MF Husain Death Anniversary: भारत के 'पिकासो' थे एमएफ हुसैन, माधुरी दीक्षित के लिए बुक कर लिया था पूरा सिनेमा हॉल

By अनन्या मिश्रा | Jun 09, 2023

एक कलाकार को समाज के आइने के रूप में देखा जाता है। एक कलाकार अपनी कला के माध्यम से समाज के अच्छे से लेकर बूरे हर पहलू को सबके लाने का काम करता है। बता दें कि कलाकर अगर चित्रकार यानी की पेंटर हो, तो वह अपने जीवंत चित्रों से जीवन में रंग घोलने का काम करता है। चित्रकार वह कलाकार होता है, जो अपनी सोच को एक सक्षम रूप देने का काम करता है। हमारे देश में भी ऐसे ही एक कलाकार थे, जिन्होंने अपनी कला से इतिहास के पन्नों में अपना नाम कर दिया। उस कलाकार का नाम मकबूल फिदा हुसैन हैं। जिनको लोग एमएफ हुसैन के नाम से भी जाता था। आज ही के दिन यानी की 9 जून को इस महान कलाकार की मौत हो गई थी। आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर एमएफ हुसैन के जीवन से जुड़े कुछ रोचक बातों के बारे में...


जन्म और शिक्षा

महाराष्ट्र के पंढरपुर में एक सुलेमानी बोहरा परिवार में 17 सितंबर 1915 को मकबूल फिदा हुसैन का जन्म हुआ था। जब वह छोटे थे, तभी उनकी मां का निधन हो गया था। इसके बाद वह अपने पिता के साथ इंदौर रहने के लिए चले गए थे। यहीं से उन्होंने अपनी शुरूआती शिक्षा पूरी की थी। मदरसे में प्रवास के दौरान सुलेखन करते-करते एमएफ हुसैन की रूचि कला में जगने लगी। इसके बाद उन्होंने मुंबई के जे. जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट्स में एडमिशन ले लिया। अपने कॅरियर के शुरूआती दौर में वह पैसे कमाने के लिए हुसैन सिनेमा के पोस्टर बनाते थे। लेकिन पैसों की आर्थिक तंगी के कारण वह खिलौने की फ़ैक्टरी में भी काम करते थे। 


ऐसे बनाई पहचान

आधुनिक कला को प्रोत्साहित करने के लिए हुसैन ने पुरानी परम्पराओं को तोड़ते हुए अपनी आधुनिक पेंटिंग्स से अपनी एक अलग पहचान बनाई। साल 1971 में स्पेन के महान चित्रकार पाब्लो पिकासो के साथ साओ पाब्लो समारोह में हुसैन को आमंत्रित किया गया था। यहां पर उनकी एक पेंटिंग क्रिस्टीज़ ऑक्शन में 20 लाख अमेरिकी डॉलर में बिकी थी। इसी कारण हुसैन को भारत का 'पिकासो' भी कहा जाता था। हालांकि जितना ज्यादा वह अपनी पेंटिंग्स को लेकर चर्चाओं में रहे, उतना ही उनकी पेंटिंग्स विवादों में भी रहीं। 


सम्मान

भारतीय कला की दुनिया में एमएफ हुसैन भले ही विवादों में घिरे रहे। लेकिन साल 1973 में हुसैन को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। इसके बाद जब वह विवादों में आए तो साल 2008 में केरल सरकार द्वारा हुसैन को 'राजा रवि वर्मा' से सम्मानित किया गया था। साल 1967 में उन्हें बेस्ट एक्सपेरिमेंटल फिल्म 'थ्रू द आईज ऑफ अ पेंटर' बनाने के लिए नेशनल फिल्म अवॉर्ड और गोल्जन बेयर शॉर्ट फिल्म पुरस्कार से नवाजा गया था।

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एक्ट्रेस माधुरी दीक्षित के थे फैन

एमएफ हुसैन ने अपनी कड़ी मेहनत के दम पर अपना मुकाम बनाया था। जो हर कलाकार का सपना होता है। वहीं हुसैन का सिनेमा से लगाव हमेशा रहा। बता दें कि वह बॉलीवुड की एक्सप्रेशन क्वीन माधुरी दीक्षित के बहुत बड़े फैन थे। एक्ट्रेस माधुरी दीक्षित की दीवानगी का अंदाज आप इस बात से लगा सकते हैं कि एक्ट्रेस की फिल्म 'हम आपके हैं कौन' को एम एफ हुसैन ने 67 बार देखा था। इसके अलावा उन्होंने माधुरी दीक्षित के ऊपर पेंटिंग की पूरी सीरीज बना डाली थी।  


बता दें कि 85 साल की उम्र में हुसैन ने माधुरी को लेकर साल 2000 में ‘गजगामिनी’ फिल्म बनाई थी। इस फिल्म का बजट करीब ढाई करोड़ के आसपास था। इस फिल्म ने महज 26 लाख रुपए ही कमाए थे। लेकिन इसके बाद भी हुसैन के सिर पर माधुरी दीक्षित की दीवानगी का आलम कायम रहा। माधुरी दीक्षित की फिल्म ‘आजा नचले’ के दौरान एम एफ हुसैन दुबई में थे। एक्ट्रेस की फिल्म देखने के लिए हुसैन ने दुबई के लैम्सी सिनेमा को पूरा अपने लिए बुक करवा लिया था।


जानिए क्यों छोड़ना पड़ा देश

एमएफ हुसैन का विवादों से भी काफी पुराना नाता रहा था। इस दौरान उन पर हिंदू देवी-देवताओं और भारत माता के नग्न चित्र बनाए जाने का आरोप लगा था। जिसके बाद उनके खिलाफ देश भर में कई आपराधिक मामले दर्ज किए गए थे। वहीं उन पर गैर जमानती वारंट भी जारी किया गया था। वहीं साल 1998 में कुछ हिंदू संगठनों ने हुसैन के घर पर हमला बोल दिया था और उनके द्वारा बनाई गई कुछ पेंटिग्स को नष्ट कर दिया था। जिसके बाद एमएफ हुसैन ने देश छोड़ दिया था। इस दौरान वह काफी समय तक लंदन और दोहा में भी रहे। बाद में उनको कतर की नागरिकता मिल गई थी। इसके बाद 9 जून साल 2011 को एमएफ हुसैन ने इस दुनिया को सदा के लिए अलविदा कह दिया।

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