निर्माण एवं सृजन के देवता हैं भगवान विश्वकर्मा

By मृत्युंजय दीक्षित | Sep 16, 2016

श्रम से अर्थोत्पादन होता है और अर्थ ही इच्छापूर्ति का साधन है। श्रम ही यज्ञ है, साधन और अनुसंधान उसके उपचार हैं। कुशलता इस साधन की उपलब्धि है। भगवान विश्वकर्मा जी ने अपने श्रेष्ठ कार्यों के द्वारा श्रम को सार्थक बनाया है।

अपने अनेकानेक महापुरूषों, ऋषियों, मुनियों ने अपने मौलिक चिंतन द्वारा अपनी तपस्या, साधना एवं अविराम अनुसंधान कार्यक्षमता द्वारा शास्त्र शस्त्र, ज्ञान−विज्ञान, कला, साहित्य और महानतम विद्याओं के आविष्कार से इस भारत भूमि को सम्पन्न बनाया तथा भारत को विकास के शिखर पर पहुंचाया। जिन महापुरूषों को इन जीवन मूल्यों की प्रतिष्ठापना का श्रेय है उनमें अग्रणी हैं भगवान विश्वकर्मा। विश्वकर्मा सृजन के आदिदेव माने जाते हैं। भगवान विश्वकर्मा ने अपने महानतम कर्म से स्वर्णिम इतिहास की रचना की। प्राचीन ग्रंथों में विश्वकर्मा को प्रजापति, आदित्वदेव, शिल्पी, त्रिदशचार्य आदि नामों से पुकारा गया है। विश्वकर्मा के अवतार विभिन्न युगों एवं मनवन्तरों में हुए हैं। देव, मनुष्य, राक्षस, गंधर्व आदि योनियों में इनके अवतारों का वर्णन मिलता है।

 

इन्हीं अवतारों में से एक हैं "भौमेन अवतार"। ब्रह्माजी के मानस पुत्र ऋषिधर्म देव की आठ संतानें हुईं। जिन्हें अष्टवासु कहा गया है। इन्हीं अष्टवासु की आठवीं संतान के पुत्र हैं श्रीभौमेन विश्वकर्मा। उनकी मां का नाम वस्त्री या जिन्हें अंगिरा एवं भुवना के नाम से भी जाना जाता है। विश्वकर्मा की मां देवगुरु बृहस्पति की बहन एवं अंगिरा ऋषि की पुत्री थीं। विश्वकर्मा शिल्पशास्त्र के आचार्य और आविष्कारक माने जाते हैं। धनकुबेर व श्रीलंका नरेश की राजधानी का निर्माण विश्वकर्मा ने ही किया था। भगवान इंद्र की भव्य इंद्र नगरी जो सुमेरू पर्वत पर बसी थी विश्वकर्मा के द्वारा ही बनायी गयी थी। विश्कर्मा ने ही नंदनवन, त्रेतायुग में सेतुबंध और रामेश्वरम का निर्माण भी विश्वकर्मा के पुत्रों नल और नील के द्वारा ही हुआ था जिसकी प्रशंसा प्रभु श्रीराम ने भी की है।

 

इससे यह सुस्पष्ट होता है कि विश्वकर्मा शिल्प एवं वास्तु विद्या के अधिष्ठाता तथा निर्माण एवं सृजन के देवता हैं। विश्वकर्मा वैदिक देवताओं में से एक हैं। उन्हें पृथ्वी, जल, प्राणी आदि का निर्माता कहा जाता है। अथर्ववेद में वाजसतेज ब्राह्मणों एवं पुराणों में इनका गौरवपूर्ण वर्णन मिलता है। संहिता में उन्हें सर्वदृष्टा प्रजापति कहा गया है। शतपथ ब्राह्मण में वे विधाता प्रजापति हैं। महाभारत में विश्वकर्मा को देवताओं का महान शिल्पशास्त्री तथा स्वायंभुव मन्वन्तर के शिल्प प्रजापति कहकर गौरवान्वित किया गया है।

 

