अलग−अलग राज्यों में कुछ इस तरीके से मनाई जाती है मकर संक्रांति

By मिताली जैन | Jan 12, 2019

यूं तो भारत वर्ष में कई त्योहार मनाए जाते हैं लेकिन मकर संक्रांति की बात ही निराली है। दरअसल, यह देश के विभिन्न राज्यों में अलग−अलग नामों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है और इसी खूबी के कारण मकर संक्रांति का पर्व अन्य सभी त्योहारों से अलग व विशिष्ट बन जाता है। पंजाब में लोहड़ी तो तमिलनाडु में पोंगल, वहीं गुजरात में उत्तरायण के नाम से जाना जाता है मकर संक्रांति का पर्व। तो चलिए जानते हैं देश के विभिन्न हिस्सों में किस तरह सेलिब्रेट किया जाता है यह पर्व−

 

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पंजाब में मकर संक्रांति

पंजाब ही नहीं, बिहार व तमिलनाडु में यह समय फसल काटने का होता है। इसलिए किसानों के लिए यह पर्व एक खास महत्व रखता है। पंजाब में मकर संक्रांति के पर्व को लोहड़ी कहकर पुकारा जाता है। मकर संक्रांति की पूर्वसंध्या पर लोग खुले स्थान में आग जलाते हैं और परिवार व आस−पड़ोस के लोग अग्नि की परिक्रमा करते हुए रेवड़ी व मक्की के भुने दानों को उसमें भेंट करते हैं। साथ ही आग के चारों ओर भांगड़ा करते हैं तथा रेवड़ी, मूंगफली व मक्की के भुने दानों को खाते भी हैं। 


उत्तर प्रदेश में मकर संक्रांति

उत्तर प्रदेश और बिहार में मकर संक्रान्ति को खिचड़ी के नाम से पुकारा जाता है। उत्तरप्रदेश में मकर संक्रांति के दिन को दान के पर्व के रूप में देखा जाता है। इलाहाबाद में तो मकर संक्रांति के दिन से ही माघ मेले की शुरूआत होती है और माघ मेले का पहला नहान मकर संक्रांति के दिन ही किया जाता है। इस खास दिन लोग स्नान के अतिरिक्त दान को भी महत्ता देते हैं। जिसमें खिचड़ी को मुख्य रूप से शामिल किया जाता है। इतना ही नहीं, लोग खिचड़ी को दान करने के साथ−साथ उसका सेवन भी अवश्य करते हैं।

 

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महाराष्ट्र में मकर−सक्रांति

महाराष्ट्र में भी मकर−संक्रांति के दिन दान अवश्य किया जाता है। खासतौर से, विवाहित महिलाएं अपनी पहली मकर संक्रांति पर कपास, तेल, नमक, गुड़, तिल, रोली आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। महाराष्ट्र में माना जाता है कि मकर संक्रान्ति से सूर्य की गति तिल−तिल बढ़ती है और इसलिए लोग इस दिन एक दूसरे को तिल गुड़ देते हैं। इतना ही नहीं, तिल गुड़ देते समय वाणी में मधुरता व मिठास की कामना भी की जाती है ताकि संबंधों में मधुरता बनी रहे।

 

राजस्थान में मकर संक्रांति 

राजस्थान में मकर संक्रांति का पर्व सुहागन महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। इस दिन सभी सुहागन महिलाएं अपनी सास को वायना देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। साथ ही इस दिन महिलाओं द्वारा किसी भी सौभाग्यसूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन व संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देने की भी प्रथा है। 

 

पश्चिम बंगाल में मकर−सक्रांति

चूंकि गंगा अपने अंतिम छोर में बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। इसलिए पश्चिम बंगाल में इस दिन गंगासागर मेले के नाम से धार्मिक मेला लगता है और सभी लोग इस संगम में स्नान अवश्य करते हैं। कहा जाता है कि मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे−पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं और इसलिए मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन अगर इस संगम में डुबकी लगाई जाए तो इससे सारे पाप धुल जाते हैं। पश्चिम बंगाल में स्नान के साथ−साथ दान को भी महत्व दिया जाता है। इस दिन लोग तिल का दान अवश्य करते हैं।  

 

गुजरात में मकर−सक्रांति

गुजरात में मकर संक्रांति को उत्तरायण कहकर पुकारा जाता है। गुजरात में इस दिन पतंग उड़ाने की प्रथा है। इतना ही नहीं, गुजरात में मकर संक्रांति के पर्व पर पंतगोत्सव का भी आयेाजन किया जाता है। गुजराती लोगों के लिए यह एक बेहद शुभ दिन है और इसलिए किसी भी शुभ कार्य की शुरूआत के लिए इसे सबसे उचित दिन माना जाता है।

 

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कर्नाटक में मकर−सक्रांति

कर्नाटक में इसे एक फसल के त्योहार के रूप में देखा जाता है। वहां पर लोग मकर संक्रांति के दिन बैलों और गायों को सजा−धजाकर शोभा यात्रा निकालते है। साथ ही खुद भी नए कपड़े पहनकर एक−दूसरे को ईख, सूखा नारियल और भुने चने का आदान−प्रदान करते हैं। इतना ही नहीं, गुजरात की ही तरह कर्नाटक में भी मकर संक्रांति के दिन पंतगबाजी का आनंद लिया जाता है। 

 

उत्तराखंड में मकर−सक्रांति

उत्तराखंड में इस दिन जगह−जगह पर मेले लगाए जाते हैं। साथ ही लोग गंगा स्नान करके, तिल के मिष्ठान आदि को ब्राह्मणों व पूज्य व्यक्तियों को दान करते हैं। 

 

तमिलनाडु में मकर−सक्रांति

तमिलनाडु में इस त्योहार को बेहद अलग तरीके से मनाया जाता है। यहां पर लोग इसे पोंगल के रूप में मनाते हैं। यह एक चार दिवसीय अवसर है। जिसमें पहले दिन भोगी−पोंगल, दूसरे दिन सूर्य−पोंगल, तीसरे दिन मट्टू−पोंगल अथवा केनू−पोंगल, चौथे व अंतिम दिन कन्या−पोंगल मनाया जाता है। पोंगल मनाने के लिए सबसे पहले स्नान करके खुले आंगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनाई जाती है, जिसे पोंगल कहा जाता है। इसके बाद सूर्य देव की पूजा की जाती है और अंत में उसी खीर को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।

 

मिताली जैन

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