Gyan Ganga: क्यों स्वजनों को मार कर राज्य भोगने की इच्छा नहीं रखते थे अर्जुन ?

By आरएन तिवारी | Dec 11, 2020

पिछले अंक में हमने पढ़ा कि दोनों सेनाओं की तरफ से शंख ध्वनि होती है। अर्जुन भगवान से दोनों सेनाओं के बीच रथ ले चलने के लिए प्रार्थना करता है। 


अर्जुन संयमी और सात्विक स्वभाव का था, साथ ही वह श्री कृष्ण का सखा भी था। अपने बंधु-बांधवों से युद्ध करने की उसकी तनिक भी इच्छा नहीं थी। किन्तु दुर्बुद्धि दुर्योधन के हठ के कारण उसे युद्धभूमि में उतरना पड़ा था।

इसे भी पढ़ें: गीता-तत्व को समझ कर उसे अपने जीवन में उतारने का प्रयत्न करें

तत्रापश्यत्स्थितान्‌ पार्थः पितृनथ पितामहान्‌।

आचार्यान्मातुलान्भ्रातृन्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा॥

श्वशुरान्‌ सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि।


युद्ध भूमि में अपने सगे-सम्बन्धियों चाचा, ताऊ, पितामह, गुरु, मामा, भाई, पुत्र-पौत्र ससुर और शुभचितकों को देखकर काँप गया उसके हृदय में कौटुंबिक स्नेह उमड़ पड़ा। वह स्वयं को संभालते हुए भगवान से कहने लगा- 

  

अर्जुन उवाच

दृष्टेवमं स्व जनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम्‌ ॥

सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति ।


अर्जुन को कृष्ण नाम बहुत प्रिय था। अर्जुन ने सम्पूर्ण गीता में भगवान को नौ बार कृष्ण कहकर संबोधित किया है।


हे कृष्ण! युद्ध क्षेत्र में डटे हुए युद्ध के अभिलाषी इस स्वजन समुदाय को देखकर मेरे अंग शिथिल हुए जा रहे हैं और मुख सूखा जा रहा है तथा मेरे शरीर में कम्पन एवं रोमांच हो रहा है।


वेपथुश्च शरीरे में रोमहर्षश्च जायते।

गाण्डीवं स्रंसते हस्तात्वक्चैव परिदह्यते।

न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मनः॥


हाथ से गांडीव धनुष गिर रहा है और त्वचा भी बहुत जल रही है तथा मेरा मन भ्रमित-सा हो रहा है, इसलिए मैं खड़ा रहने में भी समर्थ नहीं हूँ। मेरा सिर चकरा रहा है। हे कृष्ण ! मुझे तो अमंगल और अशुभ ही दिख रहा है।

इसे भी पढ़ें: अमृतपान समान है गीता का पाठ, मिलेंगे जीवन के सूत्रवाक्य

देखिए! अपने स्वजनों को मार कर पृथ्वी का राज्य भोगने का स्वार्थ अर्जुन में नहीं है। उसका वास्तविक स्वार्थ संसार के भोग में नहीं बल्कि भगवान कृष्ण के योग में है। अर्जुन जानता है कि मनुष्य जीवन ईश्वरीय उपहार है।


Human life is a godly gift इस उपहार का दुरुपयोग नहीं बल्कि सदुपयोग करना चाहिए। आज के समाज में क्या हो रहा है? अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए एक भाई, अपने ही भाई की हत्या करने में संकोच नहीं करता। आज समाज में दुर्बुद्धि दुर्योधन की अधिकता और सद्बुद्धि अर्जुन की न्यूनता दिखाई देती है। इसीलिए तो गीता का ज्ञान आज भी प्रासंगिक है। 


अर्जुन ने युद्ध करने से मना करते हुए कहा—


न काङ्‍क्षे विजयं कृष्ण न च राज्यं सुखानि च ।

किं नो राज्येन गोविंद किं भोगैर्जीवितेन वा ॥


हे कृष्ण ! इस युद्ध में अपने ही बंधु बांधवों की हत्या करके मैं राज्य का भोग करना नहीं चाहता। 


अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम्‌।

यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यताः॥


हे केशव ! हम लोग बुद्धिमान होकर भी महान पाप करने को तैयार हो गए हैं। राज्य और सुख के लोभ में आकर अपने ही परिवार के भाई-बंधुओं को मारने के लिए इस रण भूमि में खड़े हो गए हैं, नहीं, नहीं मैं यह पाप कर्म कदापि नहीं कर सकता।


देखिए! स्वार्थ और लालच में आकर इंसान अपने ही सगे भाई और माँदृबाप को निर्दयता पूर्वक मार देता है। दुनिया के इतिहास में आपको ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं।


दुर्योधन, दु:शासन आदि भाइयों ने पांडवों पर कितना अत्याचार किया था, यह सर्वविदित है फिर भी अर्जुन अपने अत्याचारी बंधु-बांधवों से प्रतिशोध नहीं लेना चाहता था। भगवत प्रेमी इस झंझट में नहीं पड़ते। यह तो कृष्ण की इच्छा थी कि इन आतताइयों का वध हो। यदि कोई भगवान के भक्तों को पीड़ा पहुंचाता है, तो भगवान उसको कभी माफ नहीं करते। अर्जुन के इस दर्शन को हमें समझना चाहिए। 


अकेले हम बूंद हैं मिल जाएँ तो सागर हैं। 

अकेले हम धागा हैं मिल जाएँ तो चादर हैं। 

अकेले हम और तुम हैं मिल जाएँ तो परिवार हैं। 

अकेले हम कागज हैं मिल जाएँ तो किताब हैं। 

अकेले हम ईंट पत्थर हैं मिल जाएँ तो इमारत हैं। 

जीवन का आनंद मिलजुलकर रहने में है लड़ने झगड़ने में नहीं। 


अस्तु --------


जय श्रीकृष्ण ----------


-आरएन तिवारी

प्रमुख खबरें

Loksabha Election 2024| तीसरे चरण के लिए मतदान जारी, 12 राज्यों की इन सीटों पर उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला करेगी जनता

MI vs SRH IPL 2024: सूर्या की आक्रामक शतकीय पारी से मुंबई ने सनराइजर्स को सात विकेट से हराया

Maharashtra : Thane में रिश्ते की बहन और उसके पति की हत्या के दोषी को आजीवन कारावास

Vadattiwar की शहीद हेमंत करकरे पर टिप्पणी से बिल्कुल सहमत नहीं हूं : Raut