विश्वकर्मा शब्द बड़े ही व्यापक अर्थों में है। यजुर्वेद के अनुसार विश्वकर्मा अर्थत सभी कर्म क्रिया कलाप जिन के द्वारा हुए इस अर्थ में श्रृमंग के रचयिता परमेश्वर के रूप में विश्वकर्मा का बोध होता है। उन्होंने ब्रह्माजी की इच्छा के अनुसार नवीन अनुसंधानों, उपकरणों और सौर ऊर्जा की उपयोगिता का ज्ञान समय आने पर शक्ति का उपयोग कर विष्णु भगवान के लिए सुदर्शन चक्र, शिवजी के लिए त्रिशूल, इंद्र के लिए विजय नामक रथ एवं पुष्पक विमानों का निर्माण किया। जिसे आधुनिक भाषा में प्रक्षेपास्त्र या आकाशयान कहते हैं।

 

विश्वकर्मा एक आदर्श एवं उच्चकोटि के शिल्पी ही नहीं वरन विश्व के प्रथम इंजीनियर शिल्पशास्त्र के ज्ञाता थे। वास्तु स्थापत्य शास्त्र के ज्ञान से गुणीत तथा "विश्वकर्मा वास्तुशास्त्रे" इस ग्रंथ के वे कर्ता  माने जाते हैं। वास्तुकला को एक शास्त्र के रूप में प्रस्तुत करने वाला यह विश्व का पहला ग्रंथ है। उनका नवनिर्माण कार्य एवं संशोधन केवल वास्तुकला या शिल्पशास्त्र तक ही सीमित नहीं था।

 

शस्त्रशास्त्र, आभूषण विमान के भी जनक थे। प्रसिद्ध पुष्पक विमान जिसकी विशेषता थी कि वह भूतल पर जल में और आकाशमार्ग से भ्रमण कर सकता था। विश्व इतिहास में भगवान विश्वकर्मा ही एकमात्र ऐसे महापुरूष हैं जिन्होंने राष्ट्रजीवन से जुड़े प्रतिभा से अनेक उपयुक्त साधनों का विकास किया। ललित एवं सांस्कृतिक कलाओं के ज्ञाता विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के सृजनकर्ता भगवान विश्वकर्मा ही थे। कहा गया है कि भगवान विश्वकर्मा ने ही लक्ष्मी जी को अलंकारों से विभूषित किया।

 

त्रेतायुग से महाभारत काल तक जितने भी नवनिर्माण हुए सभी के सभी भगवान विश्वकर्मा के द्वारा ही सम्पन्न कराये गये। स्वनाम धन्य सम्पूर्ण विश्व के जड़ चेतन यानी सम्पूर्ण जगत के सृजनकर्ता एवं अपने परमलक्ष्य के प्रति समर्पित सम्पूर्ण समाज के हित में जिनका महान कार्य हो, जिनकी कथनी व करनी में अंतर न हो, जिनमें सर्वकालिक दिशादर्शन की क्षमता हो तथा सम्पूर्ण जड़चेतन संयुक्त ब्रह्माण्ड की रचनाकार अखण्ड प्रेरणा के स्रोत बन सके ऐसे भगवान विश्वकर्मा अपनी सृजनशक्ति से सर्वथा पूजनीय एवं हमारे लिए आदर्श के पात्र हैं। आज भी सम्पूर्ण सृजन का सूत्रपात हो रहा है।

 

देश के विकास की प्रक्रिया में विश्वकर्मा का अद्वितीय योगदान आज समाज के सभी घटकों में दिखाई देता है, जो श्रम और साधना का पर्याय बन चुका है साथ ही एक आधार स्तम्भ भी है और प्रेरणा का स्रोत भी। मनुष्य अपने कर्मों से महान बनता है। भगवान विश्वकर्मा के जीवन आदर्शों से भावी पीढ़ी को ही सीख मिलती है। सतत् अभ्यास और लगन व्यक्ति को लक्ष्य की ओर पहुँचाती है इसमें संदेह नहीं।

 

- मृत्युंजय दीक्षित

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