मेरठ शहर विधानसभा सीट : भाजपा के संगठन में शह और मात के खेल के साथ तेज हुई दावेदारी की जंग

By Rajeev Sharma | Sep 04, 2021

क्रांति धरा मेरठ का इतिहास बहुत पुराना और समृद्ध रहा है।  मेरठ कभी कांग्रेस का गढ़ माना  जाता था और मेरठ में पड़ने वाली मेरठ शहर कांग्रेस की पुख्ता सीट मानी जाती थी लेकिन अब हालात कुछ अलग हैं। बदलते समय के साथ ये सीट भी कांग्रेस के हाथ से निकलती चली गई, और अब ये सीट भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लिए सबसे बेहतरऔर प्रतिष्ठा की मानी जाती है। 


शहर सीट के इतिहास पर यदि नज़र डाले तो सत्ताधारी बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके लक्ष्मीकांत वाजपेयी मेरठ शहर विधानसभा क्षेत्र से चार बार विधायक रहे हैं, बीच- बीच में अन्य दलों के उम्मीदवार भी विजयी रहे। साल 1989 के चुनाव में लक्ष्मीकांत वाजपेयी पहली बार बीजेपी से विधायक निर्वाचित हुए। साल 1993 में जनता दल के टिकट पर मैदान में उतरे हाजी अखलाक ने वाजपेयी को हराया. 1996 और 2002 में लक्ष्मीकांत वाजपेयी विजयी रहे लेकिन 2007 में यूपीयूडीएफ के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे हाजी याकूब ने उन्हें हरा दिया।  2012 में वाजपेयी मेरठ शहर सीट से चौथी बार विधानसभा पहुंचने में सफल रहे।  


साल 2017 के विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत के साथ बीजेपी यूपी की सत्ता पर काबिज हो गई, लेकिन मेरठ शहर विधानसभा सीट पर उसे हार का मूँह देखना पड़ा। मेरठ शहर सीट से सपा के रफीक अंसारी ने यूपी बीजेपी के पूर्व विधायक लक्ष्मीकांत वाजपेयी को हरा दिया। रफीक को 1 लाख 3 हजार 217 वोट मिले जबकि लक्ष्मीकांत वाजपेयी को 74 हजार 448 वोट मिले थे। 


अब एकबार फिर UP Mission 2022 मेरठ में विधानसभा चुनावों से पहले महानगर भाजपा में बेचैनी का पारा चढ़ रहा है। शहर विस सीट पर टिकट के कई दावेदार गुपचुप जमीन बनाने में जुटे हैं। संगठन में शह और मत का खेल चल रहा है। प्रदेश इकाई ने अगर दिग्गज नेता डा. लक्ष्मीकांत बाजपेयी का समायोजन किया तो इस सीट पर दावेदारी की जंग और तेज हो जाएगी। पार्टी ने रणनीति पर बारिकी से विचार शुरू कर दिया है।

 

भाजपा के चुनावी गणित की बात करें तो शहर विस सीट ब्राह्मण कोटे में जाती रही है। पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डा. लक्ष्मीकांत बाजपेयी इस सीट पर लंबे समय से चुनाव लड़ते रहे हैं। पार्टी उनका विकल्प अभी तक खोज नहीं पाई है, लेकिन इस बार कई नए समीकरण भी बन रहे हैं। पार्टी का एक खेमा मान रहा है कि बाजपेयी चुनाव लडऩे में खास दिलचस्पी नहीं दिखाएंगे, लेकिन उन्होंने पत्ते नहीं खोले हैं। संभव है कि पार्टी उन्हें एमएलसी बनाकर सदन भेजे या राज्यपाल बनाए। ऐसे में पार्टी के ब्राह्मण चेहरों की नजर इस सीट पर टिक गई है। जिलाध्यक्ष विमल शर्मा, श्रमिक कल्याण बोर्ड के चेयरमैन सुनील भराला, कमलदत्त शर्मा, अरुण वशिष्ठ, धर्मेंद्र भारद्वाज व पीयूष शास्त्री ने टिकट के लिए होमवर्क शुरू कर दिया है, वहीं भाजपाई कार्यक्रमों में कम नजर आने वाले एडवोकेट राजेश मोहन शर्मा ने भी शहर में कई होर्डिंग टांग दिए हैं।


महानगर इकाई शहर विस में अपनी रणनीति के साथ आगे बढ़ रही है। संगठन विस्तार के दौरान प्रकोष्ठों एवं मोर्चो में कैंट के 57 और दक्षिण विस क्षेत्र के 42 चेहरों को शामिल किया गया, वहीं शहर विस क्षेत्र के महज 22 लोगों को पद दिए गए हैं। यह भी कहा जा रहा है कि महानगर इकाई जिस चेहरे को शहर विस में आगे बढ़ा रही है, वो कोई छाप नहीं छोड़ पाए हैं। कमलदत्त समेत अन्य चेहरों ने भी लोगों से संपर्क तेज किया है, लेकिन डा. लक्ष्मीकांत का नाम अब भी सबसे भारी है। माना जा रहा है कि उनकी सहमति लेकर ही प्रदेश इकाई कोई बड़ा निर्णय लेगी।

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