मकर संक्रांति: शाही स्नान के साथ पतंगोत्सव भी

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Jan 12, 2018

मकर संक्रांति सूर्य आराधना का सबसे प्रमुख पर्व है तथा इसे सारे देश में अलग-अलग रूपों में मनाया जाता है। इस दिन स्नान एवं दान को महत्वपूर्ण माना जाता है। सर्वाधिक महत्व गंगा स्नान को प्राप्त है। भारत के पूर्वी कोने पर स्थित कोलकाता के नजदीक गंगा सागर में इस दिन एक टापू उभरकर आता है, जिस पर मकर संक्रांति का विशाल मेला लगता है। कहा जाता है कि अधिकांश तीर्थ स्थलों पर तो कभी भी जाया जा सकता है, लेकिन ऐसी प्रकृति की विशेष व्यवस्था है कि आप गंगा सागर वर्ष में केवल एक बार ही जा सकते हैं। जो लोग इस दिन गंगा सागर नहीं जा पाते थे अन्य स्थानों पर गंगा स्नान करते हैं। 

उत्तर प्रदेश की संगम नगरी प्रयाग में मकर संक्रांति के स्नान पर्व पर शनिवार सुबह से ही पवित्र स्नान करने वालों का तांता लगा हुआ रहता है। मध्य प्रदेश के उज्जैन में क्षिप्रा नदी में भी स्नान करने की परंपरा है। जो लोग बच जाते है वो कृष्णा, गोदावरी, यमुना अथवा किसी अन्य पवित्र नदी या जलाशय में स्नान करके पुण्य प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। इस दिन के दान का भी महत्व है। गरीबों को तिल, गुड़ एवं खिचड़ी दान करने की परम्परा प्रचलित है। विष्णु धर्मसूत्र नाम ग्रंथ में कहा गया है कि इस दिन तिल का छह प्रकारों से उपयोग करने पर व्यक्ति का भाग्योदय होताहै। इस दिन पवित्र नदियों और सरोवरों में तिल को पीसकर उसका उबटन लगाकर स्नान करके लोग तिल के लड्डुओं का दान करते हैं। इस स्नान को शाही स्नान भी कहते है। यह स्नान उत्तर भारत और पूर्वी भारत में प्रसिद्ध है।

 

 

मकर संक्राति के दिन पतंग उड़ाने की भी परंपरा है। इस दिन बाजार में कई तरह के पतंग बिकते हुए नजर आते है, जिसे बच्चे या बड़े सभी बड़े शौक से उड़ाते है। मकर संक्राति पर पतंग उड़ाने की परंपरा ऐसी की कई दिग्गज नेता भी इस दिन पतंग उड़ाने की परंपरा को नहीं भूलते। पतंग उड़ाने के पीछे इतिहास भी है।

 

राम इक दिन चंग उड़ाई। 

इंद्रलोक में पहुंची जाई।। 

 

तमिल की तन्दनानरामायण में भी इस घटना का जिक्र किया गया है। इस रामायण के अनुसार मकर संक्रांति ही वह पावन दिन था जब भगवान श्री राम और हनुमान जी की मित्रता हुई। मकर संक्राति के दिन राम ने जब पतंग उड़ायी तो पतंग इन्द्रलोक में पहुंच गयी। पंतंग को देखकर इन्द्र के पुत्र जयंती की पत्नी सोचने लगी कि, जिसकी पतंग इतनी सुन्दर है वह स्वयं कितना सुंदर होगा। भगवान राम को देखने की इच्छा के कारण जयंती की पत्नी ने पतंग की डोर तोड़कर पतंग अपने पास रख ली। 

 

भगवान राम ने हनुमान जी से पतंग ढूंढकर लाने के लिए कहा। हनुमान जी इंद्रलोक पहुंच गये। जयंत की पत्नी ने कहा कि जब तक वह राम को देखेगी नहीं पतंग वपस नहीं देगी। हनुमान जी संदेश लेकर राम के पास पहुंच गये। भगवान राम ने कहा कि वनवास के दौरान जयंत की पत्नी को वह दर्शन देंगे। हनुमान जी राम का संदेश लेकर जयंत की पत्नी के पास पहुंचे। राम का आश्वासन पाकर जयंत की पत्नी ने पतंग वापस कर दी। 

 

तिन सब सुनत तुरंत ही, दीन्ही दोड़ पतंग। 

खेंच लइ प्रभु बेग ही, खेलत बालक संग।।

 

दरअसल मान्यता है कि पतंग खुशी, उल्लास, आजादी और शुभ संदेश की वाहक है, संक्रांति के दिन से घर में सारे शुभ काम शुरू हो जाते हैं और वो शुभ काम पतंग की तरह ही सुंदर, निर्मल और उच्च कोटि के हों इसलिए पतंग उड़ाई जाती है। काम की शुभता के लिए तो कहीं-कहीं लोग तिरंगे को भी पतंग रूप में इस दिन उड़ाते हैं।

 

इस दिन शहर का शायद ही ऐसी कोई कॉलोनी, मोहल्ला नहीं बचता है जहां पतंग नहीं उड़ाई जाती हो। सुबह सर्द हवाओं के बीच ही लोग छतों पर आने लगते है। दिन चढ़ते-चढ़ते तो छतों पर लोगों का हुजूम सा दिखाई देने लगता है। बदलते समय के साथ लोग पतंग उड़ाने के दौरान अब म्यूजिक सिस्टम भी लगाते है। साउंड सिस्टमों पर चल रहे गीतों पर झूमते-नाचते भी कई युवा पतंग उड़ाते हुए नजर आते है। सर्दी के दिनों में सूरज की रोशनी बहुत जरूरी होती है इस कारण भी लोग पतंग उड़ाते हैं। ऐसा माना जाता है मकर संक्रांति के दिन से सूरज देवता प्रसन्न होते हैं इस कारण लोग घंटो सूर्य की रोशनी में पतंग उड़ाते हैं, इस बहाने उनके शरीर में सीधे सूरज देवता की रोशनी और गर्मी पहुंचती है, जो उन्हें सीधे तौर पर विटामिन डी देती है और खांसी, जुकाम से बचाती है। इस दिन गिल्ली-डंडा भी खेला जाता है।

 

पतंगोत्सव मुख्यत: पश्चिमी भारत मे मनाया जाता है। राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र में पतंग उड़ाने की परंपरा खूब है। उत्तर भारत और पूर्वी भारत में पतंग उड़ाने की परंपरा मकर संक्रांति से शुरू होकर बसंतपंचमी तक चलता है। मकर संक्रांति के दिन दक्षिण भारत नें पोंगल मनाया जाता है। 

 

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