मुआवजा देने का इकरार किया। सबसे प्रशंसनीय उपलब्धि यह रही कि विकासजी बहुत प्रसन्न रहे, बेशक कुछ लोगों को खाना ठीक से नहीं मिला, कुछ किलोमीटर पैदल चलना पड़ गया। अब यात्रा बड़ी, लम्बी, चौड़ी और मोटी या ऐतिहासिक हो जाने वाली हो तो रास्ता थोड़ा इधर उधर हो लेता है। जैसे आशंका, ज्यादा नुक्सान की हो और नुक्सान कम हो जाए तो जो नुक्सान नहीं हुआ उसे तो फायदा ही मानना पडेगा न। असली सचाई यह है कि काफी लोगों का मनोबल टूटा नहीं, अब अफवाहों का क्या है उनका कर्तव्य तो फैलना होता है और अफवाहों से उचित दूरी बनाए रखना उनका। थोड़ा बहुत दाएं बाएं हो ही गया, तो कुछ नहीं हुआ, समझे।

- संतोष उत्सुक

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़