Shaurya Path: अरुणाचल में दिबांग शक्ति, सिक्किम में त्रिशक्ति, पूर्वी सीमाओं पर दिखा भारत का सामरिक आत्मविश्वास

‘दिबांग शक्ति’ अभ्यास की बात करें तो आपको बता दें कि दिबांग घाटी के घनी जंगलों और कठिन पर्वतीय भूगोल में किया गया यह उच्च तीव्रता वाला अभ्यास भारतीय सेना की असममित युद्ध की तैयारी को दर्शाता है।
पूर्वोत्तर भारत की दुर्गम घाटियों और हिमालयी ऊँचाइयों में भारतीय सेना ने हाल ही में दो महत्त्वपूर्ण सैन्य अभ्यास सम्पन्न किए। अरुणाचल प्रदेश के दिबांग घाटी में ‘दिबांग शक्ति’ अभ्यास और सिक्किम के दुर्गम मार्गों पर त्रिशक्ति कोर का 17,000 फीट की ऊँचाई तक युद्धक भार के साथ मार्च। यह दोनों ही अभ्यास केवल शारीरिक क्षमता की परीक्षा नहीं थे, बल्कि सामरिक दृष्टि से गहरे संदेश देने वाले थे।
‘दिबांग शक्ति’ अभ्यास की बात करें तो आपको बता दें कि दिबांग घाटी के घनी जंगलों और कठिन पर्वतीय भूगोल में किया गया यह उच्च तीव्रता वाला अभ्यास भारतीय सेना की युद्ध की तैयारी को दर्शाता है। यहाँ सैनिकों ने जंगल युद्धकला, जीवित रहने की तकनीकें, और combat free fall जैसी जटिल गतिविधियाँ प्रदर्शित कीं। इसने यह सिद्ध किया कि सेना केवल पारंपरिक लड़ाई तक सीमित नहीं है, बल्कि बदलते सुरक्षा परिदृश्यों— घुसपैठ, आतंकवाद, और विशेष अभियानों—से निपटने में भी सक्षम है। यह पूर्वी सीमांत पर भारत की सतत तत्परता का संकेत है, विशेषकर जब पड़ोसी क्षेत्रों में सैन्य गतिविधियाँ और भू-राजनीतिक तनाव लगातार बढ़ रहे हों।
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वहीं त्रिशक्ति अभ्यास की बात करें तो आपको बता दें कि त्रिशक्ति कोर का छह दिन-रात का ऊँचाई-मार्च, सैनिकों के मानव-शक्ति आधारित युद्धक कौशल को सामने लाता है। प्रत्येक सैनिक का पूर्ण युद्धक भार के साथ दुर्गम हिमालयी मार्गों से गुजरना इस बात का स्मरण कराता है कि यद्यपि सेना आधुनिक तकनीक (ड्रोन, स्मार्ट लॉजिस्टिक्स, डिजिटल कम्युनिकेशन) का प्रयोग बढ़ा रही है, लेकिन युद्ध का अंतिम निर्णय मनुष्य की सहनशक्ति, धैर्य और टीमवर्क ही करते हैं। इस अभ्यास ने सैनिकों को यह भी परखा कि तकनीक विफल होने या अनुपलब्ध होने की स्थिति में वे किस हद तक आत्मनिर्भर रहकर मोर्चा सम्भाल सकते हैं।
इन दोनों अभ्यासों के सामरिक महत्व को देखें तो यह मिलकर एक समग्र सुरक्षा दृष्टिकोण की झलक देते हैं। इसके जरिये जंगल और उच्च पर्वतीय दोनों प्रकार की परिस्थितियों में सैनिकों की तैयारी का आकलन किया गया। साथ ही जहाँ ‘दिबांग शक्ति’ ने अत्याधुनिक तकनीक और समन्वित युद्धकला पर बल दिया, वहीं त्रिशक्ति मार्च ने मानव सहनशक्ति और आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता दी। इसके अलावा, चीन-भारत सीमा पर संवेदनशील क्षेत्रों (अरुणाचल और सिक्किम) में अभ्यास यह स्पष्ट संदेश देता है कि भारतीय सेना हर परिस्थिति के लिए तत्पर है। साथ ही, नागरिकों और प्रतिद्वंद्वियों दोनों के लिए यह अभ्यास विश्वास और शक्ति का प्रदर्शन है। इसके अलावा, इन अभ्यासों का असली महत्व उन कूटनीतिक और सामरिक संदेशों में छिपा है जो वे पड़ोसी देशों, विशेषकर चीन और बांग्लादेश को देते हैं।
अरुणाचल प्रदेश पर चीन की दावेदारी और उसकी निरंतर उकसाने वाली गतिविधियाँ भारत की सुरक्षा चिंता का बड़ा कारण हैं। ऐसे में दिबांग घाटी की दुर्गम परिस्थितियों में युद्ध और जंगल युद्धकला का अभ्यास इस बात का सशक्त प्रदर्शन है कि भारतीय सेना किसी भी अप्रत्याशित खतरे का मुकाबला कर सकती है। कठिन मौसम और दुर्गम भूगोल में सैनिकों का आत्मविश्वास चीन के उस मनोवैज्ञानिक दबाव का सीधा जवाब है, जिससे वह भारत को अस्थिर करने का प्रयास करता है।
वहीं, सिक्किम में 17,000 फीट की ऊँचाई पर त्रिशक्ति कोर का पूर्ण युद्धक भार के साथ मार्च यह दर्शाता है कि भारतीय सेना केवल तकनीक पर निर्भर नहीं है। ड्रोन और स्मार्ट लॉजिस्टिक्स महत्त्वपूर्ण हैं, लेकिन जब तकनीक विफल हो जाए, तब भी सैनिकों की सहनशीलता, धैर्य और सामूहिकता ही निर्णायक साबित होती है। यह अभ्यास चीन को सीधा संदेश देता है कि भारत हिमालय की कठिनतम ऊँचाइयों पर भी हर स्थिति के लिए तैयार है।
दूसरी ओर, बांग्लादेश की आंतरिक राजनीति में समय-समय पर भारत-विरोधी स्वर उभरते हैं और चीन वहाँ अपनी पैठ बनाने की कोशिश करता है। ऐसे में पूर्वोत्तर की सीमाओं पर भारतीय सेना का शक्ति-प्रदर्शन यह स्पष्ट करता है कि भारत किसी भी अप्रत्यक्ष दबाव या सीमापार गतिविधि के प्रति सजग है।
बहरहाल, ‘दिबांग शक्ति’ और त्रिशक्ति का ऊँचाई-मार्च भारत की पूर्वोत्तर नीति के सामरिक स्तंभ हैं। ये अभ्यास चीन की विस्तारवादी नीतियों और बांग्लादेश की अस्थिर राजनीतिक प्रवृत्तियों दोनों को यह स्पष्ट संकेत देते हैं कि भारत अपनी सीमाओं की रक्षा में कभी ढिलाई नहीं बरतेगा। तकनीक और मानव शक्ति के संतुलन से लैस यह तैयारी न केवल सीमा पर शांति की गारंटी है, बल्कि भारत की संप्रभुता और सामरिक आत्मविश्वास का भी दर्पण है। ये अभ्यास दर्शाते हैं कि भारतीय सेना न केवल आधुनिक युद्धक तकनीकों में दक्ष है, बल्कि मानव साहस और सहनशीलता के बल पर भी किसी भी चुनौती का सामना कर सकती है। यही संतुलन भारत की सीमाओं की सबसे बड़ी ढाल है।
-नीरज कुमार दुबे
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