मत्स्य द्वादशी व्रत से होती है हर सिद्धी पूर्ण

By प्रज्ञा पांडेय | Dec 26, 2020

आज मत्स्य द्वादशी है, इस दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य का अवतार लिया था। मत्स्यवतार श्रीहरि के विशेष अवतारों में से एक है। इस दिन विष्णु भगवान की पूजा करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं तो आइए हम आपको मत्स्य द्वादशी के व्रत की विधि तथा महत्व के बारे में बताते हैं।

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मत्स्य एकादशी के बारे में जानें

हिंदू धर्म में मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मत्स्य द्वादशी के रूप में मनाया जाता है। मत्स्य द्वादशी के दिन ही विष्णु जी ने मत्स्य का अवतार लेकर दैत्य हयग्रीव का संघार कर वेदों की रक्षा की थी। इसलिए मत्स्य द्वादशी के दिन भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन विष्णु जी की श्रद्धा पूर्वक पूजा करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। 


मत्स्य एकादशी के दिन इन उपायों से होगा लाभ 

मत्स्य द्वादशी का दिन विशेष होता है इसलिए इस दिन सभी प्रकार के कार्यों को सिद्ध करने मछलियों को दाना डालें। साथ ही नए धान को अपने सिर से वार कर पानी में डाल दें। ऐसा करने से भगवान विष्णु अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। अगर आप आर्थिक संकट से घिरे हैं तो इसे दूर करने के लिए मत्स्य द्वादशी के दिन भगवान विष्णु के सम्मुख रोली मिले गाय के घी का दीपक जलाएं। किसी समस्या को दूर करने के लिए भगवान विष्णु पर अर्पित किए गए गेहूं के दाने मछलियों को खिलाएं। इसके अलावा भगवान विष्णु को चढ़ाया प्रसाद गाय को खिलाएं।


यदि आप व्यापार में असफलता से परेशान हैं तो भगवान विष्णु पर चढ़ा सिक्का जल में प्रवाहित कर दें। परिवार में समृद्धि तथा प्रसन्नता बनाए रखने लाने के लिए तुलसी की माला से भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें।


मत्स्य द्वादशी से जुड़ी पौराणिक कथा 

हिन्दू धर्म के धार्मिक ग्रंथों में मत्स्य द्वादशी से सम्बन्धित कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार एक बार ब्रह्मा जी की असावधानी से हयग्रीव ने वेदों को चुरा लिया। हयग्रीव द्वारा वेदों को चुरा लेने के कारण ज्ञान विलुप्त हो गया। वेदों के लुप्त होने से समस्त लोक में अज्ञानता का अंधकार छा गया। सम्पूर्ण विश्व में हाहाकर व्याप्त हो गया। तब भगवान विष्णु ने धर्म की रक्षा हेतु मत्स्य अवतार धारण कर दैत्य हयग्रीव का वध किया तथा वेदों की रक्षा की। इसके पश्चात विष्णु भगवान ने ब्रह्मा जी को वेद सौंप दिया।

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मत्स्य द्वादशी का द्वादशी का महत्व

मत्स्य द्वादशी वैष्णव भक्तों के लिए खास दिन है। शास्त्रों के अनुसार सृष्टि का आरंभ जल से हुआ है तथा जल ही जीवन है। इसलिए शास्त्रों में मत्स्य द्वादशी को विशेष महत्व दिया गया है। मत्स्य द्वादशी के दिन ही भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था इसलिए मत्स्य द्वादशी बहुत ही शुभ और लाभकारी मानी जाती है। पंडितों के अनुसार इस दिन श्रद्धा पूर्वक भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने से भक्तों के सभी संकट दूर हो जाते हैं और उनके सभी कार्य सिद्ध होते हैं। 


मत्स्य द्वादशी के दिन ऐसे करें पूजा

हिन्दू धर्म में मत्स्य द्वादशी का विशेष महत्व है इसलिए इस विशेष दिन पूजा-अर्चना का खास महत्व है। मत्स्य द्वादशी के दिन चार जल से भरे हुए कलश में फूल डालकर घर के मंदिर में स्थापित करें। अब चारों कलश को तिल की घर खली से ढक कर इनके सामने भगवान विष्णु की पीली धातु की प्रतिमा की स्थापना कर दें। स्थापित किए गए चारों कलशों की पूजा समुद्र के रूप में की जाती है। अब भगवान विष्णु की तस्वीर के सामने घी का दीपक जलाएं। केसर और गेंदे के फूल भगवान को विशेष प्रकार से अर्पित करें। साथ ही तुलसी के पत्ते चढ़ाएं तथा मिष्ठान का भोग लगाएं। इसके बाद ओम मत्स्य रूपाय नमः मंत्र का जाप करें। इस प्रकार सभी भक्तों को प्रसाद बांट कर स्वयं भी प्रसाद ग्रहण करें।


- प्रज्ञा पांडेय

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