By नीरज कुमार दुबे | Sep 25, 2025
भारत की सेनाओं की शक्ति बढ़ाने के लिए सदैव प्रयासरत रहने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दो ताजा निर्णयों ने सामरिक दृष्टि से दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन को भारत के पक्ष में मोड़ने की दिशा में ठोस संकेत दिया है। एक ओर हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) से 97 तेजस Mk-1A लड़ाकू विमानों की खरीद का ऐतिहासिक सौदा किया गया है, तो दूसरी ओर जहाज निर्माण और समुद्री अवसंरचना में 69,725 करोड़ रुपये के सुधार पैकेज की घोषणा हुई है। दोनों फैसले मिलकर भारत की रक्षा आत्मनिर्भरता और रणनीतिक स्वायत्तता को नई ऊँचाई देने वाले साबित हो सकते हैं।
हम आपको बता दें कि यह अब तक का सबसे बड़ा स्वदेशी लड़ाकू विमान सौदा है। इससे पहले फरवरी 2021 में 83 तेजस Mk-1A विमानों का अनुबंध 46,898 करोड़ रुपये में हुआ था, जिसकी डिलीवरी 2024-28 के बीच होनी है। नई डील के तहत 68 सिंगल-सीट फाइटर और 29 ट्रेनर एयरक्राफ्ट शामिल हैं, जिनमें UTTAM AESA रडार, स्वयम् रक्षा कवच इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सूट और स्वदेशी नियंत्रक एक्ट्यूएटर जैसे 67 अतिरिक्त घटक होंगे। इसका 64% से अधिक हिस्सा स्वदेशी तकनीक से निर्मित होगा।
IAF के पुराने मिग-21 बेड़े की सेवानिवृत्ति से ठीक पहले हुआ यह समझौता वायुसेना की ऑपरेशनल क्षमता को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाएगा। हम आपको बता दें कि वर्तमान में भारत के पास केवल 29 स्क्वाड्रन बचे हैं, जबकि अधिकृत संख्या 42.5 है। पाकिस्तान के पास 25 स्क्वाड्रन हैं और चीन के पास इनकी संख्या भारत से चार गुना है। ऐसे में तेजस का यह बड़ा ऑर्डर केवल संख्या भरने का प्रयास नहीं, बल्कि लंबी अवधि की युद्धक क्षमता का निवेश है।
इसके साथ ही अमेरिका की कंपनी जनरल इलेक्ट्रिक (GE) से 113 F-404 इंजन की डील भी सुनिश्चित हुई है, जिससे उत्पादन चक्र स्थिर होगा। HAL ने उत्पादन क्षमता को प्रति वर्ष 20 से बढ़ाकर 24-30 विमान तक करने का आश्वासन दिया है। इससे यह उम्मीद की जा सकती है कि वायुसेना की संख्यात्मक कमी धीरे-धीरे पूरी होगी।
इसके अलावा, रक्षा दृष्टि से उतना ही महत्वपूर्ण फैसला जहाज निर्माण क्षेत्र में 69,725 करोड़ रुपये के सुधार पैकेज का है। इसे "मदर ऑफ हैवी इंजीनियरिंग" कहा गया है, क्योंकि यह न केवल जहाज निर्माण क्षमता बढ़ाएगा बल्कि ऊर्जा, खाद्य और सामरिक आपूर्ति श्रृंखलाओं को भी सुरक्षित करेगा। खास बात यह है कि आजादी के बाद पहली बार किसी सरकार ने जहाज निर्माण क्षेत्र को इतनी बड़ी मदद दी है। इस योजना में चार स्तंभ हैं–
Shipbuilding Financial Assistance Scheme (SBFAS) : इसके तहत 24,736 करोड़ रुपये की सहायता दी जायेगी जो 2036 तक जारी रहेगी।
Maritime Development Fund (25,000 करोड़ रुपये) : इसमें 20,000 करोड़ का निवेश कोष और 5,000 करोड़ का ब्याज प्रोत्साहन कोष शामिल है।
Shipbuilding Development Scheme (19,989 करोड़ रुपये) : इसके तहत घरेलू क्षमता को 4.5 मिलियन ग्रॉस टन्नेज तक बढ़ाने का लक्ष्य।
कानूनी व नीतिगत सुधार : इसके तहत बड़े शिपबिल्डिंग क्लस्टर, बीमा सहायता और भारत शिप टेक्नोलॉजी सेंटर की स्थापना होगी।
इससे अनुमान है कि 30 लाख रोजगार पैदा होंगे और 4.5 लाख करोड़ रुपये का निवेश आकर्षित होगा। इससे भारत न केवल वाणिज्यिक जहाज निर्माण में आगे बढ़ेगा बल्कि नौसेना के लिए स्वदेशी युद्धपोतों और सप्लाई जहाजों की उपलब्धता भी सुनिश्चित होगी।
इन दोनों पहलों का सम्मिलित प्रभाव देखें तो निश्चित रूप से यह भारत की रक्षा आत्मनिर्भरता को नई दिशा देगा। तेजस सौदा यह संदेश देता है कि भारत अपनी वायु शक्ति को विदेशी आयात पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहने देगा। हालांकि, फिलहाल इंजनों और कुछ हथियार प्रणालियों के लिए विदेशी सहयोग अनिवार्य है, लेकिन धीरे-धीरे देश आत्मनिर्भरता का स्तर बढ़ रहा है।
वहीं जहाज निर्माण सुधार से भारत हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में अपनी स्थिति मजबूत करेगा। चीन "String of Pearls" रणनीति के तहत श्रीलंका, पाकिस्तान और अफ्रीका तक नौसैनिक अड्डे बना रहा है। इसके मुकाबले भारत को अपनी नीली जल नौसेना (Blue Water Navy) को सुदृढ़ करना होगा। नई योजनाएँ इस दिशा में सहायक होंगी।
हालांकि आत्मनिर्भरता की राह आसान नहीं है। तेजस परियोजना का इतिहास देरी और तकनीकी अड़चनों से भरा रहा है। वायुसेना भी बार-बार कह चुकी है कि "संख्या की कमी आत्मनिर्भरता के नाम पर नहीं झेली जा सकती।" तेजस की डिलीवरी समय पर और गुणवत्ता के साथ होगी या नहीं, यह सबसे बड़ा प्रश्न है।
वहीं जहाज निर्माण क्षेत्र में भी पूंजीगत निवेश, उच्च तकनीक और वैश्विक प्रतिस्पर्धा बड़ी चुनौतियाँ हैं। चीन पहले ही विश्व का सबसे बड़ा शिपबिल्डर है। भारत को न केवल घरेलू आवश्यकताएँ पूरी करनी होंगी बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा भी करनी होगी।
देखा जाये तो तेजस सौदा और जहाज निर्माण सुधार भारत की रक्षा और रणनीतिक क्षमताओं में मील का पत्थर साबित हो सकते हैं। यह कदम न केवल रोजगार और तकनीकी नवाचार बढ़ाएँगे बल्कि भारत को "नेट सिक्योरिटी प्रोवाइडर" के रूप में स्थापित करेंगे। दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन अभी चीन के पक्ष में झुका हुआ है, लेकिन इन निर्णयों से भारत की स्थिति मजबूत होगी और भविष्य में सामरिक स्वायत्तता के साथ आत्मविश्वास भी बढ़ेगा। कुल मिलाकर देखें तो यह आत्मनिर्भर भारत के रक्षा क्षेत्र का नया अध्याय है, जिसकी सफलता समय पर क्रियान्वयन और राजनीतिक-सामरिक दृढ़ता पर निर्भर करेगी।