By शुभा दुबे | Sep 05, 2025
शास्त्रों के अनुसार, इस दिन अनन्त भगवान की पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि और वैभव की प्राप्ति होती है। यह पर्व अनन्त सूत्र (लाल और पीले धागे) को हाथ पर बांधकर भगवान विष्णु से आशीर्वाद लेने का विशेष अवसर है। जो भक्त इस दिन व्रत और पूजा करते हैं, उन्हें दीर्घायु, पापों से मुक्ति और इच्छित फलों की प्राप्ति होती है।
प्रातः स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें।
पूजा स्थान पर भगवान विष्णु के अनन्त स्वरूप की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
पंचामृत, पुष्प, तुलसीदल, धूप, दीप और नैवेद्य से पूजा करें।
अनन्त सूत्र को चौदह गांठ लगाकर हाथ में धारण करें। यह सूत्र अनन्त भगवान की कृपा का प्रतीक है।
व्रतधारी दिनभर उपवास रखते हैं और संध्या के समय प्रसाद ग्रहण करते हैं।
पूजा के दौरान "ॐ अनन्ताय नमः" मंत्र का जप करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
सतयुग में सुमन्तुनाम के एक मुनि थे। उनकी पुत्री शीला अपने नाम के अनुरूप अत्यंत सुशील थी। सुमन्तु मुनि ने उस कन्या का विवाह कौण्डिन्य मुनि से किया। कौण्डिन्य मुनि अपनी पत्नी शीला को लेकर जब ससुराल से घर वापस लौट रहे थे, तब रास्ते में नदी के किनारे कुछ स्त्रियां अनंत भगवान की पूजा करते दिखाई पड़ीं। शीला ने अनंत−व्रत का माहात्म्य जानकर उन स्त्रियों के साथ अनंत भगवान का पूजन करके अनंत सूत्र बांध लिया। इसके फलस्वरूप थोड़े ही दिनों में उसका घर धन−धान्य से पूर्ण हो गया।
एक दिन कौण्डिन्य मुनि की दृष्टि अपनी पत्नी के बाएं हाथ में बंधे अनंत सूत्र पर पड़ी, जिसे देखकर वह भ्रमित हो गए और उन्होंने पूछा− क्या तुमने मुझे वश में करने के लिए यह सूत्र बांधा है? शीला ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया− जी नहीं, यह अनंत भगवान का पवित्र सूत्र है। परंतु ऐश्वर्य के मद में अंधे हो चुके कौण्डिन्य ने अपनी पत्नी की सही बात को भी गलत समझा और अनंत सूत्र को जादू−मंतर वाला वशीकरण करने का डोरा समझकर तोड़ दिया तथा उसे आग में डालकर जला दिया। इस जघन्य कर्म का परिणाम भी शीघ्र ही सामने आ गया। उनकी सारी संपत्ति नष्ट हो गई। दीन−हीन स्थिति में जीवन−यापन करने में विवश हो जाने पर कौण्डिन्य ऋषि ने अपने अपराध का प्रायश्चित करने का निर्णय लिया। वे अनंत भगवान से क्षमा मांगने के लिए वन में चले गए। उन्हें रास्ते में जो मिलता वे उससे अनंत देव का पता पूछते जाते थे। बहुत खोजने पर भी कौण्डिन्य मुनि को जब अनंत भगवान का साक्षात्कार नहीं हुआ, तब वे निराश होकर प्राण त्यागने को हुए। तभी एक वृद्ध ब्राह्मण ने आकर उन्हें आत्महत्या करने से रोक दिया और एक गुफा में ले जाकर चतुर्भुज अनंत देव का दर्शन कराया।
भगवान ने मुनि से कहा− तुमने जो अनंत सूत्र का तिरस्कार किया है, यह सब उसी का फल है। इसके प्रायश्चित के लिए तुम चौदह वर्ष तक निरंतर अनंत−व्रत का पालन करो। इस व्रत का अनुष्ठान पूरा हो जाने पर तुम्हारी नष्ट हुई सम्पत्ति तुम्हें पुनः प्राप्त हो जाएगी और तुम पूर्ववत् सुखी−समृद्ध हो जाओगे। कौण्डिन्य मुनि ने इस आज्ञा को सहर्ष स्वीकार कर लिया। कौण्डिन्य मुनि ने चौदह वर्ष तक अनंत व्रत का नियमपूर्वक पालन करके खोई हुई समृद्धि को पुनः प्राप्त कर लिया।
महाराष्ट्र, गोवा और कर्नाटक सहित पूरे देश में गणेशोत्सव का समापन अनन्त चतुर्दशी को ही होता है। इस दिन बड़े-बड़े शोभायात्राओं और भक्ति गीतों के साथ गणपति बप्पा का विसर्जन किया जाता है। यह अवसर समाज में एकता, उत्साह और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक है।
अनन्त चतुर्दशी केवल भगवान विष्णु के अनन्त स्वरूप की आराधना का पर्व ही नहीं, बल्कि यह गणेशोत्सव की भव्य समाप्ति का भी दिन है। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि अनन्त भगवान की कृपा से जीवन के दुख दूर होकर सुख, समृद्धि और शांति प्राप्त होती है।
- शुभा दुबे