Madhav Rao Scindia Death Anniversary: देश की राजनीति के अजातशत्रु थे माधव राव सिंधिया, प्लेन क्रैश में हो गई थी मौत

By अनन्या मिश्रा | Sep 30, 2023

आज के दिन यानी की 30 सितंबर को माधव राव सिंधिया का निधन हो गया था। बता दें कि आज भी ग्वालियर को माधव राव सिंधिया की कमी महसूस होती है। हर पीढ़ी के मन में उनकी यादें बसी हुईं हैं। उन्होंने सेवा और विकास के जरिए यह लोकप्रियता हासिल की थी। जिसे आजतक कोई भी नहीं तोड़ पाया है। माधव राव सिंधिया अपने शहर ग्वालियर से बेशुमार प्यार करते थे, वह ग्वालियर के बारे में बुराई सुनना पसंद नहीं करते थे। एक समय पर वह ग्वालियर से लेकर देश की राजनीति तक में अजातशत्रु बने रहे। यही कारण है कि माधव राव सिंधिया एक महाराजा से लोकनायक बनने में कामयाब रहे। आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर माधव राव सिंधिया के जीवन से जुड़े कुछ रोचक किस्सों के बारे में...


जन्म 

ग्वालियर एक शक्तिशाली सिंधिया रियासत की सरपरस्ती में 10 मार्च 1945 को माधव राव सिंधिया का जन्म हुआ। उनके पिता ग्वालियर के महाराजा जीवाजी राव सिंधिया और माता का नाम महारानी विजयाराजे सिंधिया था। ऐसे में माधव राव सिंधिया राजघराने के युवराज थे। बता दें कि सोने की कटोरी में रखी खीर चांदी के चम्मच से खिलाकर माधव राव सिंधिया का अन्नप्रासन किया गया था। भारत में लोकतंत्र के आने से पहले युवराज की पगड़ी बांधने का समारोह भी हुआ था। जब उन्होंने होश संभाला तक देश आजाद हो चुका था।

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इस दौरान तक राजतंत्र की विदाई और लोकतंत्र अपने पैर पसार चुका था। जहां लोकतंत्र आने और राजतंत्र की विदाई में ज्यादातर राजे-राजबाड़े सदमे में जा चुके थे। तो वहीं पर लोकतंत्र का सम्मान करते हुए माधवराव सिंधिया ने सियासत में एक अलग शैली विकसित कर खुद को स्थापित किया। यह उनकी विकास शैली थी, जिसनें उन्हें बाकी नेताओं से अलग बनाया। साथ ही जनता की नजर में उनकी छवि मसीहा की उभरी।


ऐसे चुना सियासी रास्ता

माधव राव सिंधिया की शुरूआती शिक्षा ग्वालियर में उनके परिवार द्वारा संचालित सिंधिया स्कूल पूरी हुई। इसके बाद वह आगे की पढ़ाई के लिए लंदन चले गए। साल 1971 में जब माधवराव सिंधिया पढ़ाई पूरी कर वापस भारत लौटे तो उनकी मां राजमाता विजयाराजे सिंधिया कांग्रेस का साथ छोड़कर जनसंघ में शामिल हो चुकी थीं। इसके बाद उन्होंने अपनी परंपरागत सीट गुना से जनसंघ के टिकट पर लोकसभा का चुनाव रिकॉर्ड मतों से जीता। इस तरह से वह लोकसभा में सबसे कम उम्र व सबसे खूबसूरत सांसद के तौर पर शामिल हुए। हांलाकि माधव राव सिंधिया ने अपनी मां से अलग सियासी रास्त चुना। वह कांग्रेस में शामिल हुए और हमेशा कांग्रेस पार्टी में ही रहे। इस दौरान वह संगठन से लेकर सत्ता तक के अनेक पदों पर अपनी जिम्मेदारियों को संभालते रहे।


जब सिंधिया ने वाजपेयी को दी मात

साल 1948 में माधव राव सिंधिया ने देश की सियासत में धमाकेदार एंट्री की। उस दौरान पहले हिन्दू महासभा फिर जनसंघ के जमाने से ही ग्वालियर बीजेपी का अभेद्य गढ़ माना जाता था। इसी कारण भाजपा ने ग्वालियर जैसी सुरक्षित सीट से अपने शीर्षस्थ नेता अटल विहारी वाजपेयी को लोकसभा चुनाव लड़ाने का फैसला लिया। वाजपेयी जी ने नामांकन भी भर दिया था, वहीं सभी उनकी जीत को लेकर आश्वस्त भी थे, क्योंकि वाजपेयी भी ग्वालियर के सपूत थे। 


लेकिन ग्वालियर का सियासी पासा तब पलटा, जब माधव राव सिंधिया सपत्नी नामांकन भरने के अंतिम क्षणों में ग्वालियर कलेक्ट्रेट पहुंचे। उन्होंने भी अपना नामांकन ग्वालियर लोकसभा सीट से दाखिल कर सनसनी मचा दी। इस घमासान के बाद तो ग्वालियर की चुनावी फिजा ही पूरी तरह से बदल गई। इस दौरान सिंधिया की लोकप्रियता की वजह से वैचारिक तटबंध भी टूट गए थे। बता दें कि यह पहली बार था कि भाजपा को अपने इस अभेद्य किले में पोलिंग एजेंट बनाने तक के लिए लोग नहीं मिल पा रहे थे। वहीं अटल जी को माधव राव के हाथों रिकॉर्ड मतों से करारी हार का सामना करना पड़ा। वाजपेयी जी किसी भी एक बूथ पर जीत दर्ज करने को तरस गए।


सिंधिया ने बिछाया रेल का जाल

राजीव गांधी की सरकार बनने पर माधव राव सिंधिया को रेल मंत्री का पद दिया गया। आलोचनाओं की शिकार रहने वाली भारतीय रेल की व्यवस्थाओं में माधव राव सिंधिया ने राज्यमंत्री होते हुए ऐसे परिवर्तन किए कि हर जगह उनकी तारीफ होने लगी। उस दौरान समय पर ट्रेनों का संचालन होने लगा और स्वच्छता का विशेष ख्याल रखा जाने लगा। बता दें कि माधव राव सिंधिया स्वयं ट्रेन से यात्रा करते थे। वह ना तो मातहतों को दंडित करते और ना ही उन्हें डांटते थे, वह मातहतों की गलती देख वह मुस्कुरा दिया करते थे। जिससे की सामने वाले को खुद शर्मिंदगी महसूस होती थी। माधव राव सिंधिया ने रेल कर्मियों के कल्याण में कार्य कर उनका भी दिल जीत लिया था।


मौत

प्राप्त जानकारी के अनुसार, कांग्रेस की 30 सितंबर 2001 को कानपुर में बड़ी रैली थी। इस रैली में दिल्ली की मौजूदा सीएम शीला दीक्षित को जाना था। लेकिन अचानक से उनकी तबियत बिगड़ने के कारण रैली को संबोधित करने के लिए माधवराव सिंधिया को जाने के लिए तैयार किया। इसके बाद वह कानपुर के लिए रवाना हो गए। माधव राव सिंधिया के साथ ही किसी को भी यह नहीं पता था कि यह उनका आखिरी यात्रा साबित होगी। 30 सितंबर 2001 को कानपुर यात्रा के दौरान सुबह के 3 बजकर 56 मिनट पर माधव राव सिंधिया का प्लेन क्रैश हो गया। जिसमें माधवराव सिंधिया की जान चली गई। यह खबर देश में आग की तरह फैल गई। लोकतंत्र के इस करिश्माई नेता को आज भी लोग याद करते हैं।

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