बहुत विशाल है भगवान शिव शंकर का परिवार

By शुभा दुबे | Dec 23, 2015

बाण, रावण, चण्डी, भृंगी आदि शिव कके मुख्य पार्षद हैं। इनके द्वार रक्षक के रूप में कीर्तिमुख प्रसिद्ध हैं, इनकी पूजा के बाद ही शिव मंदिर में प्रवेश करके शिव पूजा का विधान है। इससे भगवान शंकर परम प्रसन्न होते हैं। यद्यपि भगवान शंकर सर्वत्र व्याप्त हैं तथापि काशी और कैलास इनके मुख्य स्थान हैं। भक्तों के हृदय में तो ये सर्वदा निवास करते हैं। इनके मुख्य आयुध त्रिशूल, टंक, कृपाण, वज्र, अग्नियुक्त कपाल, सर्प, घंटा, अंकुश, पाश तथा पिनाक धनुष हैं।##p##भगवान शंकर के चरित्र बड़े ही उदात्त एवं अनुकम्पापूर्ण हैं। वे ज्ञान, वैराग्य तथा साधुता के परम आदर्श हैं। आप रुद्ररूप हैं तो भोलानाथ भी हैं। दुष्ट दैत्यों के संहार में काल रूप हैं तो दीन दुखियों की सहायता करने में दयालुता के समुद्र हैं। जिसने आपको प्रसन्न कर लिया उसको मनमाना वरदान मिला। रावण को अटूट बल बल दिया। भस्मासुर को सबको भस्म करने की शक्ति दी। यदि भगवान विष्णु मोहिनी रूप धारण करके सामने न आते तो स्वयं भोलानाथ ही संकटग्रस्त हो जाते। आपकी दया का कोई पार नहीं है। मार्क.डेय जी को अपनाकर यमदूतों को भगा दिया। आपका त्याग अनुपम है। अन्य सभी देवता समुद्र मंथन से निकले हुए लक्ष्मी, कामधेनु, कल्पवृक्ष और अमृत ले गये, आप अपने भाग का हलाहल पान करके संसार की रक्षा के लिए नीलक.ठ बन गये। भगवान शंकर एक पत्नी व्रत के अनुपम आदर्श हैं। माता सती ही पार्वती रूप में आपकी अनन्य पत्नी हैं। इस पद को प्राप्त करने के लिए इस देवी ने जन्म जन्मांतर तक घोर तप किया। भूम.डल के किसी साहित्य में पति पत्नी के संबंध का ऐसा ज्वलंत उदाहरण नहीं है।##p##ऐतिहासिक दृष्टि से सबसे पहले शिव मंदिरों का ही उल्लेख है। जब भगवान श्रीरामचन्द्र ने लंका पर चढ़ाई की तब सबसे पहले रामेश्वरम के नाम से भगवान शिव की स्थापना और पूजा की थी। काशी में विश्वनाथ की पूजा अत्यन्त प्राचीन है। इस प्रकार भगवान शंकर आर्यजाति की सभ्यता और संस्कृति के पूरे उदाहरण हैं। हिमालय पर्वत पर निवास भौगोलिक संकेत है। तप, योग करना आर्य संस्कृति का प्रधान सिद्धांत है और आध्यात्मिक ज्ञान उपदेश आर्य संस्कृति का प्रधान तत्व है।

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