By Kusum | Feb 13, 2025
Meta ने हाल ही Brain Typing टेक्नोलॉजी का डेमा दिया, जो सिर्फ दिमाग से सोचकर टेक्स्ट टाइप करने की सुविधा देता है। ये एक नॉन इनवेसिव यानी कि बिना सर्जरी वाली तकनीक है, जो न्यूरल सिग्नल्स को पढ़कर टेक्स्ट में बदलती है। हालांकि, इसे जल्द ही किसी प्रोडक्ट में देखने की संभावना कम है। हार्डवेयर की सीमाएं, डेटा प्राइवेसी, एथिकल सवाल और कानूनी अड़चनें इसे मार्केट रेडी टेक्नोलॉजी नहीं बनने देतीं। दरअसल, 2017 में फेसबुक जो अब मेटा है ने इस इनोवेशन को असलियत बनाने पर विचार किया था। इस सिस्टम को काम करने के लिए बेहद महंगी मशीनों की जरूरत होती है।
इनवेसिव ब्रेन टाइपिंग सिस्टम का डेमो दिखाया, जिसमें EEG यानी Electroencephalography और AI म़तलब का इस्तेमाल किया गया। रिसर्च के मुताबिक, ये लगभग 80 प्रतिशत सटीकता से दिमागी संकेतों को पढ़कर टेक्स्ट में बदल सकता है। MIT टेक्नोलॉजी रिव्यू के एक हालिया ब्लॉग के अनुसार, टेक्नोलॉजी एक स्पेलशल ब्रेन स्कैनर पर निर्भर करती है जिसे मैग्रेटोएन्सेफलोग्राफी मशीन कहा जाता है, जो ब्रेन एक्टिविटी द्वारा बनाए गए छोटे मैग्नेटिक संकेतों का पता लगाता है। स्कैनर इतना बड़ा और संवेदनशील है कि पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के हस्तक्षेप को रोकने के लिए इसे एक खास डिजाइन किए गए कमरे में रखना पड़ता है।
मेटा के रिसर्चर्स ने इन ब्रेन सिग्नल्स को एनेलाइज करने के लिए Brin2Qwerty नाम का एक एआई मॉडल भी ट्रेन किया। जब इसने कीबोर्ड पर टाइप किया तो AI ने डेटा के पैटर्न को स्पेशल करेक्टर्स से मिलाना सीखा। समय के साथ सिस्टम इतना सटीक हो गया है कि सटीक अनुमान लगा सके कि कोई व्यक्ति 80 प्रतिशत समय किस अक्षर के बारे में सोच रहा था।
अभी के EEG डिवाइस बड़े और महंगे हैं। इन्हें छोटे, सटीक और किफायती बनाने में समय लग सकता है। वहीं, हर व्यक्ति का ब्रेन पैटर्न अलग होता है। जिससे सभी के लिए एक यूनिवर्सल सिस्टम बनाना मुश्किल है। दिमाग से डेटा एक्सेस करना संवेदनशील मामला है। क्या कोई कंपनी आपके विचारों को स्टोर करेगी? वहीं, ब्रेन डेटा को लेकर कानूनी ढांचा नहीं बना है और ये टेक्नोलॉजी कई नैतिक बहसें खड़ी कर सकती है।